गांधी जी कहा करते थे कि जो भी काम तुम करते हो, हो सकता है कि यह कम महत्व का हो, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह कहा कि तुम काम करते रहो. वह लोगों को हर दिन, हर पल कुछ नया सीखने की सलाह देते थे.
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नई दिल्ली: महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के तीन मुख्य सिद्धांत थे. पहला- सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए झाड़ का इस्तेमाल, दूसरा- जाति और धर्म से ऊपर उठकर सामूहिक प्रार्थना करना और तीसरा चरखा जो बाद में आत्म सम्मान और एकता का प्रतीक बना.
अहिंसा के मार्ग से देश को दिलाई आजादी
पूरी दुनिया महात्मा गांधी के अविस्मरणीय योगदान के बारे में जानती है. भारत की आजादी की लड़ाई में उनके योगदान ने उन्हें राष्ट्रपिता का सम्मान दिलाया. वह जीवन पर्यन्त आम देशवासियों के नायक माने जाते रहे. अहिंसा का मार्ग अपनाकर देश को आजादी दिलाने वाले गांधी ने अपने विचारों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया. अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने कई किताबें लिखीं. इनमें लिखे उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उन दिनों हुआ करते थे.
गांधी ने दुनिया को दिए ये तीन मंत्र
गांधी जी अक्सर कहा कहते थे कि प्रसन्नता एक खुशबू की तरह होती है जब यह दूसरों को दी जाती है तो इसकी कुछ बूंदें आप पर स्वतः पड़ती है. वह कहा करते थे कि किसी व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर पहचाना जाना चाहिए न कि कपड़ों के आधार पर. दूसरों की प्रगति के लिए सकारात्मकता की राह खोलने की खातिर उन्होंने क्षमा का मंत्र दिया.
लोगों को बताई 'समय' की कीमत
गांधी जी ने कहा कि आंख के बदले आंख की भावना समूची दुनिया को अंधा बना देगी. उन्होंने लोगों को समय बचाने तथा इसके बेहतर इस्तेमाल के लिए भी प्रेरित किया. उनका कहना था कि जो लोग समय की बचत करते हैं, वह धन की भी बचत करते हैं. इस प्रकार उनके द्वारा बचाया गया धन, कमाए गए धन के बराबर अहमियत रखता है.
जीवन में दुखों से मुक्ति का मंत्र
गांधी जी कहा करते थे कि जो भी काम तुम करते हो, हो सकता है कि यह कम महत्व का हो, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह कहा कि तुम काम करते रहो. वह लोगों को हर दिन, हर पल कुछ नया सीखने की सलाह देते थे. गांधी जी कहा करते थे कि अपने जीवन को ऐसे जियो जैसे कल तुम्हारी मृत्यु होने वाली हो और ऐसे सीखो जैसे तुम हमेशा जिंदा रहने वाले हो.
किसी की कमजोरी का फायदा मत उठाओ
महात्मा गांधी के विचारों में इतनी शक्ति थी कि उनके विरोधी भी उनकी तारीफ करते थे. एक बार गांधी जी श्रीमती सरोजिनी नायडू के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे. तभी नायडू के दायें हाथ में चोट पर गांधी जी की नजर पड़ी. यह देखकर गांधी जी ने भी रैकेट बायें हाथ में लेकर खेलना शुरू कर दिया. जब कुछ देर बाद नायडू का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि आपको तो यह भी नहीं मालूम कि रैकेट किस हाथ में पकड़ा जाता है. इस पर गांधी ने जवाब दिया कि आप खुद चोट के कारण रैकेट बायें हाथ से पकड़े हुए हैं. मुझे भला आपकी इस कमजोरी का फायदा क्यों उठाना चाहिए. यदि आप किसी बाध्यता के कारण दायें हाथ से रैकेट नहीं पकड़ सकतीं तो भला मुझे इसका लाभ उठाने के लिए इसे क्यों दायें हाथ से थामना चाहिए.
