दहेज उत्पीड़न के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी हो या नहीं, आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा अहम फैसला
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दहेज उत्पीड़न के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी हो या नहीं, आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा अहम फैसला

2017 में इस मामले में चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि दहेज उत्पीड़न की शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी न हो और ऐसे मामलों को देखने के लिए हर ज़िले में फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाया जाए. 

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली : दहेज उत्पीड़न मामले (498 A) में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार (14 सितंबर) को अहम फैसला सुनाएगा. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविलकर और जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ शुक्रवार सुबह 10:30 बजे फैसला सुनाएगी. दरअसल, इसी साल अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

दो जजों की बेंच के आदेश को दी गई चुनौती
2017 में इस मामले में चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि दहेज उत्पीड़न की शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी न हो और ऐसे मामलों को देखने के लिए हर ज़िले में फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाया जाए. साथ ही उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई हो. दो जजों की बेंच के आदेश को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिका दायर कर कहा गया है कि कोर्ट को कानून में इस तरह का बदलाव करने का हक नहीं है. कानून का मकसद महिलाओं को इंसाफ दिलाना है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते देश भर में दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारी बंद हो गई है. 

दो जजों की बेंच ने तुरंत गिरफ्तारी पर लगाई थी रोक
दरअसल, जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की दो जजों की बेंच ने महिलाओं के लिए बने कानूनों के दुरुपयोग के मामले को लेकर अहम निर्देश जारी किए थे. कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को देखते हुए ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी. इसके अनुसार दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाते हुए इस सिलसिले में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे.

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के आदेश के बाद सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविलकर और जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने 29 नवंबर 2017 को कहा था कि वह दहेज उत्पीड़न के मामलों की जांच करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार नहीं कर सकता क्योंकि यह वैधानिक प्रावधानों से परे है. कोर्ट ने कहा था कि वह पूर्व में दो जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले की समीक्षा करेगी जिसमें उन जजों ने दहेज मामलों से जुड़े केसों की जांच के लिए कुछ दिशा-निर्देश तैयार करने के आदेश दिए थे. 

दो जजों की बेंच ने दिए थे ये दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देश कहा था कि मुकदमे के दौरान हर आरोपी को अदालत में उपस्थिति अनिवार्य नहीं होगी.कोई आरोपी यदि विदेश में रह रहा है, तो सामान्य तौर पर उसका पासपोर्ट जब्त नहीं होगा. उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी नहीं होगी. हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए.समिति में सामाजिक कार्यकर्ता, अधिकारियों की पत्नियों आदि को शामिल किया जा सकता है.इसके सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जा सकता. धारा 498-ए के तहत पुलिस या मजिस्ट्रेट तक पहुंचने वाली शिकायतों को समिति के पास भेज दिया जाना चाहिए. एक महीने में समिति रिपोर्ट देगी. रिपोर्ट आने तक किसी की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए. समिति की रिपोर्ट पर जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट मेरिट के आधार पर विचार करेंगे. धारा 498-ए की शिकायत की जांच विशिष्ट अधिकारी द्वारा होनी चाहिए. 

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