DNA Analysis: क्या आपके मन में कभी ख्याल आया है कि अब हमारे देश में जादूगर नहीं मिलते. एक वक्त था जब शहरों से लेकर गांव-देहातों में जादू के Show लगा करते थे और जादूगर Magic Tricks दिखाया करते थे. लेकिन अब हमारे देश में जादूगर लगभग खत्म हो चुके हैं और उनकी जगह स्वयंभू बाबाओं ने ले ली है.
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DNA Analysis: क्या आपके मन में कभी ख्याल आया है कि अब हमारे देश में जादूगर नहीं मिलते. एक वक्त था जब शहरों से लेकर गांव-देहातों में जादू के Show लगा करते थे और जादूगर Magic Tricks दिखाया करते थे. लेकिन अब हमारे देश में जादूगर लगभग खत्म हो चुके हैं और उनकी जगह स्वयंभू बाबाओं ने ले ली है. जो लोगों को बेवकूफ बनाकर खूब चांदी काट रहे हैं. हर तरफ ऐसे बाबा लोगों की धूम है. एक बाबा ढूंढने निकलो तो दस मिल जाएंगे.
ऐसे ही एक बाबा हैं जो खुद को कंबल वाले बाबा कहलवाना पसंद करते हैं. क्योंकि ये बाबा अपने कंबल के जादू से लकवा, पोलियो, कैंसर जैसी हजारों बीमारियों का इलाज करने का दावा करते हैं. यानी चाहे- Neurological बीमारी हो या फिर Ortho से जुड़ी . कंबल वाले बाबा के पास हर मर्ज का इलाज है . और हर मर्ज की दवा है बाबा का कंबल . ये कंबल वाले बाबा फिलहाल मुम्बई के घाटकोपर में थे. और ज़ी मीडिया की टीम जब बाबा के इसी अस्पताल, माफ़ कीजिएगा... बाबा के दरबार में पहुंची तो हमने क्या देखा आज आपको बताएंगे
देश के वैज्ञानिकों ने बेकार में इतनी मेहनत की. कंबल वाले बाबा को कह देते तो अबतक पूरे चांद पर अपना कब्जा हो चुका होता. क्योंकि जो बाबा कंबल ओढ़ाकर लकवाग्रस्त मरीज को पलभर में पैरों पर खड़ा कर दे.. सोचिये, वो क्या कुछ नहीं कर सकता. बस शर्त एक है, बाबा के प्रोग्राम में अपना दिमाग घर पर छोड़कर जाना है. कंबल वाले बाबा इन दिनों मुंबई में अपने भक्तों का दुख-दर्द हरने में जुटे हुए हैं. वैसे तो बाबा तमाम तरह के इलाज में माहिर हैं. लेकिन बाबा मुख्य तौर पर न्यूरोलॉजिस्ट हैं. जिन लकवाग्रस्त मरीजों को ठीक करने की गारंटी डॉक्टर नहीं लेते. उन लकवाग्रस्त मरीजों को बाबा काला कंबल ओढ़ाकर पैरों पर खड़ा कर देते हैं, वो भी On The Spot.
बाबा का Public Relation भी इतना जोरदार है कि बाबा से इलाज करवाने के लिए रोजाना सैकड़ों मरीजों की भीड़ जुट जाती है. बाबा आते हैं.. कंबल ओढ़ाते हैं और अपनी पूरी शारीरिक ताकत मरीज के शरीर पर झोंक देते हैं. जो पैरों से चल नहीं सकता, उसके पैर खींचते हैं. किसी का हाथ ख़राब है तो उसके हाथों को मरोड़ने लगते हैं. किसी की गर्दन, किसी की उंगलियां तो किसी का चेहरा और किसी की कमर. यानी मरीज के जिस अंग में समस्या है, बाबा उसी पर धावा बोल देते हैं. भले ही मरीज़ की चीखें निकल जाएं. या फिर वो दर्द से बेहाल हो जाए. बाबा की पकड़ ढीली नहीं होती. जितना मरीज़ चीखता है, उसी अनुपात में बाबा के मुखमंडल की भंगिमाए भी बदलती रहती हैं. और फिर होता है चमत्कार.
बाबा के कंबल के सामने तो एलोपैथी, होम्योपैथी, नैचुरोपैथी, यूनानी जैसी तमाम चिकित्सा पद्धतियां फेल हैं. यही नहीं बाबा एकदम धर्मनिरपेक्ष हैं. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई...हर धर्म के लोग बाबा के ऑपरेशन थियेटर में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. और बाबा भी एकदम ऑलराउंडर हैं... किसी को ना नहीं करते हैं. भक्तों को बाबा पर भरोसा है और बाबा भी इसी भरोसे के दम पर अपनी दुकान चलाते हैं. लेकिन बाबा तो बाबा हैं, डॉक्टर तो नहीं हैं. फिर जिस बीमारी को ठीक करने की गारंटी डॉक्टर नहीं लेते. बाबा उस बीमारी को पलक झपकते ही ठीक कैसे कर सकते हैं. लेकिन बाबा तो बाबा हैं, चमत्कार चल नहीं पाया तो ठीकरा मरीज पर ही फोड़ देते हैं.
