निचली अदालत ने पति पत्नी और पांच अन्य को इस अपराध में मौत की सजा सुनाई थी. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पति पत्नी की मौत की सजा की पुष्टि कर दी थी जबकि बाकी दोषियों की सजा कम कर दी थी.
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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने दो साल के बच्चे की बलि देने के अपराध के दोषी एक दंपत्ति की मौत की सजा के अमल पर गुरुवार (17 अगस्त) को रोक लगा दी. न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताव राय और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मौत की सजा पाने वाले ईश्वर लाल यादव और उनकी पत्नी की अपील विचारार्थ स्वीकार करते हुये उनकी सजा के अमल पर रोक लगा दी. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मानव बलि देने के जुर्म में इस दंपत्ति को मौत की सजा देने के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की थी.
पीठ ने कहा, ‘‘निचली अदालत का रिकॉर्ड मंगाया जाये. मौत की सजा के अमल पर रोक रहेगी. इस मामले को 28 नवंबर को शुरू हो रहे सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये.’’ यह मामला छत्तीसगढ़ के भिलाई नगर के रौबंधा क्षेत्र का है जहां 23 नवंबर, 2010 को पोषण सिंह राजपूत का दो साल का बच्चा चिराग अपने घर के बाहर से लापता हो गया था.
आरोप है कि दोनों मुख्य अभियुक्त तांत्रिक क्रियायें करते थे. किरण बाई ने अपने पति से कथित रूप से किसी बालक को बलि देने के लिये लाने के लिये कहा और इसी वजह से चिराग का अपहरण किया गया और बाद में निर्मम तरीके से उसकी हत्या कर दी गयी.
अभियोजन के अनुसार चिराग के परिवार के सदस्यों और दूसरे पड़ोसियों ने यादव के घर से जोर जोर से संगीत की आवाज सुनी थी. संदेह होने पर वे उनके घर गये जहां उन्हें एक कमरे में खून के निशान, खून से भरा कटोरा और बलि दिये गये बालक के शरीर के टुकड़े मिले.
यादव से पूछताछ के बाद चिराग का दफनाया गया शव भी बरामद किया गया था. चिराग के अपहरण और हत्या के आरोप में मामला दर्ज किया गया. निचली अदालत ने पति पत्नी और पांच अन्य को इस अपराध में मौत की सजा सुनाई थी. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पति पत्नी की मौत की सजा की पुष्टि कर दी थी जबकि बाकी दोषियों की सजा कम कर दी थी.