CPM को चीन से प्यार और पद्म भूषण से इनकार, क्या राष्ट्रीय सम्मानों पर राजनीति करना सही?
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CPM को चीन से प्यार और पद्म भूषण से इनकार, क्या राष्ट्रीय सम्मानों पर राजनीति करना सही?

CPM लीडर बुद्धदेब भट्टाचार्य ने पद्म भूषण अवार्ड लेने से इनकार कर दिया है. वहीं कांग्रेस ने अपने नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म विभूषण अवार्ड दिए जाने पर चुप्पी साध ली है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रीय सम्मानों पर भी राजनीति करना सही है. 

CPM को चीन से प्यार और पद्म भूषण से इनकार, क्या राष्ट्रीय सम्मानों पर राजनीति करना सही?

नई दिल्ली: बहुत सारे लोग आज के दिन को स्वतंत्रता दिवस समझ लेते हैं. उन्हें लगता है कि आज ही के दिन भारत स्वतंत्र हुआ था. लेकिन एक देश के स्वतंत्र होने में और गणतंत्र होने में अंतर होता है. स्वतंत्र का अर्थ होता है, आज़ाद. जब कोई देश, किसी दूसरे देश के अधीन नहीं होता. वो देश आज़ाद यानी स्वतंत्र होता है. जबकि गणतंत्र का अर्थ, शासन व्यवस्था से है.

  1. जम्मू कश्मीर के ASI को मिला अशोक चक्र
  2. बुद्धदेब भट्टाचार्य का पद्म भूषण लेने से इनकार
  3. सीपीएम ने बताया पुरस्कार न लेने का कारण

72 साल पहले हमारे देश को अपनी नई पहचान मिली थी. हमारे देश ने तय किया था कि हमारा चेहरा कैसा होगा? भविष्य में हमारे सिद्धांत क्या होंगे?, हमारा चरित्र क्या होगा? और एक राष्ट्र के तौर पर हम कौन सा रास्ता अख्तियार करेंगे? 

जम्मू कश्मीर के ASI को मिला अशोक चक्र

इस बार की गणतंत्र दिवस (Republic Day 2022) की परेड शुरू होने से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के शहीद एएसआई बाबू राम को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया. शांतिकाल में सेना और सुरक्षा बलों के शूरवीरों के पराक्रम का ये सबसे बड़ा सम्मान है, जिसे शहीद बाबू राम की पत्नी और उनके बेटे ने गर्व के साथ स्वीकार किया. 

राजनीति में योगदान के लिए सरकार ने विपक्षी दलों के दो नेताओं को पद्म भूषण देने का ऐलान किया, तो उस पर भी हमारे देश के नेता राजनीति करने से बाज नहीं आए. पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने तो पद्म भूषण लेने से ही मना कर दिया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने पद्म भूषण स्वीकार किया, तो वो कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को खटकने लगे.

बुद्धदेब भट्टाचार्य का पद्म भूषण लेने से इनकार

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों (Padma Award 2022) की घोषणा करने की परंपरा है. उसी परंपरा का पालन करते हुए सरकार ने एक दिन पहले पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य को पद्म भूषण से सम्मानित करने का फ़ैसला किया था. 

लेकिन पद्म पुरस्कारों की लिस्ट आने के कुछ देर बाद ही बुद्धदेब भट्टाचार्य ने कहा कि पद्म भूषण पुरस्कार के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं है. उन्हें पहले किसी ने इस बारे में नहीं बताया. अगर उनको पद्म भूषण पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है, तो वो इस पुरस्कार को लेने से इनकार करते हैं

पद्म पुरस्कारों की लिस्ट जारी करने से पहले गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बुद्धदेब भट्टाचार्य के घर पर फोन किया था. बुद्धदेब भट्टाचार्य बीमार हैं, इसलिए उनके घर के लोगों को बता दिया गया कि सरकार बुद्धदेब भट्टाचार्य को पद्म भूषण (Padma Award 2022) देने जा रही है. बताने के बाद उनके नाम की घोषणा की गई, लेकिन बुद्धदेब भट्टाचार्य ने कह दिया कि उन्हें तो किसी ने बताया ही नहीं. पद्म भूषण पुरस्कार ठुकराने का कारण भी उन्होंने नहीं बताया.

