टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ितों को फ्रैक्चर का जोखिम होता है ज्यादा
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टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ितों को फ्रैक्चर का जोखिम होता है ज्यादा

एक अध्ययन से पता चला है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले उम्रदराज लोगों और बुजुर्गों की कॉर्टिकल हड्डी कमजोर हो जाती है, जिससे उन्हें फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है.

टाइप-2 डायबिटीज के पेशेंट हैं तो रखना होगा खास ध्यान (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली: एक अध्ययन से पता चला है कि टाइप-2 डायबिटीज वाले उम्रदराज लोगों और बुजुर्गों की कॉर्टिकल हड्डी कमजोर हो जाती है, जिससे उन्हें फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है. हड्डी की घनी बाहरी परत को कॉर्टिकल कहते हैं, जो अंदरूनी भाग की रक्षा करती है. टाइप-2 डायबिटीज से वृद्धों की इस हड्डी की बनावट बदल सकती है और फ्रैक्चर का जोखिम पैदा हो सकता है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने कहा कि टाइप-2 डायबिटीज एक गंभीर पब्लिक हैल्थ समस्या है. बुजुर्गों की आबादी बढ़ने के साथ-साथ यह समस्या भी बढ़ते जाने की संभावना है.

  1. टाइप-2 डायबिटीज के पेशेंट हैं तो रखना होगा खास ध्यान
  2. डायबिटीज के मरीजों को होता है फ्रेक्चर का ज्यादा खतरा
  3. व्यायाम के साथ ही खान-पान को लेकर रखें विशेष ध्यान

मधुमेह वाले अधिकांश लोग टाइप-2 डायबिटीज वाले हैं. इसके रोगियों में इंसुलिन तो बनता है, लेकिन कोशिकाएं इसका इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं. इसी को इंसुलिन प्रतिरोध कहा जाता है. आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "टाइप-2 डायबिटीज आमतौर पर खाने-पीने की खराब आदतों, मोटापे और शारीरिक कसरत न करने की वजह से उत्पन्न होती है. चूंकि शरीर ग्लूकोज को कोशिकाओं तक पहुंचाने में इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता, इसलिए यह ऊतकों, मांसपेशियों और अंगों में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर करता है. यह एक चेन रिएक्शन की तरह होती है और कई लक्षणों के साथ बढ़ती जाती है."

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डॉ. अग्रवाल ने कहा, "टाइप-2 डायबिटीज समय के साथ धीरे-धीरे विकसित होती जाती है और शुरुआत में इसके लक्षण बहुत हल्के फुल्के होते हैं. जीवनशैली के मुद्दों के अलावा, ऐसे अन्य कारक भी हैं जो इस विकार के विकास में योगदान कर सकते हैं. कुछ लोगों के लीवर में बहुत अधिक ग्लूकोज पैदा होता है. कुछ लोगों में टाइप-2 डायबिटीज की आनुवांशिक स्थिति भी हो सकती है. मोटापा इंसुलिन प्रतिरोध के खतरे को बढ़ाता है."

टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण
उन्होंने कहा कि टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षणों में प्रमुख हैं- लगातार भूख लगते रहना, ऊर्जा की कमी, थकान, वजन घटना, अत्यधिक प्यास लगना, बार बार मूत्र करना, मुंह सूख जाना, त्वचा में खुजली और दृष्टि धुंधलाना. चीनी के स्तर में वृद्धि से यीस्ट का संक्रमण हो सकता है, घाव भरने में ज्यादा समय लगता है, त्वचा पर काले पैच पड़ जाते हैं, पैर में तकलीफ और हाथों में सुन्नपन पैदा हो सकती है.

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डॉ. अग्रवाल ने कहा, "पत्तेदार सब्जियां, ताजे फल, साबुत अनाज, मछली और बादाम जैसे नट्स के साथ स्वस्थ आहार लेने से, टाइप-2 डायबिटीज के मरीज में जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है. सस्ते, कैलोरी से भरे, कम पोषक तत्वों वाले भोजन की अधिकता से टाइप-2 डायबिटीज की दुनिया भर में बढ़त जारी है. सब्जियां, ताजे फल, साबुत अनाज और वसा से इस रोग का खतरा कम होता है, इसलिए जरूरत इस बात की है कि इन चीजों को किफायती दरों पर आसानी से अधिकाधिक उपलब्ध कराया जाए."

टाइप-2 डायबिटीज को कंट्रोल में रखने के कुछ टिप्स :

  • अपने आहार में फाइबर और स्वस्थ कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें. फल, सब्जियां और साबुत अनाज खाने से ब्लड शुगर का स्तर स्थिर रहने में मदद मिलेगी.
  • नियमित अंतराल पर खाएं और भूख लगने पर ही खाएं. 
  • अपना वजन नियंत्रित रखें और अपना दिल स्वस्थ रखें. इसका मतलब है कि रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, मिठाई और एनीमल फैट कम से कम खाएं. 
  • अपने दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद के लिए रोजाना आधा घंटा तक एरोबिक व्यायाम करें. व्यायाम भी ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है.

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