कोर्ट ने 5 फरवरी को कहा था कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दाखिल याचिकाओं पर वह 8 मार्च को ऑनलाइन सुनवाई शुरू करेगा और 18 मार्च इसे खत्म कर देगा.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सभी राज्यों से आरक्षण के मुद्दे पर जवाब मांगा है. कोर्ट ने पूछा, 'क्या संविधान (Indian Constitution) का 102वें अमेंडमेंट स्टेट लेजिस्लेचर को सोशल और एकेडमिक रूप से पिछड़े वर्गों का डिटरमिनेशन करने को लेकर कानून बनाने और अपने पावर के तहत उन्हें फायदा पहुंचाने से वंचित करता है?'
दरअसल, साल 2018 में संविधान के 102वें अमेंडमेंट के जरिए आर्टिकल 338-B जोड़ा गया, जो नेशनल बैकवर्ड कमीशन के गठन, उसके कार्यों और पावर से संबंधित है. जबकि अनुच्छेद 342-A राष्ट्रपति को किसी खास जाति को सोशल और एकेडमिक रूप से पिछड़ा अधिसूचित करने और लिस्ट में बदलाव करने की संसद की पावर से संबंधित है.
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जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच के सामने 102वें संशोधन की एक्सप्लेनेशन का मुद्दा उठा. बेंच शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने के 2018 महाराष्ट्र कानून से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है. इसी दौरान बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है, उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. बेंच ने 15 मार्च तक राज्यों से इस मुद्दे पर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा.
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महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और पी. एस. पटवालिया की उस दलील पर बेंच ने गौर किया कि 102वें अमेंडमेंट की एक्सप्लेनेशन के सवाल पर फैसला राज्यों के फेडरल स्ट्रक्चर को प्रभावित कर सकता है और इसलिए, उन्हें सुनने की जरूरत है. इस पर जवाब देते हुए केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि इस फैसले से राज्य प्रभावित हो सकते हैं और यह बेहतर होगा कि सभी राज्यों को नोटिस जारी किए जाएं.
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