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नई दिल्ली: आज भारत में और पश्चिमी देशों में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जो ये कह रहे हैं कि भारत को इस समय पुतिन का साथ नहीं देना चाहिए. तो आज आपको ये भी बताएंगे कि बदलती परिस्थितियों में भारत को अमेरिका का साथ देने में फायदा है या रशिया का साथ देने में फायदा है?
सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि भारत को अमेरिका और पश्चिमी देशों का साथ क्यों नहीं देना चाहिए. पश्चिमी देशों ने हमेशा से भारत के हितों के खिलाफ काम किया है. उदाहरण के लिए जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छे 370 को हटाया था तो इन देशों ने भारत की आलोचना की थी. गलवान में जब चीन ने धोखे से भारतीय सेना पर हमला किया, तब भी ये देश भारत के साथ खड़े नहीं हुए थे. 1999 के कारगिल युद्ध में भी भारत को इन देशों का साथ नहीं मिला था. तब भारत चाहता था कि अमेरिका अपनी सैटेलाइट की मदद से कारगिल में छिपे पाकिस्तान के सैनिकों की लोकेशन उसे बताए. लेकिन अमेरिका ने इस मदद से भी इनकार कर दिया था.
जबकि रशिया ने हमेशा से भारत के हितों का ध्यान रखा है. कश्मीर के मुद्दे पर रशिया ने भारत का साथ दिया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत का साथ दिया है. 1971 के युद्ध में रशिया ने भारत सरकार के साथ ये समझौता किया था कि वो भारत पर हुए युद्ध को रशिया पर हुआ युद्ध मानेगा. कारगिल युद्ध में भी भारत को रशिया का साथ मिला था.
इस युद्ध के बाद एक नया World Order स्थापित होगा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1990 तक दुनिया में दो महाशक्तियां थी. एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक Uni Polar World स्थापित हुआ, जिसमें सत्ता का एक ही मुख्य केन्द्र था, अमेरिका. अब रशिया ने इस World Order को खुली चुनौती दे दी है और इसमें भारत का भी हित है. क्योंकि इस युद्ध के बाद एक Multi Polar World उभर कर आएगा, जिसमें अमेरिका और रशिया के अलावा भारत, चीन और यूरोपीय देशों की भूमिका अहम हो जाएगी. इसके अलावा इस Multi Polar World में रशिया की भूमिका भारत के लिए महत्वपूर्ण बनी रहेगी.
अभी अमेरिका के राष्ट्रपति Joe Biden का एक बयान काफी चर्चा में है और इस चर्चा की वजह ये नहीं है कि Joe Biden ने यूक्रेन में अमेरिकी सेना को उतारने का ऐलान किया है. बल्कि इस चर्चा की वजह बाइडेन का वो भाषण है, जिसमें उन्होंने यूक्रेन की जगह गलती से ईरान का नाम ले दिया. बाइडेन ने अपने भाषण में कहा कि व्लादिमीर पुतिन टैंकों के साथ कीव को तो घेर सकते हैं, लेकिन वो कभी भी ईरान के लोगों के दिलों और आत्माओं को जीत नहीं सकते. यानी वो कहना ये चाहते थे कि पुतिन यूक्रेन के लोगों का दिल नहीं जीत सकते. लेकिन उन्होंने इसकी जगह ईरान का नाम ले दिया.
आपको बता दें कि Joe Biden की उम्र 79 वर्ष है और वो ऐसी गलती पहले भी कर चुके हैं. पिछले साल उन्होंने कमला हैरिस को 'राष्ट्रपति हैरिस' कह दिया था. यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंकने की एक बड़ी वजह अमेरिका और यूरोपियन देश भी हैं. जो लगातार ये कहते रहे कि वो यूक्रेन के साथ हैं और उसकी पूरी मदद करेंगे, लेकिन जब रशिया ने यूक्रेन पर हमला किया तो इन देशों ने यूक्रेन को अकेला छोड़ दिया.
इस विश्वासघात का दर्द Poland में दिखाई दिया, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पहुंचे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद यूक्रेन की एक पत्रकार ने बोरिस जॉनसन को खूब डांटा और कहा कि यूक्रेन कि जनता रो रही है लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देश चुपचाप बैठे हुए हैं और रशिया पर लगाए उनके प्रतिबंधों का आखिर फायदा क्या हो रहा है?
जब दो देशों के बीच युद्ध होता है तो Line of Fire में सिर्फ सैनिक नहीं होते बल्कि एक देश की अर्थव्यवस्था भी इस दायरे में आ जाती है और इस युद्ध में भी ऐसा ही हो रहा है. इस युद्ध की वजह से रूस की Currency Ruble को काफी नुकसान पहुंचा है और आज की स्थिति में भारत के रुपये की स्थिति, रशिया के Ruble से बेहतर है. यानी रुपया, Ruble पर भारी साबित हो रहा है.
