कन्हैया कुमार और अन्य की निचली अदालत में पेशी के दौरान फरवरी, 2016 को हुयी हिंसा की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने के लिये दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और अन्य की निचली अदालत में पेशी के दौरान फरवरी, 2016 को हुयी हिंसा की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने के लिये दायर याचिका बुधवार (24 जनवरी) को खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि खत्म हो चुके विवाद को वह फिर से हवा नहीं देगा. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने इस घटना के लिये दिल्ली पुलिस और अन्य के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने का अनुरोध भी स्वीकार नहीं किया. याचिकाकर्ता ने इसे ‘‘डराने वाली कार्रवाई’’ करार दिया था.
इस पर, पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण और कामिनी जायसवाल से जानना चाहा, ‘‘कौन की डराने वाली कार्रवाई.’’ भूषण ने कन्हैया, पत्रकारों, छात्रों, जेएनयू के शिक्षकों और बचाव पक्ष के वकीलों पर अदालत परिसर के भीतर 15 और 17 फरवरी, 2016 को हुये हमले की घटनाओं का हवाला दिया. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम इसमें आगे कार्यवाही करने की नहीं सोच रहे. विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की आवश्यकता नहीं है.’’ पीठ ने कहा कि अगर आपको कोई शिकायत है तो आप प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं.
इस पर वकील ने कहा कि यदि कोई कार्रवाई नहीं की गयी तो यह लोगों को ऐसे कृत्य के लिये प्रोत्साहित कर सकती है. पीठ ने याचिका खारिज करते हुये कहा, ‘‘हम वर्तमान याचिका पर और विचार करने की कोई वजह नहीं पाते हैं. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि वर्तमान आदेश याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने से नहीं रोकता है.
इस मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजित कुमार सिंह को याचिका का विरोध करने के लिये अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी. इससे पहले शीर्ष अदालत ने कन्हैया को अदालत में पेश करने से पहले उस पर हुये हमले के सिलसिले मेंअदालत कक्ष में वकीलों का काला गाउन पहले कुछ व्यक्तियों की उपस्थिति के बारे में दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा था.
(इनपुट एजेंसी से भी)