औरंगाबाद हिंसा को शिवसेना ने बताया 'पूर्व नियोजित', कहा- ये गृह विभाग की विफलता थी
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औरंगाबाद हिंसा को शिवसेना ने बताया 'पूर्व नियोजित', कहा- ये गृह विभाग की विफलता थी

शिवसेना ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हुई झड़पों को हिंसा का ‘‘साम्प्रदायिक’’ और ‘‘पूर्व नियोजित’’ कृत्य बताया है. इन झड़पों में दो लोगों की मौत हो गई थी.

औरंगाबाद हिंसा में हुई थी दो लोगों की मौत, 60 से ज्यादा लोग हुए थे घायल (फाइल फोटो-ANI)

मुंबई: शिवसेना ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हुई झड़पों को हिंसा का ‘‘साम्प्रदायिक’’ और ‘‘पूर्व नियोजित’’ कृत्य बताया है. इन झड़पों में दो लोगों की मौत हो गई थी. पार्टी ने सुरक्षा खामियों और शहर के लिए पुलिस आयुक्त नियुक्त करने में विफल रहने को लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाले गृह विभाग पर भी निशाना साधा. मराठावाड़ा क्षेत्र में स्थित इस शहर में पानी के गैरकानूनी कनेक्शनों को लेकर दो समूहों के बीच शुक्रवार रात को हुई झड़पों में 65 वर्षीय एक व्यक्ति और 17 वर्षीय एक लड़के की मौत हो गई थी.

  1. औरंगाबाद हिंसा पर शिवसेना ने साधा सीएम देवेंद्र फडणवीस पर निशाना
  2. शिवसेना ने कहा- दंगे साम्प्रदायिक थे ना कि दो समूहों के बीच की झड़पें
  3. दंगे इस बात का सबूत हैं कि सुरक्षा एजेंसियों का नेटवर्क ध्वस्त हो गया है

सामना में संपादकीय के जरिए सीएम फडणवीस पर निशाना
शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि दंगे साम्प्रदायिक थे ना कि दो समूहों के बीच की झड़पें. दंगों के पहले 15 मिनट में जिस तरीके से पेट्रोल बमों का इस्तेमाल किया गया, वह यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि यह पूर्व नियोजित हमला था.’’

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संपादकीय में कहा गया है कि औरंगाबाद राज्य के ‘‘अत्यधिक संवेदनशील इलाकों’’ में से एक है, इसके बावजूद शहर में पुलिस आयुक्त का पद कुछ समय से खाली पड़ा है. ‘‘यह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाले गृह विभाग की नाकामी है. या फिर ऐसा इसलिए है कि मुख्यमंत्री वहां भाजपा समर्थक आईपीएस अधिकारी नियुक्त करना चाहते हैं ?’’

पुलिस के अनुसार, हिंसा में पुलिस कर्मियों सहित 60 से अधिक लोग घायल हुए हैं. करीब 100 दुकानों को आग लगा दी गई और 40 से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिए गए.

पूर्व में सूत्रों ने बताया था कि पानी के अवैध कनेक्शनों के खिलाफ नगर निगम के अभियान चलाने से औरंगाबाद के मोती करंजा इलाके में बीते कुछ दिनों से तनाव था. इलाके में एक पूजा स्थल से अवैध जल कनेक्शन हटाने के बाद तनाव ने सांप्रदायिक रंग ले लिया.

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सुरक्षा एंजेंसियों का नेटवर्क ध्वस्त हुआ
शिवसेना ने इन झड़पों के कारणों का मजाक उड़ाते हुए कहा कि पानी के अवैध कनेक्शनों के खिलाफ यह अभियान, एक गैराज में मोबाइल फोन बदलने पर झगड़ा, पान की गैरकानूनी दुकान हटाने और सड़े हुए आम बेचने की शिकायत करने वाले ग्राहक की कथित तौर पर पिटाई करने जैसा लग रहा है.

भाजपा के सहयोगी दल ने कहा कि ऐसी घटनाएं दंगों का कारण नहीं होनी चाहिए. उसने कहा, ‘‘ये दंगे इस बात का सबूत हैं कि सुरक्षा एजेंसियों का नेटवर्क ध्वस्त हो गया है.’’

मुख्यमंत्री के दावों पर उठाया सवाल
मराठी भाषा के दैनिक अखबार ने कहा कि पुणे जिले में कोरेगांव - भीमा हिंसा से महाराष्ट्र की छवि को पहले ही नुकसान पहुंचा था जहां इस साल एक जनवरी को दलितों को निशाना बनाया गया था.

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शिवसेना ने कहा कि इसके अलावा अहमदगनर में ‘‘दोहरी हत्याओं’’ की दो बड़ी घटनाएं हुई और अब भी मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि स्थिति नियंत्रण में है. उसने कहा कि ऐसे मामलों में जांच के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का कोई काम नहीं है. उसने कहा, ‘‘दंगाइयों ने पूरे शाहगंज पेठ (औरंगाबाद में बाजार का एक इलाका) में आग लगा दी. कई मकानों और वाहनों को जला दिया गया या क्षतिग्रस्त कर दिया गया और एक वरिष्ठ नागरिक ने अपनी जान गंवा दी. कैसे कुछ लोग इतना क्रूर कृत्य कर सकते हैं?’’

महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था नहीं
शिवसेना ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में कानून एवं व्यवस्था नहीं है.’’ पार्टी ने कहा कि कोरेगांव - भीमा हिंसा के दौरान किसी भी पुलिसकर्मी ने दंगाइयों पर गोलियां नहीं चलाई या लाठीचार्ज नहीं किया. दूसरी तरफ, औरंगाबाद में पुलिस आयुक्त की गैरमौजूदगी में पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चलाई. अखबार ने कहा कि यह ‘‘संदिग्ध’’ है.

सामना में लिखा गया है, ‘‘हमारी इस बात में रूचि नहीं है कि यह सांप्रदायिक दंगा था या नहीं. यह पता करना राज्य की जिम्मेदारी है कि हिंसा क्यों हुई लेकिन इस घटना ने दिखा दिया कि शहर के कुछ इलाकों में ऐसे दंगों के लिए सारे साजोसामान हैं.’’

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