किसान आंदोलन: विरोध का अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकारों का उल्‍लंघन कितना जायज?
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किसान आंदोलन: विरोध का अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकारों का उल्‍लंघन कितना जायज?

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protest) पर एक बार फिर सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा है कि विरोध के अधिकार के नाम पर किसी शहर का गला नहीं घोंटा जा सकता.

किसान आंदोलन: विरोध का अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकारों का उल्‍लंघन कितना जायज?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने किसान आंदोलन (Farmers Protest) से जुड़ी एक याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए कहा कि विरोध के अधिकार के नाम पर किसी शहर का गला नहीं घोंटा जा सकता. केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान पिछले लगभग 10 महीनों से दिल्ली की सीमाओं को बन्धक बना कर बैठे हुए हैं.

  1. सैकड़ों फैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर
  2. 'किसानों ने घोंटा हुआ है शहर का गला'
  3. असीमित नहीं है विरोध प्रदर्शन का अधिकार

सैकड़ों फैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर

इससे भारत की अर्थव्यवस्था को हर दिन साढ़े तीन हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. सैकड़ों फैक्ट्रियां इसकी वजह से बंद हो चुकी हैं और कई बंद होने के कगार पर हैं. ऐसे लोग जो नोएडा और गाजियाबाद से नौकरी करने के लिए दिल्ली आते हैं, उन्हें अब आधे घंटे की जगह दो से ढाई घंटे का समय दफ्तर पहुंचने में लग रहा है. इतने समय में आप दिल्ली से आगरा आसानी से पहुंच सकते हैं.

इसके बावजूद हमारे देश में अभिव्यक्ति के नाम पर इसे जायज ठहराया जाता है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में शुक्रवार को इसी मुद्दे पर जोरदार बहस हुई. दरअसल किसान महापंचायत (Farmers Protest) की तरफ से कोर्ट में ये मांग की गई थी कि कृषि कानूनों के विरोध में किसानों को दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ऐतराज जताते हुए दो बड़ी बातें कहीं.

'किसानों ने घोंटा हुआ है शहर का गला'

कोर्ट ने कहा कि किसानों ने पहले से पूरे शहर का गला घोंटा हुआ है. अब वो अदालत से चाहते हैं कि उन्हें शहर के अन्दर भी धरना देने की मंज़ूरी दी जाए. इसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि किसान पहले हाइवे जाम करते हैं और फिर कहते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है. कोर्ट ने पूछा कि क्या आंदोलन कर रहे किसान ये चाहते हैं कि शहर के लोग अपनी दुकानें बन्द करके घर में बैठ जाएं?

अदालत ने कहा कि किसानों को विरोध प्रदर्शन (Farmers Protest) करने का अधिकार है. इसके बावजूद वो इसके लिए दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते. 

दुर्भाग्य की बात ये है कि जिन सड़कों को किसान बन्द करके बैठे हैं, वो Tax payers के पैसे से बनी हैं. आप जो पैसा टैक्स के रूप में सरकार को देते हैं, उनसे इन सड़कों का निर्माण होता है. इनकी मरम्मत भी जनता के पैसों से ही होती है. ये कितना बड़ा धोखा है कि इसके लिए जनता पैसे भी दे रही है और वही इन सड़कों का इस्तेमाल भी नहीं कर पा रही है.

असीमित नहीं है विरोध प्रदर्शन का अधिकार

भारत में लोगों को आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हासिल है. संविधान का यही आर्टिकल लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी का मूलभूत अधिकार देता है. इस अनुच्छेद के सेक्शन 2 में इस बात का भी उल्लेख है कि अभिव्यक्ति और विरोध का अधिकार असीमित नहीं है. यानी ये अधिकार तब तक ही प्रासंगिक है, जब तक इसकी वजह से दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता.

लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों के नाम पर चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protest) की वजह से ऐसा ही हो रहा है. दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, और बहादुरगढ़ के इलाक़े इस आंदोलन से सीधे तौर पर प्रभावित हैं. इन जगहों पर दो से ढाई करोड़ लोग रहते हैं. जबकि आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले किसानों की संख्या हजारों में है. ऐसे में इन किसानों की वजह से करोड़ों लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है.

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पहले भी कई बार टिप्पणी कर चुकी है कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सड़कों को बंधक बनाने वाली इस सोच पर पहले भी कई बार सख्त टिप्पणी कर चुका है. अक्टूबर 2020 को अदालत ने शाहीन बाग के प्रदर्शन पर कहा था कि सड़कों को बन्द करके विरोध करने का अधिकार किसी को नहीं है. इसके बाद इसी साल फरवरी में कोर्ट ने कहा था कि विरोध का अधिकार किसी भी जगह और किसी भी समय लागू नहीं होता.

अप्रैल के महीने में भी अदालत ने कहा था कि किसान हाइवे बंद करके नहीं बैठ सकते. सरकार को इसमें कदम उठाने चाहिए. कोर्ट ने यही टिप्पणी 30 सितंबर और फिर आज की सुनवाई में भी की.

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