दशहरे के दिन जोधपुर के इस मंदिर में जुटते हैं रावण के भक्त, मनाते हैं शोक
Advertisement
trendingNow1582712

दशहरे के दिन जोधपुर के इस मंदिर में जुटते हैं रावण के भक्त, मनाते हैं शोक

आज जब पूरे देश में रावण का पुतला दहन हो रहा है. वहीं, देश का एक ऐसा मंदिर भी है जहां रावण की पुजा होने के साथ उनकी मौत का शोक मनाया जाता है.

2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया. (प्रतीकात्मक फोटो)

भवानी भाटी, जोधपुर: आज पूरे देश में रावण (Rawan) का दहन होगा, बुराई पर अच्छाई की जीत होगी, जगह जगह रावण के पुतले फूंके जाएंगे. लेकिन जोधपुर(Jodhpur) के मेहरानगढ़ में रावण की पूजा होती. तलहटी में पहाड़ियों के बीच रावण और मंदोदरी का मंदिर है. मंदिर जहां रावण के भक्त उसकी पूजा करने आते हैं. 

मान्यता है कि गोधा गोत्र के ब्राह्मणों (Brahmins) ने इस मंदिर को बनवाया था. मंदिर में रावण और मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं भी स्थापित है. दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है. 

2008 में हुआ था मंदिर का निर्माण
मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दवे का दावा है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए थे. पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे. लेकिन 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया. तभी से लोग रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को लेने की कोशिश करते हैं. 

माना जाता है वेदों का ज्ञाता और संज्ञीतज्ञ
रावण के मंदिर के पुजारी कमलेश दवे का कहना है कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे. ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्रा रावण का आशीर्वाद लेने मंदिर में आते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है. इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते है. शोक मनाते हुए स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद ही भोजन करते हैं. ऐसे में रावण दहन के दिन लोग शोक मनाते हैं. इस दिन आस पास के लोग भी रावण के दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुंचते हैं. रावण के मंदिर में दर्शन कर उनकी अच्छाई को ग्रहण करते हैं. 

राजनेता भी लगाते हैं हाजिरी
दवे का कहना है कि मंदिर में राजनेता भी रावण के दर्शन करने आते हैं. जैसा रावण ने लक्ष्मण को राजनीति की सीख दी थी, ऐसे में वह एक महान राजनीतिज्ञ भी थे.

जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कहानियां
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राक्षसों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा से लग गया. राजा ने हेमा को खुश करने के लिए जोधपुर शहर के मंडोर में किले का निर्माण करवाया. इस दोनों से एक बल सुंदर पुत्री का जन्म हुआ. जिसका नाम मंदोदरी(Mandodari) रखा. मयासुर का देवताओं के साथ विवाद हो गया और इसके बाद मयासुर को मंडोर छोड़ कर जाना पड़ा. मयासुर के जाने के बाद मंडूक ऋषि ने उसकी बेटी मंदोदरी की देखभाल की लेकिन ऐसी सुंदर रूपवती मंदोदरी की सबसे बलशाली और पाराक्रमी विद्वान राजा रावण के साथ शादी करवाई. रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर जोधपुर पहुंचा. मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी रावण की चंवरी के निशान भी हैं. इसके बाद मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़(Marwad) की राजधानी बनाया. जहां राठौड़ वंश ने सदियों तक शासन किया. 1459 में राठौड़ राजवंश ने जोधपुर(jodhpur) की स्थापना के बाद अपनी राजधानी बदल दी. आज भी यहां मंडोर किले के अवशेष मौजूद है.

Muzammil Ayyub, News Desk

Trending news