धारा 377 : समलैंगिकता अपराध है या नहीं? आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा अहम फैसला
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धारा 377 : समलैंगिकता अपराध है या नहीं? आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा अहम फैसला

दो बालिगों में सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं इस मामले पर इसी साल 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली : देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर आज (गुरुवार) फैसला सुनाने वाली है. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में फैसला सुनाएगी. इसी साल जुलाई महीने में 377 पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर महज 4 दिन ही सुनवाई चली थी. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो कोर्ट इस बात का इंतज़ार नहीं करेगा कि सरकार उसे रद्द करें. 

  1. समलैंगिकता मामले पर जुलाई में सुनवाई हुई थी पूरी
  2. 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सुरक्षित रखा था फैसला
  3. सेक्‍स वर्कर्स के लिए काम करने वाली संस्‍था ने उठाया है मुद्दा

4 दिन में सुनवाई हुई पूरी
दो बालिगों में सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं इस मामले पर इसी साल 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. प्रमुख न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष 4 दिनों तक चली सुनवाई के बाद सभी पक्षकारों को अपने-अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित दलीलें देने के लिए कहा गया था. 

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सुप्रीम कोर्ट ने बदला दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई में 2 जुलाई 2009 को दो बालिगों में सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध नहीं माना था यानि कि इसे 377 IPC की धारा से बाहर कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 11 दिसंबर 2013 को हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए इसे अपराध ही ठहराया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुनर्विचार याचिका को भी खारिज करते हुए अपराध ही माना, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में कयूरेटिव पेटिशन दायर की गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को पांच जज सुनेगें और फिर फैसला सुनाएंगे.

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याचिकाकर्ताओं ने दिया था निजात के अधिकार का हवाला
लेकिन इस बीच एक अन्य जनहित याचिका में निजता मौलिक अधिकार के मुद्दे पर 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के निजता पर आए इस फैसले के संदर्भ में फिर से दो बालिगों में सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर करने की मांग के लिए 6 याचिकाएं दायर की गई थी. सुनवाई याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील रखी गई कि कोई दो बालिग़ अपने बेडरूम में अपनी मर्ज़ी से क्या कर रहे हैं, वह क्या संबंध बना रहे हैं, इससे किसी को कुछ लेना देना नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह उनकी निजात है. इसलिए दो बालिगों में सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध नहीं माना जाए, यानि कि इसे 377 IPC की धारा से बाहर कर दिया जाए.

क्या कहती है धारा 377?
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में अप्राकृतिक अपराध का जिक्र है. इस धारा में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि जो भी प्रकृति के नियम के विरुद्ध किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माना देने का प्रावधान है.

क्या है पूरा मामला
सेक्‍स वर्कर्स के लिए काम करने वाली संस्‍था नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो एडल्‍ट आपसी सहमति से एकांत में सेक्‍सुअल संबंध बनाते हैं तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन कुछ ही साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा 377, यानी होमोसेक्सुअलिटी को फिर अपराध करार दे दिया था.

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