जल्लीकट्टू : केंद्र की अधिसूचना पर लगाई रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
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जल्लीकट्टू : केंद्र की अधिसूचना पर लगाई रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु में सांड़ को काबू में करने संबंधी विवादास्पद खेल जल्लीकट्टू के आयोजन पर लगा प्रतिबंध हटाने की केन्द्र की अधिसूचना पर लगी रोक हटाने से आज इंकार कर दिया।

जल्लीकट्टू : केंद्र की अधिसूचना पर लगाई रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु में सांड़ को काबू में करने संबंधी विवादास्पद खेल जल्लीकट्टू के आयोजन पर लगा प्रतिबंध हटाने की केन्द्र की अधिसूचना पर लगी रोक हटाने से आज इंकार कर दिया।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एन.वी. रमण की पीठ ने कहा कि केन्द्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने संबंधी कल के न्यायालय के आदेश में किसी प्रकार के बदलाव की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा कि वह इस तर्क से प्रभावित नहीं है कि इस न्यायालय की देखरेख में जल्लीकट्टू के आयोजन की अनुमति दी जानी चाहिए।

जल्लीकट्टू के आयोजन के लिये तमिलनाडु के कुछ निवासियों ने नई याचिका दायर की थी। इनमें इसके आयोजन पर कल लगायी गयी रोक हटाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि राज्य में सदियों पुरानी इस सांस्कृतिक परंपरा को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।

यह रोक भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और पशु संरक्षण से जुड़ी अमेरिकी संस्था पीपुल्स फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स(पेटा) और ऐसी ही अन्य संस्थाओं की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद लगाई गई थी। पोंगल का त्योहार 14 से 16 जनवरी तक मनाया जाएगा। ऐसे में जल्लीकट्टू के आयेाजक इस खेल को आयोजित करने के लिए आतुर थे। 

न्यायालय के आदेश के खिलाफ तमिलनाडु में जगह-जगह व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि वह जल्लीकट्टू के आयोजन की अनुमति के लिए अध्यादेश जारी करें। केन्द्र सरकार ने जल्लीकट्टू पर चार साल पुरानी रोक हटाते हुए पशु सरंक्षण से जुड़ी संस्थाओं के भारी विरोध के बावजूद शुक्रवार 8 जनवरी को एक अधिसूचना जारी करके इस खेल के आयोजन को मंजूरी दे दी थी।

न्यायालय ने कल इस मंजूरी पर अंतरिम रोक लगाने के साथ ही याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों पर केन्द्र, तमिलनाडु सरकार और ऐसे राज्यों को नोटिस जारी किया जहां जल्लीकट्टू का आयोजन किया जाता है। न्यायालय ने इन सभी से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

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