Article 370: '...लगता है कि यह खुद ही प्रभावी हो गया', आर्टिकल 370 की सुनवाई के दौरान क्या बोले चीफ जस्टिस
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Article 370: '...लगता है कि यह खुद ही प्रभावी हो गया', आर्टिकल 370 की सुनवाई के दौरान क्या बोले चीफ जस्टिस

Supreme Court Article 370: चीफ जस्टिस ने कहा, दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा के गठन और फैसले लेने के बाद शासन व्यवस्था क्या होनी चाहिए, इस पर अनुच्छेद 370 चुप है. एकदम सन्नाटा है. अगर आर्टिकल 370 पर पूरी तरह से चुप्पी है तो अनुच्छेद 370 शायद अपने आप ही काम कर गया है.

Article 370: '...लगता है कि यह खुद ही प्रभावी हो गया', आर्टिकल 370 की सुनवाई के दौरान क्या बोले चीफ जस्टिस

What is Article 370: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को आर्टिकल 370 पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा कि इस बात के बेसिक एविडेंस हैं कि अनुच्छेद 370 का खुद को सीमित करने वाला स्वरूप है. ऐसा लगता है कि 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद यह अपने आप प्रभावी हो गया. 

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. 

बेंच ने पूछे ये सवाल?

बेंच ने कहा, 'हालांकि जम्मू कश्मीर के संविधान ने भारत संघ के साथ अपने संबंध की रूपरेखा तय की, जब तक कि वह संबंध भारतीय संविधान में शामिल नहीं किया गया, यह 1957 के बाद लगातार वर्षों तक भारत या संसद के प्रभुत्व को कैसे जोड़ेगा?' 

बेंच ने याचिकाकर्ताओं में से एक शोएब कुरैशी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन से ये सवाल पूछे, जिन्होंने प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के पांच अगस्त, 2019 के फैसले को चुनौती दी है. बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं.

CJI बोले- यहां आर्टिकल 370 है चुप

 सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 370 के दो अंतिम बिंदु हैं - पहला खंड दो में जहां यह कहा गया है कि संविधान सभा के अस्तित्व से पहले लिए गए सभी फैसले इसकी मंजूरी के लिए रखे जाएंगे. दूसरा, खंड तीन के प्रावधान में, जहां यह कहा गया था कि राष्ट्रपति यह घोषणा करते हुए एक अधिसूचना जारी कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 अस्तित्व में नहीं रहेगा या केवल जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश पर अपवादों और संशोधनों के साथ लागू रहेगा. 

चीफ जस्टिस ने कहा, 'दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा के गठन और फैसले लेने के बाद शासन व्यवस्था क्या होनी चाहिए, इस पर अनुच्छेद 370 चुप है. एकदम सन्नाटा है. अगर आर्टिकल 370 पर पूरी तरह से चुप्पी है तो अनुच्छेद 370 शायद अपने आप ही काम कर गया है.'

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने शंकरनारायणन से पूछा कि अगर इस तर्क को स्वीकार किया जाए, तो इसका मतलब है कि एक बार आर्टिकल 370 अपने आप काम कर गया, तो जम्मू कश्मीर का संविधान शून्य को भर देगा और यह सबसे बड़ा दस्तावेज होगा. 

क्या बोले वकील

चीफ जस्टिस ने कहा, 'अब सवाल यह होगा कि क्या संघीय इकाई का संविधान संघीय इकाई के स्रोत से ऊपर उठ सकता है.' उन्होंने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या अदालत यह कहती है कि भारतीय संविधान को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के संविधान को भारतीय संविधान से ऊपर एक प्रमुख दस्तावेज माना जाए. 

शंकरनारायणन ने कहा कि यह उनका तर्क है कि संविधान सभा का अस्तित्व खत्म होने के बाद अनुच्छेद 370 अपने आप लागू हो गया, इसलिए, इसे नहीं छुआ जाना चाहिए. 

बेंच ने कहा, 'लेकिन,अगर अनुच्छेद 370 का अंतिम बिंदु संविधान सभा है, तो क्या यह जरूरी नहीं है कि इसे एग्जीक्यूट करने के लिए जम्मू कश्मीर राज्य की संविधान सभा के काम को इस (भारतीय) संविधान में समाहित किया जाए.'

चीफ जस्टिस ने कहा कि अनुच्छेद 370, जो भारतीय संविधान में मौजूद है, अपने आप में इसके खुद को सीमित करने वाले स्वरूप की ओर इशारा करता है.

उन्होंने कहा, 'यह संविधान में है लेकिन प्रावधान ही इसके खुद को सीमित करने वाले स्वरूप की ओर इशारा करता है. राज्य की संविधान सभा के गठन के बाद अनुच्छेद 370 का संचालन खत्म हो जाएगा. इस बात के पर्याप्त मूलभूत सबूत हैं कि आर्टिकल 370 का एक खुद को सीमित करने वाला स्वरूप है.'

 हालांकि, बेंच ने साफ किया कि वह यह नहीं कह रही कि जम्मू कश्मीर के मामले में भारतीय संविधान के प्रावधानों को लागू करने के लिए जारी किए गए सभी संविधान संशोधन आदेश असंवैधानिक हैं. 

गुरुवार को भी होगी सुनवाई

शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि जम्मू कश्मीर के संविधान में नाममात्र बदलावों के साथ लगभग वे सभी प्रावधान हैं जो भारतीय संविधान में हैं. बेंच ने कहा, 'क्या इसका मतलब यह है कि जम्मू कश्मीर राज्य की संविधान सभा की तरफ से कही गई कोई भी बात देश को बांध देगी या यहां की संसद या कार्यपालिका को बांध देगी? इसे 1957 के बाद हमारे संविधान में रिफ्लेक्टेड एक बाध्यकारी व्यवस्था में शामिल किया जाना था जो कभी नहीं किया गया.'

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी, नित्या रामकृष्णन, संजय पारिख और पी सी सेन की दलीलें भी सुनीं. सुनवाई बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश करेंगे. 

चीफ जस्टिस ने कहा कि सुनवाई की निरंतरता बनाए रखने के लिए संविधान पीठ 28 अगस्त (सोमवार) को बैठेगी. आम तौर पर सोमवार का दिन विविध और ताजा मामलों की सुनवाई के लिए आरक्षित है. 

(इनपुट-पीटीआई)

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