याद करो कुर्बानी: सिर में लगी गोली, फिर नहीं चूका निशाना, 6 बंकर और 11 दुश्‍मनों को किया खाक
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याद करो कुर्बानी: सिर में लगी गोली, फिर नहीं चूका निशाना, 6 बंकर और 11 दुश्‍मनों को किया खाक

महज, 24 साल के उम्र में युद्ध कौशल, पराक्रम और वीरता के अभूतपूर्व प्रदर्शन करने वाले लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्‍मानित किया गया. 

याद करो कुर्बानी:  सिर में लगी गोली, फिर नहीं चूका निशाना, 6 बंकर और 11 दुश्‍मनों को किया खाक

नई दिल्‍ली: याद करो कुर्बानी की 12वीं कड़ी में हम आपको गोरखा राइफल्‍स के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय की वीरगाथा बनाते जा रहे है. कारगिल के युद्ध में अपनी जीवन का सर्वोच्‍च बलिदान देने वाले लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय का जन्‍म 25 जून 1975 को उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर जिले स्थित रुधा गांव में हुआ था. 

  1. नापाक दुश्‍मन के बंदूक की खामोशी दे रही थी साजिश का संदेश
  2. चारों तरफ लगातार बरस रहीं गोलियों से लगाया दुश्‍मन का अंजाद
  3. कंधे और टांगो में गोली लगने के बावजूद नेस्‍तनाबूद किए 2 बंकर

उन्‍होंने अपने सैन्‍य जीवन की शुरुआत 11वीं गोरखा रेजीमेंट से की. वाकया कारगिल युद्ध के दौरान का है. उन दिनों लेफ्टिनेंट मनोज की तैनाती जम्‍मू और कश्‍मीर में थी. गोरखा राइफल्‍स की बी कंपनी को खालूबार में मौजूद पाकिस्‍तानी सेना के घुसपैठियों को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्‍मेदारी दी गई थी. गोरखा रेजीमेंट से इस ऑपरेशन के लिए लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय की टीम का चुनाव किया. 

नापाक दुश्‍मन के बंदूक की खामोशी दे रही थी साजिश का संदेश
लेफ्टिनेंट मनोज के नेतृत्‍व में 5वीं प्‍लाटून के टीम 2-3 जुलाई 1999 को मंजिल की तरफ कूच कर गए. लेफ्टिनेंट मनोज को पता था कि दुश्‍मन तक पहुंचना इतना आसान नहीं है. दुश्‍मन की लोकेशन ऐसी है कि वह भारतीय सेना की हर गतिविधि पर न केवल नजर रख सकता है, बल्कि वह उन्‍हें अपनी गोलियों का निशाना भी बना सकता है. लक्ष्‍य बेहद मुश्किल था, लेकिन लेकिन लेफ्टिनेंट मनोज के हौसले बुलंद थे.

लेफ्टिनेंट मनोज अपनी टीम से साथ दुश्‍मन की तरफ बढ़ रहे थे, दुश्‍मनों की बंदूकों ने अभी तक खामोशी अख्तियार कर रखी थी. दुश्‍मन की इस खामोशी का मतलब लेफ्टिनेंट मनोज को समझ में आ चुका था. उन्‍हें अंदाजा लग गया था कि दुश्‍मन कोई बड़ी साजिश रच रहा है. तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए लेफ्टिनेंट मनोज दुश्‍मन के बेहद करीब तक पहुंचने में सफल हो गए थे.

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अपनी जीत का नजारा देखते देखते लेफ्टिनेंट मनोज की आंखे सदा के लिए बंद होती चली गई. उन्‍होंने रणभूमि में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे दिया. 

चारों तरफ लगातार बरस रहीं गोलियों से लगाया दुश्‍मन का अंजाद 
तभी अचानक, पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों की आटोमैटिक राइफल ने गर्म लोहा उगलना शुरू कर दिया. हालात ऐसे थे जैसे आसमान से गोलियों की बरसात हो रही हो. दुश्‍मन का इरादा भले ही इन गोलियों से भारतीय सेना के जांबाजों को शिकार बनाना हो, लेकिन लेफ्टिनेंट इन्‍हीं गोलियों की मदद से अपनी नई रणनीति तय कर रहे थे. इन गोलियों की दिशा और फायर की आवाज से लेफ्टिनेंट मनोज यह पता लगाने में सफल रहे कि गोलियां कहां से चलाई जा रही है. 

दुश्‍मनों के बंकर खोज निकालने के बाद लेफ्टिनेंट मनोज का पहला लक्ष्‍य इन बंकरों को तबाह कर आतंकियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना को अंजाम तक पहुंचाना था. उन्‍होंने, हवलदार भीम बहादुर को निर्देश दिया कि वह अपनी टुकड़ी के साथ दुश्‍मनों के दो बंकरों पर दाहिनी तरफ से हमला करें. वहीं लेफ्टिनेंट मनोज खुद दुश्‍मन के चार बंकरों को नष्‍ट करने का लक्ष्‍य लेकर आगे बढ़ गए. 

कंधे और टांगो में गोली लगने के बावजूद तबाह किए दो बंकर चार दुश्‍मन 
अपनी कार्रवाई के दौरान लेफ्टिनेंट मनोज ने सफलतापूर्वक दुश्‍मन के दो बंकर ध्‍वस्‍त कर चार आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया. दो बंकरों पर फतह हासिल करने के बाद लेफ्टिनेंट मनोज तीसरे बंकर की तरफ बढ़ चले. तभी, दुश्‍मन की तरफ से आई गोली ने लेफ्टिनेंट मनोज के कंधे और टांगों को जख्‍मी कर दिया. गंभीर रूप से जख्‍मी होने के बावजूद लेफ्टिनेंट मनोज दुश्‍मन का तीसरा बंकर भी ध्‍वस्‍त करने में सफल रहे.

लेफ्टिनेंट मनोज का रुख अब दुश्‍मन के चौथे बंकर की तरफ था. बंकर को ध्‍वस्‍त करने के लिए वह ग्रेनेड फेंकने ही वाले थे, तभी दुश्‍मन के चौथे बंकर से दुश्‍मन ने मशीन गन से फायर शुरू कर दिया. इस फायरिंग के दौरान एक गोली लेफ्टिनेंट मनोज  के माथे पर आ धंसी. माथे पर गोली लगने के बावजूद लेफ्टिनेंट मनोज दुश्‍मन के चौथे बंकर में ग्रेनेड फेंकने में सफल रहे. इस ग्रेनेड के धमाके के साथ बंकर में मौजूद सभी दुश्‍मन मारे गए.

जीत का नजारा देखते देखते सदा के लिए बंद हो गई आंखे
अब मौके पर मौजूद सभी की सभी छह चौकियां भारतीय सेना के कब्‍जे में थे. अपनी जीत का नजारा देखते देखते लेफ्टिनेंट मनोज की आंखे सदा के लिए बंद होती चली गई. उन्‍होंने रणभूमि में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दे दिया. अपनी शहादत से पहले लेफ्टिनेंट मनोज ने इस मोर्चे पर आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्‍तानी सेना के 11 सैनिकों को मार गिराया था. 

महज, 24 साल के उम्र में युद्ध कौशल, पराक्रम और वीरता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करने वाले लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्‍मानित किया गया. 

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