Name Plate Case: 'दुकानदार नाम लिखना चाहे तो लिखें, पर उसे मजबूर नहीं किया जा सकता', नेम प्लेट विवाद पर SC का आदेश
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Name Plate Case: 'दुकानदार नाम लिखना चाहे तो लिखें, पर उसे मजबूर नहीं किया जा सकता', नेम प्लेट विवाद पर SC का आदेश

Supreme Court on Kanwar Name Plate Case: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को कांवड़ नेम प्लेट केस में फिर सुनवाई हुई. इस सुनवाई में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई दुकानदार अपना नाम लिखना चाहता है तो वह लिख सकता है लेकिन उसे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

Name Plate Case: 'दुकानदार नाम लिखना चाहे तो लिखें, पर उसे मजबूर नहीं किया जा सकता', नेम प्लेट विवाद पर SC का आदेश

What is Kanwar Name Plate Case: कावंड़ यात्रा मार्ग पर खाने पीने का सामान बेचने वाले दुकानदारों को दुकान के सामने अपना नाम लिखने की अनिवार्यता नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने आज हुई सुनवाई में आदेश दिया कि इस मामले में राज्यों की ओर से जारी निर्देशों पर रोक लगाने वाला उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा. हालांकि जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने साफ किया है कि अगर कोई दुकानदार अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है तो हमने उसे रोका नहीं है. वो नाम लिख सकता है. हमारा आदेश सिर्फ इतना है कि नाम लिखने के लिए किसी दुकानदार को मज़बूर नहीं किया जा सकता.

SC ने जवाब दाखिल करने के लिए वक्त दिया

सुप्रीम कोर्ट में आज जैसे ही मामला शुरू हुआ, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उन्हें यूपी सरकार से दाखिल जवाब की कॉपी देर रात ही मिली है. उत्तराखंड और मध्यप्रदेश सरकार ने भी जवाब दाखिल किए जाने के लिए  और वक्त दिए जाने की  मांग की है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और मध्यप्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए वक़्त दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओ से भी कहा कि वो भी इस पर जवाब दाखिल कर दें.

यूपी और उत्तराखंड सरकार की दलील

यूपी सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील  मुकुल रोहतगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से दुकान के नाम लिखने पर लगाई अंतरिम रोक केंद्र सरकार के क़ानून के अनुकूल नहीं है. फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के तहत  हरेक दुकानदार को (जिनमे ढाबे मालिक भी शामिल है) को अपने नाम को डिस्प्ले जरूरी है.  

उत्तराखंड सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल जतिंदर कुमार सेठी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस मामले में तथ्यों को छुपाया है. उन्होंने ये साबित करने की कोशिश की है कि ऐसा कोई क़ानून नहीं है, जिसके जरिये दुकानदारों को नेम प्लेट लिखना ज़रूरी हो. जबकि कम से कम दो ऐसे कानून है, जिनके तहत दुकानदार के लिए रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और आईकार्ड  डिस्प्ले करना जरूरी है.

SC का सवाल

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि अगर ऐसा कोई क़ानून है तो इसे जगह सब जगह लागू होना चाहिए. केवल कुछ एरिया में ही नहीं. कोर्ट ने राज्यों से कहा कि वो जवाब दाखिल कर साबित करे किं वो सब जगह इस कानून को लागू कर रहे हैं.

यूपी सरकार ने जल्द सुनवाई की मांग की

यूपी सरकार की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने ये भी मांग कि इस मसले की सुनवाई ज़्यादा दिनों के लिए नहीं टलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते सोमवार या मंगलवार को सुनवाई कर फैसला ले अन्यथा बाद में सुनवाई का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पिछले 60 साल में कावंड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को नाम लिखने की कोई बाध्यता नहीं रह रही है तो ऐसे में अगर इस बार भी कावंड़ यात्रा बिना नाम लिखने के निर्देश के हो जाती है तो कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. सिंघवी ने यूपी सरकार के लिखित जवाब की एक लाइन का हवाला देते हुए कहा कि सरकार खुद मान रही है कि उसकी ओर से जारी निर्देशो के चलते अस्थायी रूप से भेदभाव हो रहा है.
 
नेम प्लेट के समर्थन में भी याचिकाएं

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से जारी निर्देशों के समर्थन में याचिका दाखिल करने वालों की ओर से भी वकीलों ने अपनी बात रखी. वकील बरूण सिन्हा ने कहा कि कावंड़ तीर्थ यात्री प्याज़ लहसुन का इस्तेमाल नहीं करते है लेकिन वहां कई ऐसी दुकानें मौजूद है, जिन्हें नाम के चलते कावड़ियों को उनके यहां परोसे जाने वाले खाने को लेकर गलतफहमी होती है. वहां सरस्वती ढाबा, मां दुर्गा नाम से ढाबा है. हम उसे शाकाहारी ढाबा मानकर दुकान के अंदर एंट्री करते है लेकिन अंदर पता चलता है कि दुकान के मालिक और स्टाफ न केवल अलग  सम्प्रदाय के हैं, बल्कि वहां नॉन वेज फूड भी परोसा जा रहा है. इसलिए यूपी पुलिस की ओर से नाम लिखने के निर्देश जारी किए गए हैं.

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