युद्ध शुरू होने से पहले 22 फरवरी को एक डॉलर लगभग 79 Ruble के बराबर था. लेकिन आज एक डॉलर 109 Ruble के बराबर हो चुका है. सरल शब्दों में समझें तो अगर आपके पास एक डॉलर है और आप इसे रशिया की करेंसी में Exchange कराते हैं तो इसके बदले अब आपको एक डॉलर के लिए 109 Ruble मिल जाएंगे. जबकि 10 दिन पहले एक डॉलर के बदले लगभग 80 Ruble मिलते थे.
अगर रुपये से Ruble की तुलना करें तो युद्ध शुरू होने से पहले 22 फरवरी को एक रुपया, लगभग एक Ruble के बराबर था. लेकिन अब एक रुपया, लगभग डेढ़ Ruble के बराबर हो गया है. इस हिसाब से अगर आपके पास 100 रुपये हैं तो वो 146 Ruble बन जाएंगे.
वर्ष 2014 के बाद व्लादिमीर पुतिन ने भले ही रशिया की सीमाओं का विस्तार किया हो लेकिन वो रशिया की Currency को मजबूत नहीं कर पाए. क्योंकि आज जिस Ruble की हालत रुपये से भी कमजोर है, वही Ruble वर्ष 2014 में दुनिया की सबसे मजबूत Currency में से एक थी. उस समय एक डॉलर, 30 Ruble के बराबर था और आज एक डॉलर 109 Ruble के बराबर है. Ruble के अलावा इस युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें 113 Dollar प्रति Barrel तक पहुंच गई हैं. पिछले 11 साल में ये कच्चे तेल की सबसे ज्यादा कीमत है.
कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत को इनके Import पर ज्यादा पैसे चुकाने होंगे और इसका असर भी आम लोगों पर पड़ेगा. आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल और नेचुरल गैस समेत दूसरे petroleum products काफी महंगे हो जाएंगे. इसके अलावा पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ी तो जरूरी सामान का Transportation महंगा हो जाएगा. यानी सब्जियां, फल और दूसरी जरूरी चीजें महंगी हो जाएंगी.
अगर अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा रशिया के Energy सेक्टर पर प्रतिबंध बढ़ाए जाते हैं तो इससे आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच जाएंगी. ये कीमतें 130 Dollar प्रति Barrel तक पहुंच सकती हैं.
- इस युद्ध के बीच एक खबर की दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है और ये खबर Alcohol Drink, Vodka के बारे में है. दुनिया के ज्यादातर देशों में अचानक से Vodka की बिक्री घट गई है और लोग रशिया का विरोध करने के लिए इस Alcohol Drink को नहीं खरीद रहे हैं.
- इसके अलावा कुछ देशों ने रशिया में बनी Vodka पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. इन देशों में अमेरिका है, Finland है, Denmark है और Lithuania (लिथुआनिया) जैसे छोटे देश भी हैं.
- इसके अलावा New Zealand और ऑस्ट्रेलिया की तीन बड़ी Alcohol Retail Chains ने अपने सभी स्टोर से रशिया में बनी Vodka की बोतलें हटा कर वहां यूक्रेन के झंडे लगा दिए हैं और लोगों से अपील की है कि वो रशिया में बनी Vodka ना खरीदें.
- Vodka को रशिया की Traditional Alcohol Drink माना जाता है. 14वीं शताब्दी में जब Poland और यूक्रेन जैसे देश रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे, उस समय पहली बार Vodka की खोज Poland में हुई थी. इसके बाद ये Drink, रूसी साम्राज्य में इतनी लोकप्रिय हुई कि लोगों ने इसे घर में ही बनाना सीख लिया और 20वीं शताब्दी में सोवियत संघ के विघटन के बाद रशिया ने इसे अपनी एक Soft Power के तौर पर स्थापित कर लिया.
- उदाहरण के लिए, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति Richard Nixon (रिचर्स निक्सन) ने वर्ष 1994 में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने बताया था कि, जब भी Moscow में बड़े आयोजन होते हैं, तब रशिया के नेता उन्हें Vodka पीने पर जोर देते हैं. उस समय Richard Nixon ने ये सलाह दी थी कि अमेरिका के नेताओं को रशिया के Vodka के प्रभाव में नहीं आना चाहिए क्योंकि ऐसा करके रशिया अमेरिका से अपनी सभी बातें मनवा सकता है. इसके अलावा जब पुतिन, KGB में बतौर एजेंट काम करते थे, तब उन्होंने एक पत्रकार को कहा था कि अगर किसी इंसान से कोई काम कराना हो तो उनके पास इसके लिए तीन तरीके हैं. पहला Blackmail, दूसरा Vodka और तीसरा, उसे मारने की धमकी.