सीपीएम ने बताया पुरस्कार न लेने का कारण

हालांकि उनकी पार्टी ने ज़रूर बताया कि सीपीएम शुरू से ही ऐसे पुरस्कार ठुकराती रही है. दरअसल पार्टी का मानना है कि सीपीएम पुरस्कार या सम्मान के लिए नहीं, बल्कि आम लोगों के लिए काम करती है. इसीलिए केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद ने भी पद्म पुरस्कार लेने से मना किया था. वर्ष 2010 में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने भारत रत्न सम्मान लेने से भी मना कर दिया था. 

भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे सम्मान (Padma Award 2022) किसी नेता को इसीलिए दिया जाता है, क्योंकि उसने जनता के लिए काम किया है. जनता के लिए काम करने का सम्मान अगर देश की सरकार कर रही है, तो उसमें क्या ग़लत है? ऐसा सम्मान मिलने पर तो गर्व होना चाहिए, लेकिन सीपीएम को देश का सर्वोच्च सम्मान ठुकराने पर गर्व महसूस होता है. वहीं सीपीएम के ये नेता चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रम का बुलावा मिलते ही दौड़े चले जाते हैं, क्योंकि उन्हें चीन में जो सम्मान मिलता है, उस पर गर्व होता है.

गुलाम नबी को अवार्ड मिलने पर कांग्रेस की चुप्पी

पद्म पुरस्कारों पर विवाद पैदा करने में भी कांग्रेस भी सीपीएम से पीछे नहीं दिखी. सरकार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद को भी पद्म भूषण से सम्मानित करने का ऐलान किया है. उस पर आधिकारिक रूप से कांग्रेस पार्टी ने चुप्पी साध ली. कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण मिलने पर बधाई तक नहीं दी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ग़ुलाम नबी आज़ाद को बधाई देने के बजाय कटाक्ष कर दिया.

जयराम रमेश, ग़ुलाम नबी आज़ाद के पुराने सहयोगी हैं. कहां तो उन्हें ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण (Padma Award 2022) मिलने की बधाई देनी चाहिए थी. लेकिन अपने पुराने साथी को बधाई देने के बजाय उन्होंने बुद्धदेब भट्टाचार्य के पद्म भूषण ठुकराने की तारीफ़ की. इसी के साथ ही उन्होंने गुलाम नबी आज़ाद को ताना भी मार दिया कि वो, यानी बुद्धदेब भट्टाचार्य आज़ाद रहना चाहते हैं, ग़ुलाम नहीं.

क्या असमंजस में फंस गई है पार्टी?

लग तो यही रहा है कि ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण दिए जाने के ऐलान से कांग्रेस पार्टी असमंजस में फंस गई है. कांग्रेस पार्टी शायद हैरान रह गई कि बीजेपी की सरकार उसके मुस्लिम नेता को कैसे सम्मानित कर सकती है क्योंकि मुस्लिमों की भलाई करने का, उनको सम्मानित करने का ठेका तो तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने ले रखा है.

 ग़ुलाम नबी आज़ाद को कांग्रेस पार्टी की सरकार ने पुरस्कार दिया होता, तो कांग्रेस के सारे नेता उनकी जय-जयकार कर रहे होते, लेकिन उनके योगदान को बीजेपी सरकार ने सराहा, तो सबकी बोलती बंद हो गई. कांग्रेस की इसी दुविधा पर कपिल सिब्बल से चुप नहीं रहा गया.

