दिल्ली हो या कोई और शहर, इंसानों की जान भगवान भरोसे है. ऐसा इसलिए क्योंकि आज लोग आवारा जानवरों से सुरक्षित नहीं हैं. आवारा कुत्ते हों या बंदर या फिर सड़क पर घूम रहे साड़ तीनों से लोगों को खतरा है. स्थानीय लोग आवारा पशुओं से बचाव की गुहार लगा रहे हैं.
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Delhi HC News: दिल्ली हो या कोई और शहर, इंसानों की जान भगवान भरोसे है. ऐसा इसलिए क्योंकि लोग आवारा जानवरों से सुरक्षित नहीं हैं. आवारा कुत्ते हों या बंदर या फिर सड़क पर घूम रहे साड़ तीनों से लोगों को खतरा है. स्थानीय लोग आवारा पशुओं से बचाव की गुहार लगा रहे हैं. आज देश का शायद ही कोई ऐसा हाई कोर्ट होगा जहां आवारा कुत्तों या अन्य पशुओं की समस्या अदालत की चौखट तक न पहुंची हो. इंसानों की जान से जुड़ा ये मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है. लेकिन इस महासमस्या का हल अब तक नहीं निकल सका है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने जताई चिंता
दिल्ली हाई कोर्ट ने आवारा कुत्तों और बंदरों से जुड़ी समस्या पर चिंता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को अधिकारियों को प्राथमिकता के आधार पर सभी बंदरों को असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य स्थानांतरित करने का निर्देश दिया. मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच आवारा कुत्तों और बंदरों के दिव्यांग व्यक्तियों पर हमला करने से जुड़े मुद्दे पर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने दिल्ली के मुख्य सचिव को चार नवंबर को नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC), दिल्ली नगर निगम (MCD), दिल्ली छावनी बोर्ड और वन विभाग के प्रमुख की एक बैठक बुलाने का भी निर्देश दिया ताकि इस मुद्दे से निपटने के लिए एक व्यवस्था बनाई जा सके.
हाई कोर्ट ने कहा, 'बैठक में दिल्ली पशु कल्याण बोर्ड के सचिव, दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI), याचिकाकर्ताओं के वकील राहुल बजाज और अमर जैन तथा कार्यकर्ता गौरी मौलेखी को भी मौजूद रहना चाहिए. बेंच ने कहा, 'समाज में विभिन्न समूह होते हैं, जिनमें विभिन्न दिव्यांगता से पीड़ित लोग भी शामिल हैं, और उनकी समस्याएं वास्तविक हैं. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है.
'टिप्पणी जो दिल छू गई'
जज साहब ने कहा, 'दुनिया में कहीं भी आपको ऐसा शहर नहीं मिलेगा, जिसपर पूरी तरह बंदरों और कुत्तों का कब्जा हो. ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए. उनके साथ भी सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए. हम आवारा पशुओं के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे, लेकिन इंसानों के साथ भी सम्मानपूर्वक व्यवहार किए जाने की जरूरत है. इसलिए, कुछ तंत्र विकसित किए जाने की जरूरत है. दिव्यांग व्यक्तियों को भी आवारा पशुओं से परेशानी नहीं होनी चाहिए और लोगों को शहर की सड़कों पर चलने में किसी तरह की समस्या न हो.'
बेंच ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 नवंबर की तारीख तय की. न्यायालय एनजीओ धनंजय संजोगता फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसका प्रतिनिधित्व बजाज कर रहे हैं, जो दृष्टिबाधित हैं. (इनपुट: भाषा)