VHP के कार्यक्रम में ईसाई से हिंदू बनी महिला, कोर्ट ने धर्मांतरण को बताया सही
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VHP के कार्यक्रम में ईसाई से हिंदू बनी महिला, कोर्ट ने धर्मांतरण को बताया सही

याचिका दाखिल करने वाली डेजी फ्लोरा का जन्म ईसाई परिवार में हुआ. लेकिन बाद में उसने वनावन (अनुसूचित जाति) के युवक से शादी कर ली. उन्हें एससी एसटी का सटिफकेट भी मिल गया.

VHP के कार्यक्रम में ईसाई से हिंदू बनी महिला, कोर्ट ने धर्मांतरण को बताया सही

चेन्नई : तमिलनाडु में एक ईसाई महिला के फिर से हिंदू धर्म स्वीकारने पर अपनी स्वीकृति दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा हिंदू धर्म में वापसी के लिए आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम को भी सही माना है. इसके साथ ही महिला टीचर को इस मामले में बड़ी राहत दी है. दरअसल ये मामला राज्य में उस महिला से जुड़ा हुआ है, जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार ने ये कहते हुए रोक दी थी, उसे तब तक अनुसूचित जाति का नहीं माना जा सकता, जब तक समाज उसे स्वीकार न कर ले. इसके बाद ये मामला कोर्ट में पहुंच गया था. याचिका दाखिल करने वाली डेजी फ्लोरा का जन्म ईसाई परिवार में हुआ. लेकिन बाद में उसने वनावन (अनुसूचित जाति) के युवक से शादी कर ली. उन्हें एससी एसटी का सटिफकेट भी मिल गया. उनका नया नाम मेगलई हो गया. जब उन्होंने जूनियर ग्रैजुएट असिस्टेंट के लिए आवेदन किया तो धर्म परिवर्तन के कारण उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं दिया गया. इसके बाद वह कोर्ट की शरण में चली गईं. अब हाईकोर्ट ने 2005 में उनकी नियुक्ति की आदेश दे दिए हैं.

इस मामले में कोर्ट ने अपने फैसले में महिला और विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम को सही माना. जस्टिस आर सुरेश कुमार ने उनके करीब 20 साल पहले किए गए धर्मांतरण को सही माना है. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा, 'हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित संगठनों में से एक विश्व हिंदू परिषद है. ये लगातार हिंदू धर्म की महानता और समृद्धि और हिंदू रीति-रिवाजों का देश में प्रसार कर रहा है. विश्व हिंदू परिषद ने 1 नवंबर, 1998 को 'शुद्धि सतंगु' (धार्मिक पूजा) किया था. उसके बाद याचिकाकर्ता डेजी फ्लोरा से बदलकर ए मेगलई हो गईं. जस्टिस कुमार ने अपने आदेश में सरकार के उस आदेश का भी उल्लेख किया जिसमें धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को भी आरक्षण के फायदे दिए गए हैं.

राज्य सरकार ने माना नहीं दिए कोई सबूत
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से वकील ने कहा, मेगलाई ने अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं दिया, जिससे ये साबित होता हो कि वह हिंदू मान्यताओं का अनुसरण कर रही हैं. इसके अलावा किसी और हिंदू कम्यूनिटी ने उन्हें स्वीकार करने की बात नहीं कही है. कोर्ट में राज्य के वकील नर्मदा संपथ ने कहा, कोई तब तक अनुसूचित जाति का नहीं होता, जब तक उसका समाज उसे स्वीकार नहीं कर ले.  इसके बाद जस्टिस कुमार ने कहा कि आसपास के लोगों की गवाही से यह साबित होता है कि महिला को समाज ने स्वीकार कर लिया है.

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