शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी को लिया आड़े हाथ, पुलिस-प्रशासन को दी चेतावनी
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शिवसेना ने एक बार फिर बीजेपी को लिया आड़े हाथ, पुलिस-प्रशासन को दी चेतावनी

शिवसेना ने मुखपत्र 'सामना' के जरिए महाराष्ट्र के बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को भी चेतावनी दी है.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

मुंबई: महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घमासान के बीच शिवसेना (Shiv Sena) का अपने सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर लगातार हमला जारी है. एक बार फिर शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए बीजेपी को शब्दबाण से घायल करने की कोशिश की है. अखबार के संपादकीय में प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील को भी आड़े हाथों लिया है. साथ ही राज्य के बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को भी चेतावनी दी है.
 
'सामना' ने संपादकीय में लिखा, ''परमपिता परमेश्वर कुछ भूल हुई होगी तो माफ करना. कार्तिक एकादशी के उपलक्ष्य में चंद्रकांत पाटील ने ऐसी प्रार्थना भगवान पांडुरंग से की है. इस पर ‘परमपिता परमेश्वर’ क्या जवाब देंगे? क्या भूल हुई, क्या पाप किया, ये पूरा महाराष्ट्र देख रहा है. पाप अधिक हो गए इसलिए पहले ‘सूखा’ बाद में अतिवृष्टि से किसान बर्बाद हो गए. क्या भूल हुई ये अपने ही दिल से पूछो, पांडुरंग का इतना ही कहना होगा.''

असमंजस खत्म नहीं हुआ
शिवसेना के मुखपत्र ने आगे लिखा, ''महाराष्ट्र में आज भी सत्ता स्थापना का असमंजस खत्म नहीं हुआ और इसका ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ने का खेल चल रहा है. विगत 7 वर्षों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए और उनमें हर बार भाजपा ने पहले सत्ता स्थापित करने का दावा पेश किया. गोवा और मणिपुर में तो सबसे बड़ी पार्टी को नजरअंदाज करके भाजपा ने राज्यपालों के सक्रिय सहयोग से सत्ता स्थापना का दावा किया, यह खुला सत्य है. लेकिन महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सत्ता स्थापना का दावा नहीं करती है.''

राष्ट्रपति शासन का 'डर' दिखाया जा रहा
अखबार ने लिखा कि विधानसभा की मियाद 8 नवंबर को खत्म हो गई. इस दौरान कोई भी सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लागू होगा आदि ‘डर’ दिखाया जा रहा था. फिर भी इसमें सच्चाई नहीं है.

कार्यवाहक को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं
मुखपत्र लिखता है कि श्री फडणवीस ने अब राज्यपाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दिया है. वैकल्पिक व्यवस्था होने तक राज्यपाल ने उन्हें ‘कार्यवाहक’ मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने को कहा है. नई राज व्यवस्था होने तक ढलते मुख्यमंत्री का सामान आदि ‘वर्षा’ बंगले पर रह सकता है. वे ‘कार्यवाहक’ की हैसियत से वहां ठहरेंगे. लेकिन कितने दिन इसका निर्णय राज्यपाल को लेना ही होगा क्योंकि कार्यवाहक सरकार को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता है.

प्रशासकीय तंत्र को गुलाम नहीं होना चाहिए
'सामना' में लिखा है कि पुलिस को आदेश देने का अधिकार नहीं होता है. इसलिए कार्यवाहक के राजनीतिक कार्यकर्ता की हैसियत से बड़े पुलिस अधिकारी काम नहीं कर सकते हैं. ऐसा कोई करता होगा तो उन्हें भविष्य का ध्यान रखना चाहिए. उन्हें हम आज यह चेतावनी देते हैं. प्रशासकीय तंत्र को किसी व्यक्ति या राजनीतिक पार्टी का गुलाम नहीं होना चाहिए. प्रशासन राज्यनिष्ठ होता है इसका ध्यान रखना आवश्यक होता है.

अस्थिरता जल्दी ही खत्म होगी
राज्य की स्थिति अस्थिर है परंतु अस्थिरता जल्दी ही खत्म होगी और किसान, मेहनतकशों की मनपसंद जनता का राज आएगा. राष्ट्रपति शासन मतलब कोई संकट नहीं है. 9 तारीख के बाद सरकार गठन के लिए राज्यपाल कार्यवाही शुरू करेंगे. सबसे बड़ी पार्टी को वे सत्ता गठन के लिए बुला सकते हैं. भाजपा को यह मौका गंवाना नहीं चाहिए. लेकिन सबसे बड़ी पार्टी की हैसियत से यदि वे आगे नहीं आते होंगे तो ये उनकी समस्या है. शिवसेना के बगैर हम सत्ता स्थापित नहीं कर सकते हैं, ऐसा उनके नेता राज्यपाल से मिलकर आने के बाद कहते हैं. ये उनका प्रेम छलछलाने लगता है. सत्य के प्रकाश का उजाला उनके जीवन में पड़ा है या मीठा बोलकर नया ‘पेंच’ डाला जा रहा है? शिवसेना के साथ ही सरकार का गठन करेंगे ये ठीक है परंतु चुनाव से पहले शिवसेना के साथ जो सरकार गठन के लिए तय हुआ था उस बारे में उनके मुंह से शब्द नहीं निकलते. उस पर ‘ऐसा कहा ही नहीं, ऐसा वचन दिया ही नहीं’ ऐसा कहते हैं. शब्दों के इस उलट-फेर और जोड़-तोड़ से हमें घृणा है और जनता को भी ऊब आने लगी है. शिवसेना के बगैर सरकार नहीं बनेगी. परंतु शिवसेना के साथ जो तय हुआ, उससे पीछे हटना ये कैसी राजनीति है? ऐसी ढोंगी राजनीति का कीचड़ हम हमारे शरीर पर लगाने के इच्छुक नहीं हैं. हमें स्वच्छ, निश्छल शब्दों का पालन करनेवाली राजनीति करनी है. अंतत: कौन किस मार्ग से सत्ता हासिल करता है, ये उनकी समस्या है. हम अपने स्वाभिमान का मार्ग अपनाएंगे. राष्ट्रपति शासन लागू हुआ कि नहीं ये हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है. ऐसा शासन संविधान के अनुसार लागू हो ही नहीं सकता, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है.

राज्यपाल ने राय-मश्विरा किया है
महाराष्ट्र के महाअधिवक्ता श्री कुंभकोणी को बुलाकर राज्यपाल ने राय-मश्विरा किया है. महाअधिवक्ता ने राज्य के हित में ही सलाह दी होगी और राज्यपाल भी राज्य के ‘पालक’ की हैसियत से राज्य के हित में ही निर्णय लेंगे, इस बारे में हमारे मन में शंका नहीं है. ‘कार्यवाहक’ सरकार सिर्फ ‘वर्षा’ में ही है. बांधकर रखे गए सामान पर बैठकर वे उल्टी-सुल्टी कार्यवाही नहीं कर पाएंगे. पांच साल महाराष्ट्र ने इस भयंकर अवस्था में गुजारे हैं. जनता की इच्छानुसार ही होना चाहिए. परमपिता परमेश्वर, अब गलती नहीं होगी. चंद्रकांत दादा ने पांडुरंग के समक्ष दंडवत किया ही है. कम-से-कम उन्हें भी सद्बुद्धि दो!

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