ज़ी न्यूज़ की टीम जब कंबल वाले बाबा का कमाल देखने पहुंची तो ये देखकर हैरान रह गई कि लोग इतने अंधे-बहरे कैसे हो सकते हैं कि उन्हें ना तो बच्चों पर बेरहमी करता बाबा दिखता है और ना दर्द से निकली मासूम बच्चों की चीखें सुनाई देती हैं. अंधभक्तों की भीड़ बाबा की जय-जयकार करती रहती है. लेकिन ज़ी न्यूज़ के कैमरे ने बाबा का फ्रॉड पकड़ लिया. कैमरे के सामने बाबा ने एक-एक कर कइयों को कंबल उढ़ाए, उनके हाथ पैर मरोड़े. कथित तौर पर उनका इलाज भी किया. लेकिन ज़्यादातर लोग जैसे थे, वैसे ही रह गए. हां कई ऐसे भी थे, जो सहारे के साथ चलते नज़र आए.
कंबल वाले बाबा वाकई इलाज करते हैं? क्या वाकई कंबल से इलाज हो सकता है? क्या ऑटिज़्म जैसी लाइलाज बीमारी महज कुछ सेकेंड में जड़ से ठीक हो सकती है...? विज्ञान की भाषा में इसे अंधविश्वास कहते हैं. लेकिन बाबा इसे अपने चमत्कारी कंबल का कमाल कहते हैं. हमारे सवाल करने पर बाबा ने कहा की मैं आध्यात्मिक आदमी हूं, आप साइंस वाले लोग हो. जहां से साइंस ख़त्म होता है, वहां से आध्यात्म शुरू होता है. जिस अध्यात्म को समझने में विद्वानों ने उम्र गुज़ार दी. कंबल वाले बाबा जैसे सैकड़ों बाबा रोज देश के लाखों लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. और कमाल की बात तो ये है कि ऐसे बाबाओं की पोल खुलने के बाद भी लोग, ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में फंस ही जाते हैं.
मुम्बई के घाटकोपर से हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़कर आप समझ चुके होंगे कि आस्था और अंधविश्वास के बीच एक बहुत महीन सी रेखा होती है. निराश और हताश लोग आसानी से इस रेखा के इस पार से उस पार आ जाते हैं. ऐसे बाबाओं के तथाकथित चमत्कार या दैवीय शक्तियों पर यक़ीन कर बैठते हैं. कंबल वाले बाबा के दरबार में भी कुछ ऐसा ही नज़र आया. हो सकता है कि कुछ लोगों को बाबा के इलाज से फ़ायदा हुआ हो. या हो सकता है कि बाबा के पास वाकई कोई दिव्य शक्ति हो. लेकिन हमने जब बाबा के दरबार में इलाज करवाने आए कुछ लोगों से बात की. तो उनमें से ज़्यादातर का जवाब निराश करने वाला था. उन्हें न तो बाबा के चमक्तारी कंबल से कोई फ़ायदा पहुंचा और न ही उनके इलाज के तौर तरीक़ों से.
अब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर ऐसे बाबाओं की प्रसिद्धि, का कारण क्या है. तो उसका एक जवाब है सियासत. दरअसल देश में कई ऐसे बाबा हैं, जिनको किसी दैवीय शक्ति का वरदान प्राप्त हो या न हो. लेकिन उन्हें सियासी शक्ति का वरदान ज़रूर मिलता रहता है. और ये ऐसी शक्ति है, जिसके प्राप्त होते ही चमक्तार अपने आप होने लगते हैं. कंबल वाले बाबा भी इससे अलग नहीं हैं. क्योंकि वो मुम्बई ऐसे ही नहीं पहुंचे. वो मुम्बई के घाटकोपर से बीजेपी विधायक राम कदम के आमंत्रण पर अपना दरबार लेकर वहां पहुंचे हैं.
वैसे आपने नेताओं के द्वारा अपने क्षेत्र में मेडिकल कैम्प या हेल्थ चेकअप कैम्प लगवाने की ख़बरें तो देखी-सुनी होंगी. लेकिन रामकदम इससे भी एक कदम आगे निकल गए. उन्होंने तो बकायदा कंबल वाले बाबा का कैम्प लगवा दिया. और राम कदम इसे अपने और अपने क्षेत्र की जनता के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं मानते हैं. क्योंकि बाबा के कंबल से लोगों को कोई फ़ायदा हुआ हो या न हुआ हो. लेकिन विधायक रामकदम को अपने लिए चमक्तार की पूरी उम्मीद है.
वैसे रामकदम उस प्रदेश से विधायक हैं. जहां अंधविश्वास को लेकर वर्ष 2013 में बाकायदा क़ानून लागू किया गया था. यही नहीं उन्होने कभी न कभी भारत के संविधान को भी पढ़ा होगा, जिसके अनुच्छेद 51 में कहा गया है कि “हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे!” लेकिन आमतौर पर ये वैज्ञानिक दृष्टिकोण, कथित दैवीय शक्तियों का दावा करने वाले बाबाओं के सामने Surrender कर दिया जाता है. अब इसकी क्या वजह हो सकती है, ये आप भी समझ ही गए होंगे.
यहां हम ये स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम किसी की आस्था, धार्मिक भावना या रिवाज़ों को नीचा नहीं दिखा रहे हैं. और न ही हमारी ऐसी कोई नीयत है. लेकिन हम इतना ज़रूर चाहते हैं कि आप आस्था और अंधविश्वास के बीच के इस अंतर को समझ सकें.
DNA : कंबल उढ़ा कर बीमारी भगाने के दावों का सच. कथित चमत्कार का वैज्ञानिक विश्लेषण#DNA #DNAWithSourabh @saurabhraajjain pic.twitter.com/SIYWAIyeLV
— Zee News (@ZeeNews) September 20, 2023