कपिल सिब्बल ने ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण (Padma Award 2022) मिलने पर कहा कि बधाई हो भाईजान. विडंबना है कि राजनीतिक जीवन में जिनके योगदान को देश मान्यता दे रहा है, उनकी सेवाओं की आवश्यकता कांग्रेस को नहीं है.

गुलाम नबी के रिटायरमेंट पर रोए थे पीएम

कांग्रेस पार्टी की विडंबना ये है कि जम्मू-कश्मीर और देश की राजनीति में ग़ुलाम नबी आज़ाद का योगदान कितना बड़ा है, इसकी याद भी बीजेपी सरकार दिला रही है.

पिछले साल फरवरी में ग़ुलाम नबी आज़ाद जब राज्य सभा से रिटायर्ड हो रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश और दुनिया को याद दिलाया था कि राजनीति में ग़ुलाम नबी आज़ाद होने का मतलब क्या है.

देश की राजनीति में ये दुर्लभ क्षण था. विपक्ष के नेता को ऐसी विदाई किसी प्रधानमंत्री ने नहीं दी थी. इस विदाई भाषण में ये संदेश भी था कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी के नहीं होते, बल्कि पूरे देश के होते हैं. हालांकि विरोध के लिए विरोध करने वाले विपक्षी दलों को देश की सरकार नज़र नहीं आती. वो सरकार के हर फैसले को दलगत राजनीति के चश्मे से ही देखते हैं और राजनीति की ये ग़लत सोच देश के लिए ठीक नहीं है.

ढाई फ्रंट वार के लिए तैयार है देश

हमारे देश के सामने Two and Half Front War (टू ऐंड हाफ़ फ़्रंट वॉर) की चुनौती है. यानी एक तरफ़ पाकिस्तान, दूसरी तरफ़ चीन की चुनौती और बीच में आतंक के विरुद्ध जंग. राजपथ पर अपनी सैन्य ताकत दिखाकर सरकार ने देश को भरोसा दिया कि बाहर के दुश्मनों से निपटने के लिए हम पूरी तरह तैयार हैं. हमारी सेनाएं किसी को भी मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं. लेकिन, देश के अंदर जो दुश्मन बैठे हुए हैं, उनका क्या करें?

हमें ये भी जानना चाहिए कि आधुनिक युद्ध सीमाओं पर नहीं होगा. अब तो युद्ध का मतलब यही है कि देश के अंदर मतभेद पैदा कर दो. सिविल सोसाइटी को तोड़ दो. राजनीतिक विचारधारा के आधार पर लोगों को लड़वा दो. धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र के आधार पर लोगों को लड़ा दो. राष्ट्रवाद की मानसिकता पर ही हमला कर दो, जिसे मनोवैज्ञानिक युद्ध कहा जाता है. 

आधुनिक युद्ध यानी मॉडर्न वॉरफ़ेयर का सबसे घातक हथियार यही है, जिसे विपक्षी दल मानने के लिए ही तैयार नहीं हैं. उनके लिए सरकार भी एक राजनीतिक पार्टी है और सरकार का विरोध करना ही राजनीति है. उसी राजनीति में देश का सम्मान ठुकराने की ग़लत परंपरा भी शुरू हो गई है.

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क्या राष्ट्रीय सम्मान ठुकराना सही है?

अब हम आपसे एक सवाल पूछते हैं कि गणतंत्र दिवस (Republic Day 2022) बीजेपी का कार्यक्रम है, या देश का? राजपथ पर सेना ने जिन मिसाइलों, टैंकों और तोपों का प्रदर्शन किया, वो बीजेपी के हैं या देश के? जिन लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों का शानदार फ्लाई पास्ट हम सबने देखा, वो लड़ाकू विमान बीजेपी के हैं या देश के? ये सवाल हमें पूछना पड़ रहा है, क्योंकि अगर गणतंत्र दिवस के सारे कार्यक्रम, सभी परंपराएं देश की हैं, तो फिर विपक्षी दलों ने पद्म पुरस्कारों को राजनीति के दलदल में क्यों घसीट दिया?

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