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लखनऊ: कभी साहित्य की दिग्गज हस्तियों शिबली नोमानी, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ और कैफी आजमी की जन्मस्थली के रूप में मशहूर रहा आजमगढ़ (Azamgarh) पिछले कई सालों से 'आतंक के अड्डे' की बदनामी से जूझ रहा है. अहमदाबाद में वर्ष 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाका मामले में हाल में अदालत का फैसला आया है, जिसके बाद से आजमगढ़ ‘आतंकी केंद्र’ के ठप्पे से जूझ रहा है.
आजमगढ़ (Azamgarh) के निवासी इस पर नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि इस कलंक ने युवाओं के विकास की संभावनाओं को बाधित किया है. आजमगढ़ के संजरपुर और सराय मीर गांवों के निवासी इस बात की आलोचना करते हैं कि कुछ लोग उनके जिले को आतंकवादियों की ‘जन्मस्थली’ करार दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि राजनेताओं ने राजनीतिक लाभ के लिए ‘आतंकवाद का कारखाना’ जैसे शब्द गढ़े.
वर्ष 2008 के अहमदाबाद सिलसिलेवार बम धमाका मामले में गुजरात की कोर्ट ने जिले के 5 निवासियों को मौत की सजा और एक को उम्रकैद की सजा सुनाई है. जिसके बाद से आजमगढ़ (Azamgarh) पर लगा 'आतंकवाद' का ठप्पा फिर से चर्चा में आ गया था. सजा पाने वालों में से 2 दोषी संजरपुर और 1 सराय मीर के बीनापारा इलाके का है, जबकि तीन जिले के अन्य इलाकों के हैं. आजमगढ़ का ‘आतंक से जुड़ाव’ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी चर्चा का विषय बन गया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी सरकार पर अपने कार्यकाल के दौरान ‘आतंकवादियों को बचाने’ का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि आजमगढ़ से संबंध रखने वाले उन दोषियों में से एक के पिता समाजवादी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं.
बताते चलें कि अहमदाबाद में वर्ष 2008 में 70 मिनट में 21 धमाके हुए थे. इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे. करीब 14 साल चले मुकदमे के बाद गुजरात की एक विशेष अदालत ने इस महीने की शुरुआत में 38 लोगों को मौत और 11 को उम्रकैद की सजा सुनाई है.
संजरपुर गांव के एक किसान अब्दुल बाकी ने कहा कि आजमगढ़ (Azamgarh) को आतंकवाद से जोड़ने से सालों से इसकी बदनामी हो रही है और युवाओं के लिए कहीं और नौकरी पाना मुश्किल हो गया है. बाकी ने कहा कि पहले से ही बहुत सारे पूर्वाग्रह हैं. अब विस्फोट मामले में फैसले के बाद आतंकवाद को लेकर बातें हो रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारे गांव के बच्चों के लिए दिल्ली जैसी जगहों पर नौकरी पाना लगभग असंभव होने जा रहा है. नेता आतंकवाद के ऐसे ठप्पे का उपयोग राजनीतिक बढ़त के लिए करते हैं, लेकिन आखिर में यह दर्जनों बेगुनाहों को बदनाम करता है और उनकी संभावनाओं को क्षति पहुंचाता है.’
इसी तरह का विचार शाह आलम भी व्यक्त करते हैं. बिस्कुट की दुकान चलाने वाले शाह आलम कहते हैं कि आतंकी ठप्पे ने जिले के कई लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया और नौकरी की संभावनाओं को बाधित किया. उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हमारे गांव पर लगा यह आतंकी ठप्पा पूरी तरह से मिटा दिया जाये. लेकिन हम जो सोचते हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है. राजनीतिक आका ऐसा नहीं सोचते, क्योंकि इससे उनका उद्देश्य पूरा होता है.’
संजरपुर के एक अन्य दुकानदार फैजुर रहमान ने कहा कि आतंकी ठप्पा विस्फोट मामले के फैसले के साथ फिर से चर्चा में है, क्योंकि राजनेता इसे उठा रहे हैं. लेकिन जमीन पर इसका असर नहीं है. इस तरह की राजनीति से लोग तंग आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि मुट्ठी भर लोगों के अलावा, हिंदू और मुसलमान दोनों जानते हैं कि आतंकवाद की यह बात वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने की एक चाल है और यह काम नहीं करेगी.
वर्ष 2008 में दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ के बाद संजरपुर एक ‘आतंकी केंद्र’ के रूप में सुर्खियों में आया था. इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी की मौत हो गई थी और 2 सहयोगी घायल हो गये थे. वहीं संजरपुर गांव के रहने वाले 2 आतंकवादी मारे गए थे.
सराय मीर के पास सूखे मेवे और खजूर की दुकान के मालिक मोहम्मद लियाकत कहते हैं कि सत्ता में बैठे लोगों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण आतंक का ठप्पा लगा हुआ है. लियाकत ने कहा, ‘मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और आजमगढ़ के संबंध में आतंकवाद की सभी बातों से अब हमारे लड़कों के लिए अच्छी नौकरी पाना और भी मुश्किल हो जाएगा.’
सराय मीर बाजार में रसोई गैस के सामान बेचने वाले दुकानदार मालिक मोहम्मद अनीस भी इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताते हैं. वे कहते हैं, ‘यह एक सियासी खेल है, वास्तविक मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है क्योंकि लोगों की क्रय शक्ति कम होने के कारण व्यापार में गिरावट आई है, ये भटकाव की रणनीति हैं.’
कई लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आतंकी मामले में दोषी पाए गए लोगों को राजनीतिक कारणों से झूठा फंसाया गया था. वहीं एक डेंटल सर्जन विद्या सागर ने कहा कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने ठीक ही बताया था कि सपा ने आतंकवादियों का समर्थन किया था और अखिलेश यादव सरकार के तहत आजमगढ़ ‘आतंक का कारखाना’ बन गया था, क्योंकि कई युवा भटक गए थे.
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आजमगढ़ जिले (Azamgarh) के सराय मीर और संजरपुर दोनों निजामाबाद विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. वहां पर सपा के मौजूदा विधायक आलमबादी आजमी भाजपा के मनोज यादव से मुकाबला कर रहे हैं. निजामाबाद विधानसभा क्षेत्र में 60,000 से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं. इनके अलावा 75,000 यादव, 68,000 दलित और लगभग 35,000 सवर्ण (ब्राह्मण और ठाकुर) हैं.
बीएसपी से कैलाश यादव के मैदान में उतरने से मुस्लिम वोट विभाजन की चिंता सपा खेमे को परेशान कर रही है. इस क्षेत्र में सातवें और अंतिम चरण में 7 मार्च को मतदान (UP Assembly Election 2022) होगा, जबकि मतगणना 10 मार्च को होगी.
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