इस तारीख तक चालू हो जाएगी अरुणाचल में बन रही 'सेला सुरंग', थर-थर कांपेगा चीन
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इस तारीख तक चालू हो जाएगी अरुणाचल में बन रही 'सेला सुरंग', थर-थर कांपेगा चीन

अरुणाचल प्रदेश के नूरानांग में सेला सुरंग का निर्माण किया जा रहा है जोकि अगले साल तक पूरी होने वाली इस सुरंग के खुलते ही भारतीय सेना के लिए तवांग तक पहुंचना और हथियारों की आवाजाही बेहद आसान हो जाएगी. इस सुरंग से चीन पर दबाव बढ़ेगा.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: लद्दाख से अरुणाचल सीमा तक चीन विस्तारवाद का जाल बुन रहा है. लेकिन भारत के सुरक्षा बल चीन की हर चाल का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हरदम तैयार हैं. इसी के तहत अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के नूरानांग में सेला सुरंग (Sela Tunnel) का निर्माण किया जा रहा है. इस सुरंग के पूरा होते ही भारतीय सेना का तवांग (Tawang) तक पहुंचना और हथियारों की आवाजाही बेहद आसान हो जाएगी. सेला सुरंग को पूरे साल भर तवांग को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए एक जरूरी कदम माना जा रहा है.

  1. 13,700 फीट की ऊंचाई पर बन रही 'सेला सुरंग'
  2. अरुणाचल के नूरानांग में बन रही सुरंग
  3. हर मौसम में भारत की कनेक्टिविटी को मजबूत करेगी यह सुरंग

चीन की हर चाल से लड़ने को तैयार है 2021 का भारत

1962 में चीन ने भारत पर धोखे से हमला किया था. भारत ने चीन के साथ दोस्ती की लेकिन चीन ने गद्दारी की. उसने पीठ पर वार किया और भारत को इसका अंदाजा नहीं था. भारतीय सेना इस जंग के लिए तैयार नहीं थी जबकि चीन ने सुनियोजित तरीके से ये हमला किया था. उस दौरान भारतीय सैनिक बहादुरी से लड़े, लेकिन जीत आक्रमणकारी चीन की हुई. आज भारत का करीब 43 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन के अवैध कब्जे में है.

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1962 की हार से भारत ने सीखा सबक

1962 युद्ध के 6 दशक पूरे होने वाले हैं. अरुणाचल प्रदेश का तवांग इस जंग में भारतीय सेना की अप्रतिम बहादुरी का गवाह है. उस वक्त सीमावर्ती इलाकों में सड़कों और बुनियादी ढांचे की कितनी कमी थी, उसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि ब्रिगेडियर दलवी को असम के मिसामारी से तवांग तक का रास्ता या तो पैदल तय करना पड़ा या कहीं-कहीं थोड़ी दूर तक पहुंचा देने वाली जीपों से. लेकिन हथियारों, संसाधनों और मिलिट्री इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी से जूझते हुए भी भारतीय सैनिकों ने चीन को कड़ी टक्कर दी थी. 

दुनिया की पहली ऐसी Tunnel होगी

चीन की साजिशों को नाकाम करने के लिए 13,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर बन रही इस सुरंग के बनने के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तक सैनिकों और हथियारों को जल्दी और आसानी से पहुंचाने में मदद मिलेगी. यह सुरंग सेला दर्रे से होकर गुजरती है और उम्मीद है कि इस परियोजना के पूरा होने पर तवांग के जरिए चीन सीमा तक की दूरी कुछ किलोमीटर कम हो जाएगी. परियोजना निदेशक कर्नल परीक्षित मेहरा (Colonel Parikshit Mehra) ने बताया कि बालीपारा-चारद्वार-तवांग (बीसीटी) रोड पर 700 करोड़ रुपये की लागत से बन रही सुरंग का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यह 13,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर बनने वाली दुनिया की सबसे लंबी दो लेन की सुरंग होगी. 

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2022 तक काम पूरा होने की उम्मीद

इस सुरंग का निर्माण नूरानांग (Nuranang) इलाके में हो रहा है. आपको बता दें कि दिसंबर, जनवरी और फरवरी के महीने में कड़ाके की ठंड के दौरान यहां भारी बर्फबारी होती है, जिस वजह से सैनिकों और हथियारों की आवाजाही प्रभावित होती है. वहीं, पूर्वी लद्दाख में सीमा पर भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध के कारण सैनिकों और हथियारों की आवाजाही को तेज बनाने पर फोकस किया जा रहा है. 1.55 किलोमीटर लंबी और 13,700 फीट की ऊंचाई पर बन रही ये सुरंग अपने आखिरी चरण में पहुंच चुकी है. उम्मीद है कि 2022 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा.

6 किमी कम हो जाएगी दूरी

इस सुरंग को नए ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड का इस्तेमाल करके बनाया जा रहा है. इसके बन जाने से आसानी से तवांग पहुंचा जा सकेगा. यह टनल हर मौसम में भारतीय सीमाओं के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. कर्नल मेहरा ने बताया कि नूरानांग में बन रही 1.55 किलोमीटर लंबी सुरंग तवांग और वेस्ट कामेंग जिलों के बीच की यात्रा दूरी को 6 किलोमीटर और यात्रा समय को कम से कम 1 घंटा कम कर देगी. बता दें कि रंग का निर्माण एक अप्रैल, 2019 को शुरू हुआ था.

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