रशिया को चुनौती सिर्फ युद्ध के मोर्चे पर नहीं मिल रही. बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी उसके लिए लड़ाई बहुत मुश्किल हो गई है. रशिया यूक्रेन युद्ध पर प्रति दिन 15 Billion Pound यानी डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. इस हिसाब से इस युद्ध पर हर मिनट का खर्च हुआ 100 करोड़ रुपये. ये इतना पैसा है कि इससे अफगानिस्तान में भुखमरी का सामना कर रहे लाखों लोगों का चार साल तक पेट भरा जा सकता है. यानी रशिया को इस युद्ध की एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. रशिया की कम्पनियों को भी यूक्रेन संकट से प्रति दिन लगभग 15 Billion Dollar यानी एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है.
इसके अलावा रशिया के कुछ बैंकों को वित्तीय लेन-देन के लिए इस्तेमाल होने वाले अंतर्राष्ट्रीय मंच SWIFT से भी बैन कर दिया है. इनमें रशिया का Central Bank भी है. आज ही European Union ने SWIFT से 7 रूसी बैंकों को बाहर करने का फैसला किया.
SWIFT से रशिया के बैंकों को हटाने का उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर हो सकता है. SWIFT का अर्थ है, Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication. ये एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच है, जिसके जरिए दुनियाभर के Banks और वित्तीय संस्थाएं, एक दूसरे के साथ विश्वसनीय और गोपनीय तरीके से कारोबार करती हैं, सूचनाएं साझा करती हैं और एक दूसरे को Loans भी देती हैं.
ये पूरी व्यवस्था काफी जटिल होती है और इसमें ये सुनिश्चित करना होता है कि वित्तीय लेन-देन के समय कोई हैकर्स इसे नुकसान ना पहुंचा पाए और SWIFT का इस्तेमाल इसी के लिए होता है। वर्ष 2021 में दुनिया की 11 हजार वित्तीय संस्थाएं SWIFT पर रजिस्टर्ड थीं और इन संस्थाओं द्वारा प्रतिदिन 4 से साढ़े 4 करोड़ Messages यानी संदेश और सचूनाएं इस मंच के जरिए एक दूसरे के साथ शेयर की गईं और इस समय दुनिया के 200 देश इसका इस्तेमाल करते हैं. SWIFT से किसी देश को बैन करना, कैसे उस देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ईरान है.
वर्ष 2012 में ईरान के बैकों को SWIFT से बाहर कर दिया गया था, जिसके बाद ईरान का तेल निर्यात, 30 लाख बैरल प्रति दिन से घट कर 10 लाख लाख बैरल प्रति दिन रह गया था. दरअसल, होता ये है कि, जब किसी देश को इस Platform से हटाया जाता है तो उस देश की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने की क्षमता सीमित हो जाती है. अगर आप अब भी इस बात को नहीं समझे तो हम आपको एक सरल उदाहरण से समझाते हैं.
मान लीजिए आप बाजार में किसी दुकान से कोई सामान खरीदने गए हैं और उस दुकान पर लेन-देन के लिए केवल डिजिटल पेमेंट Apps का इस्तेमाल होता है. लेकिन इन सभी पेमेंट Apps ने कुछ कारणों से आपको ब्लॉक किया हुआ है तो आप उस दुकान से चाह कर भी कुछ नहीं खरीद पाएंगे. ठीक इसी तरह SWIFT Platform पर होता है. जिन देशों की वित्तीय संस्थाएं और Banks इस Platform पर नहीं होते, उन देशों के लिए दूसरे देशों के साथ व्यापार करना काफी मुश्किल हो जाता है और रशिया के सामने भी यही चुनौती है.
इससे रशिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल, गैस और हथियारों का कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा. रशिया अतंर्राष्ट्रीय Loans नहीं ले पाएगा और डॉलर में उसके लिए व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा. वैसे रशिया वर्ष 2014 में ही समझ गया था कि भविष्य में उसे अलग-थलग करने के लिए अमेरिका जैसे देश उसे SWIFT से बैन कर सकते हैं, इसलिए वो पिछले 8 वर्षों में SWIFT जैसी की एक और व्यवस्था को विकसित कर चुका है. इसे System for Transfer of Financial Message यानी SPFS कहा जाता है. हालांकि, SWIFT की तुलना में ये मंच अभी काफी अस्थिर और कमजोर है. SWIFT पर दुनिया की 11 हजार वित्तीय संस्थाएं है और इस पर केवल 400 संस्थाएं हैं.
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