भारत के अधिकतर खानों में ट्रांस फैट सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है. लेकिन इसकी मात्रा कितनी है इसकी कोई लिमिट नहीं, इसलिए एफएसएसआई जल्द ही इसकी लिमिट 2 फीसदी से भी कम करने की प्लानिंग कर रही है.
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सुमन अग्रवाल, नई दिल्ली: पराठा, आलू टिक्की, आल-पूड़ी, छोले-भटूरे, बेकरी आइटम जैसे केक, कुकीज, बिस्किट, क्रीम कैंडीज, फास्ट फूड, डोनट्स इन चीजों का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है, है ना. क्योंकि खाने की यह चीजें बहुत ही स्वादिष्ट होती हैं, लेकिन जरूरी नहीं हर स्वादिष्ट चीज हेल्दी भी हो. जी हां, भारत के अधिकतर खानों में ट्रांस फैट सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है. लेकिन इसकी मात्रा कितनी है इसकी कोई लिमिट नहीं, इसलिए एफएसएसआई जल्द ही इसकी लिमिट 2 फीसदी से भी कम करने की प्लानिंग कर रही है.
आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि जिस वनस्पति से आप खूब मजे लेकर पराठा, पूरियां, छोले भटूरे, टिक्की फ्राइ करते हैं, उसमें सबसे ज्यादा ट्रांस फैट होता है. लेकिन क्योंकि ये तेल सस्ता आता है और खाने में टेस्टी भी होता है इसलिए ठेले से लेकर घर तक इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है. हम इसके इस्तेमाल पर रोक नहीं लगा सकते लेकिन तेल कंपनियां चाहें तो इस आर्टिफिशियल ट्रांस फैट की मात्रा को प्रोसेसिंग के दौरान कम कर सकती हैं.
आपको बता दें कि अभी भारत की तेल और घी कंपनियों के पास ट्रांस फैट को लेकर कोई रेगुलेशन नहीं है. पैकेट के बाहर कोई लेबल नहीं होता और अगर होता है तो वो ऐसे जो दिखाई न दे. एफएसएएसआई के मुताबिक फिलहाल तेल और घी में पांच फीसदी ट्रांस फैट है जो डॉक्टरों के अनुसार बहुत ज्यादा है. इसलिए एफएसएसआई कंपनियों से बात करके उनके सैंपल टेस्टिंग के लिए भेजने की तैयारी कर रही है. जिसके बाद ट्रांस फैट की लिमिट को कम करने पर फैसला हो सकता है.
एफएसएसआई के सीईओ पवन अग्रवाल ने कहा कि कुछ साल पहले वनस्पति में 40- फीसदी ट्रांस फैट होता था लेकिन एक दो साल पहले ही इसे कम करके 5 फीसदी किया गया है, लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक ये भी ज्यादा है. विदेशों में इसकी एक लिमिट होती है या ये तेल में होता ही नहीं है. इसलिए डब्लूएचओ ने ऐसे खान-पान की चीजें जिसमें ट्रांस फैट ज्यादा हो उसे बैन करने की चेतावनी दी है. हम भी इसपर काम करेंगे और जल्द ही तेल कंपनियों के सैंपल लेकर ट्रांस फैट को 2 फीसदी से कम करने की जरूरत है या नहीं इस पर फैसला लेंगे. हालांकि कंपनियों का कहना है कि उनके पास ट्रांस फैट कम करने के लिए कोई एडवांस तकनीक नहीं है.
2023 तक ट्रांस फैट वाले फूड आइटम्स पर बैन
डब्ल्यूएचओ हमेशा से ही दुनिया भर में ट्रांस फैट को पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश कर रहा है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर साल ट्रांस फैट के चलते दुनिया भर में करीब 5 लाख लोगों की दिल से जुड़ी बीमारियों से मौत हो जाती है. ट्रांस फैट एक तरह का आर्टिफिशियल फैट है. ये प्रोसेस्ड फूड आइटम, वेजिटेबल ऑयल, डेयरी प्रोडक्ट्स और फास्ट फूड में पाया जाता है. प्रोसेस्ड फूड की शेल्फ लाइफ को बढ़ाने के लिए इसमें ट्रांस फैट जरूरत से ज्यादा मात्रा में मिलाई जाती है, जो हमारी सेहत के लिए बेहद हानिकारक है.
WHO ने बीते दिनों बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि साल 2023 तक जिन फूड प्रोडक्टस में ट्रांस फैट मिलेगा उन्हें बैन कर दिया जाएगा. यही नहीं विदेशों में पैकेज फूड या प्रोसेस्ड फूड आइटम्स में ट्रांस फैट की लिमिट तय कर दी गई है. कुछ देशों की सरकारों ने हाइड्रोजनेटेड ऑयल्स को पूरी तरह बैन कर दिया है. ये इंडस्ट्रीज में बनने वाले आर्टिफिशियल ट्रांस फैट का प्रमुख सोर्स है.
क्या है ट्रांस फैट?
ट्रांस फैट दो तरीके के होते हैं. पहला नेचुरल ट्रांस फैट और दूसरा आर्टिफिशियल ट्रांस फैट. नेचुरल ट्रांस फैट जानवरों और उनसे मिलने वाले फूड आइटम्स में संतुलित मात्रा में मौजूद होता है. इसका हमारी सेहत पर ना के बराबर प्रभाव पड़ता है. वहीं आर्टिफिशियल ट्रांस फैट इंडस्ट्रीज में प्रॉसेस किए गए वेजिटेबल और अन्य प्रकार के तेलों में पाया जाता है.
ट्रांस फैट से कौन सी बीमारियां होती हैं
डॉक्टर मंजरी बताती हैं कि ट्रांस फैट से जो खाना बनता है वो स्वादिष्ट तो लगता है लेकिन बाद में उसका नुकसान बहुत है. ट्रांस फैट से बनी चीजें जल्दी हजम नहीं होतीं और पेट के हर पार्ट में जाकर फैट जमा हो जाता है. कोलेस्ट्रॉल तो बढ़ता ही है, लेकिन मोटापा, किडनी और दिल की बीमारी सबसे ज्यादा होती है. उन्होंने आगे कहा, "आजकल मेरे पास जो पेसेंट आते हैं उनका टीजी 300-400 होता है, जो 150 नर्मल होना चाहिए. आप समझ नहीं सकते किस तरह से ट्रांस फैट आपको अंदर से कमजोर कर देता है. हमें अपने खान-पान और लाइफस्टाइल पर ध्यान रखना चाहिए."