इसमें आइरिस के पीछे विट्र्स (आंख में पानी वाली जगह) में बिना सहारे यानी झुलता हुआ लेंस फिक्स किया जाता है. पहले ऐसे ऑपरेशन के लिए मरीजों को दिल्ली के एम्स और जयपुर में जाना पड़ता था.
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मुकेश सोनी, कोटा: सम्भाग में पहली बार एमबीएस अस्पताल के नेत्र विभाग में नई तकनीक "रिट्रो प्यूपिलरी आइरिस क्लालेंस" प्रत्यारोपण पद्धति से मरीज के विशेष आइरिस क्लोरेंस लेंस लगाया गया है. नेत्र विभाग के सीनियर प्रोफेसर और यूनिट हेड डॉ. अशोक मीणा ने बताया कि यह विशेष परिस्थितियों में किया जाता है.
इसमें आइरिस के पीछे विट्र्स (आंख में पानी वाली जगह) में बिना सहारे यानी झुलता हुआ लेंस फिक्स किया जाता है. पहले ऐसे ऑपरेशन के लिए मरीजों को दिल्ली के एम्स और जयपुर में जाना पड़ता था. अब इस पद्धति से कोटा सम्भाग के सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन होने लगा है. कोटा के शिवपुरा श्याम नगर निवासी 65 वर्षीय आनंदीलाल की दाई आंख का साल भर पहले मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था.
उस समय लेंस नहीं लगाया गया था. मरीज को तकलीफ होने लगी थी. डॉ. अशोक मीणा ने बताया कि लेकिन आंख में कमजोरी के कारण मरीज के लेंस लगाना आसान नहीं था. मरीज की आंख के अंदर साधारण लेंस में आर्टिफिशियल लेंस का भार सहन करने की क्षमता नहीं थी.
ऐसे में "रिट्रो प्यूपिलरी आयरिश क्लालेंस" प्रत्यारोपण पद्धति से मरीज के नॉर्मल लेंस की जगह पर विट्र्स के ऊपर, आइरिस के पीछे ये लेंस फिक्स किया गया यानी साधारण भाषा मे आइरिस के पीछे विट्र्स (पानी वाली जगह/ जेली जैसा पदार्थ) में झूलता लेंस प्रत्यारोपण किया है.
पहले सर्जन या तो ऐनटिरियर लेंस या ऐनेटिरियर आयरिश क्लालेंस लगाते थे. जिसमें भविष्य में आंख में कालापानी बनने, कॉर्निया की सफेद होना या आंख का लाल होने की संभावना होती थी लेकिन इस आधुनिक पद्धति से विशेष आइरिस क्लालेंस को साधारण लेंस की साधारण पोजिशन पर ही आइरिश के पीछे प्यूपिलरी क्षेत्र में फिक्स किया जाता है. जिससे कालापानी बनना, कॉर्निया खराब होने की संभावना बहुत कम हो जाती है. निजी अस्पतालों में एक आंख के ऑपरेशन पर करीब 25 से 30 हजार का खर्चा आता है. सरकारी अस्पतालों में 7 से 10 हजार के खर्च पर मरीज का ऑपरेशन हो जाता है. मरीज आनंदीलाल का भामाशाह के सहयोग से ऑपरेशन किया गया है.