Supreme Court Hearing On Reservation: सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या एससी/एसटी आरक्षण के भीतर सब-कैटेगरी बनाई जा सकती है. मंगलवार को जस्टिस बीआर गवई ने पूछा कि क्या IAS/IPS अधिकारियों के बच्चों को कोटा का लाभ मिलना चाहिए?
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Supreme Court On SC/ST Reservation: क्या सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व पा लेने के बाद किसी समुदाय को आरक्षण पाने वालों की सूची से हटाया जा सकता है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसा प्रस्ताव आया. SC के सात जजों की संविधान पीठ एससी/एसटी आरक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई कर रही है. पहले दिन, पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने एससी/एसटी समुदायों के भीतर उपवर्गीकरण के पक्ष में दलील दी. सुनवाई के दौरान, जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि कुछ जातियां जो एक निश्चित स्थिति तक पहुंच चुकी हैं और अगड़ी जातियों के बराबर हैं, तो उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर निकल जाना चाहिए. जस्टिस गवई ने पूछा कि 'SC/ST समुदाय से कोई व्यक्ति आईएएस-आईपीएस जैसी केंद्रीय सेवाओं में पहुंचे तो उसे सबसे अच्छी सुविधाएं मिलती हैं. फिर भी उसके बच्चे और उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता रहता है. क्या ऐसा जारी रहना चाहिए?'
पंजाब के वकील की दलील पर जज का सवाल
पहले दिन सुनवाई के दौरान, पंजाब के AG ने कहा कि एग्जाम में 99% स्कोर करने वाले अगड़ी जाति के व्यक्ति पर 56% नंबर लाने वाले पिछड़ी जाति के व्यक्ति को तरजीह दी जानी चाहिए. क्योंकि अगड़ी जाति वाले के पास सब सुविधाएं थीं जबकि पिछड़ी जाति वाला मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रहा. उन्होंने यहां तक कहा कि 'अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किसी समुदाय को आरक्षण के लिए पात्र लोगों की सूची से हटाया जा सकता है, अगर उसने सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त करके सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हासिल कर ली हो.'
इसी बात पर जस्टिस गवई, जो खुद दलित हैं और अगले साल सीजेआई बनने वाले हैं, ने पूछ लिया- एससी/एसटी समुदाय से आने वाले व्यक्ति को आईएएस और आईपीएस जैसी केंद्रीय सेवाओं में जाने के बाद बेस्ट सुविधाएं मिलती हैं. फिर भी उनके बच्चों और उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता रहा है. क्या यह जारी रहना चाहिए?
'जो आगे बढ़ गए, वो दूसरों के लिए रास्ता बनाएं'
पंजाब सरकार ने दलील दी कि जो लोग सरकारी सेवा में ज्यादा प्रतिनिधित्व के जरिए आगे बढ़े हैं, उन्हें SC दायरे में वंचित समुदायों के लिए रास्ता बनाना चाहिए. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी बेंच में जस्टिस बार गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हैं.
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान यह नहीं कहता कि हाशिए पर रहने वाले समूहों के लोग अक्षम हैं जबकि अन्य समूहों के लोग सक्षम हैं.
क्या है पूरा मामला
इस मामले को 2020 में पांच जजों की बेंच ने बड़ी पीठ के पास भेजा था. यह कहा गया था कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2005) में दिए गए फैसले कि - उपवर्गीकरण की अनुमति नहीं थी - पर पुनर्विचार की जरूरत हो सकती है. SC ने 2020 वाले फैसले में कहा कि अनुसूचित जातियां समरूप वर्ग बनाती हैं, उनमें कोई उपविभाजन नहीं हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट का 2005 वाला फैसला ही पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के लिए पंजाब सरकार की 1975 की अधिसूचना को रद्द करने का आधार बना. उसमें SC के लिए मौजूदा 25% आरक्षण को दो कैटेगरी में बांटा गया था. इनमें से आधी सीटें बाल्मिकियों और मजहबी सिखों को दी जानी थीं, जबकि बाकी SC के बाकी समूहों के लिए थीं. इस अधिसूचना को 2006 में HC ने रद्द कर दिया था.
फिर पंजाब सरकार ने पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम, 2006 पारित किया. इसमें कहा गया कि 50% आरक्षित सीटें पहले बाल्मीकि और मजहबी सिखों को दी जाएंगी. 2010 में, HC ने फिर ईवी चिन्नैया मामले के फैसले के आधार पर अधिनियम के इस प्रावधान को रद्द कर दिया. फिर पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.