प्यार से बोले हर सामान्य शब्द का होता है जादुई असर
एक बार गांधी जी जयपुर में एक दलित और मेमन बस्ती में एक सभा को संबोधित कर रहे थे. मेमन काठियावाड़ी मुस्लिम की एक विशेष जाति होती है. इस जाति के बच्चे उस समय काफी बिगड़ैल हुआ करते थे. गांधी जी ने जैसे ही भाषण देना शुरू किया, 12 साल का एक बच्चा मुंह में बीड़ी दबाए हुए भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा. गांधी जी ने यह देखकर अपना भाषण रोक दिया और बच्चे को देखकर कहा- इतने छोटे होकर तुम बीड़ी पी रहे हो. इसे फेंको. गांधी जी के इन सामान्य शब्दों ने उस पर जादुई असर किया और उसने मुंह से बीड़ी निकालकर फेंक दी और श्रोताओं के बीच शांति से बैठकर गांधी जी के भाषण को बड़े ध्यान से सुनने लगा.
जब गांधी से किसान ने की तीखी बात
महात्मा गांधी एक बार ट्रेन से चंपारण से बेतिया जा रहे थे. कोच में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी इसलिए वह तृतीय श्रेणी के एक कोच में जाकर एक बर्थ पर लेट गए. ट्रेन जब अगले स्टेशन पर रुकी तो एक किसान ट्रेन पर चढ़ा और बर्थ पर गांधी जी को सोता देख गालियां बकने लगा. उसने गांधी जी से बर्थ से उठने को कहा और बोला कि ऐसा लगता है कि बर्थ तुम्हारे बाप की है. गांधी जी बिना कुछ कहे उठ गए और एक किनारे नीचे बैठ गए. अपनी बर्थ पर बैठकर वह किसान खुशी में गाने लगा- धन, धन गांधी जी महाराज, गांधी जी दुखों को दूर कर रहे हैं. दरअसल, वह किसान गांधी जी को ही देखने बेतिया जा रहा था लेकिन इससे पहले उसने कभी उनको देखा नहीं था. इसलिए वह उन्हें ट्रेन में पहचान नहीं पाया. बेतिया पहुंचने पर स्टेशन पर जब उसने हजारों लोगों को गांधी जी का स्वागत करते देखा तो उसे सच्चाई का पता चला और शर्मिंदगी का अहसास हुआ. वह महात्मा के पैरों पर गिर पड़ा और उनसे माफी मांगने लगा. गांधी जी ने उसे उठाकर गले से लगा लिया.
सुखी जीवन के लिए 'ना' बोलना सीखें
जब गांधी जी कठोर कारावास की सजा काट रहे थे तो एक दिन अपने सारे काम खत्म करके वह रोज की भांति किताब पढ़ रहे थे. तभी जेल का एक संतरी दौड़ता हुआ उनकी तरफ आया और बोला कि जेलर उसी तरफ जेल का निरीक्षण करने आ रहा है. इसलिए वह उसे कुछ काम करते हुए दिखें. महात्मा गांधी ने ऐसा करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इससे बेहतर होगा कि वह उन्हें ऐसी जगह भेज दे जहां इतना काम हो कि समय से पहले न खत्म हो.
असहाय का लाभ नहीं उठाना चाहिए
जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो हमारे देश के तमाम नेता इस पक्ष में थे कि ब्रिटेन की गुलामी से भारत को आजाद कराने का यही सही समय है. हमें इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाना चाहिए. उन्हें इसी समय देश में आजादी के लिए एक व्यापक अभियान छेड़ना चाहिए. उन सबका मानना था कि विश्व युद्ध में उलझे होने के कारण ब्रिटिश सरकार आंदोलन को झेल नहीं पाएगी और अंततः उसे भारत को आजादी देनी होगी. जब यह प्रस्ताव महात्मा गांधी के सामने लाया गया तो उन्होंने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि असहाय ब्रिटिश सरकार का लाभ नहीं उठाना चाहिए. यद्यपि गाधी जी ने इसी समय ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया लेकिन यह सामूहिक न होकर व्यक्तिगत आंदोलन था.