अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने करियर की शुरुआत जर्नलिज्म से की थी. पत्रकारों के साथ उनका व्यवहार बहुत सरल था.
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नई दिल्ली: अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें उनकी पार्टी के साथ विपक्ष से भी प्रेम मिला है. भारत के राजनीतिक इतिहास के पन्नों पर अटल जी का नाम सुनहरे शब्दों में लिखा गया है. उनके भाषण और बेबाक बोल के सभी दीवाने रहे हैं. जब वे सदन में बोलने के लिए खड़े होते थे तो उन्हें हर कोई सुनना चाहता था.
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सत्ता छोड़ कर भी कोई दुख नहीं होगा
उनका ऐसा एक भाषण है, जो कभी कोई भूल नहीं सकता.31 मई 1996 को, जब अटल बिहारी प्रधानमंत्री थे और विपक्ष उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास पत्र ले कर आया था, तो उन्होंने खुद कहा था कि सदन में संख्या बल कम है. और प्रेसिडेंट को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. इस दौरान उन्होंने जो बात कही थी, वह सबके दिमाग में घर कर गई. उन्होंने बड़े बेबाक तरीके से अपने भाषण में कहा था, 'आज प्रधानमंत्री हूं, थोड़ी देर बाद नहीं रहूंगा, प्रधानमंत्री बनते समय कभी मेरा दिल आनंद से उछलने लगा ऐसा नहीं हुआ, और ऐसा नहीं है कि सब कुछ छोड़छाड़ के जब चला जाऊंगा तो मुझे कोई दुख होगा....'
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ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं
उस दौरान अपने राजनीतिक सिद्धांतों के लेकर उन्होंने साफ कह दिया था, 'मैं 40 साल से इस सदन का सदस्य हूं, सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा, मेरा आचरण देखा, लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा.'
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जब उन्होंने पूछी थी यह बड़ी बात
लोग अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में क्या सोचते हैं, इससे उनको कभी फर्क नहीं पड़ता था. उनका मकसद बस इतना था कि यह देश नहीं टूटना चाहिए. एक बार उन्होंने संसद के पटल पर कहा था, 'कई बार यह सुनने में आता है कि वाजपेयी तो अच्छा लेकिन पार्टी खराब....अच्छा तो इस अच्छे वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं?'
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आडवाणी को लेकर बोली थी यह बात
अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का रिश्ता हमेशा से गहरा रहा है. दोनों हमेशा साथ ही रहते थे. एक बार मजाकिया लहजे में अटल जी ने आडवाणी के लिए बोला था कि 'भारत और पाकिस्तान को एक साथ लाने का एक यह तरीका हो सकता है कि दोनों देशों में सिंधी बोलने वाले प्रधानमंत्री आ जाएं. यह मेरी इच्छा थी जो पाकिस्तान में तो पूरी हो गई है, लेकिन भारत में यह सपना पूरा होना अभी बाकी है.'
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देश नहीं बिगड़ना चाहिए
अटल जी का मानना था कि पार्टियां चाहे बनें या बिगड़ें, लेकिन देश नहीं बिगड़ना चाहिए. देश में स्वस्थ्य डेमोक्रेसी की व्यवस्था रहनी चाहिए.
उन्होंने कहा, 'जब कभी जरूरत पड़ी, संकटों में हमने उस समय की सरकार की मदद की है, उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी ने मुझे विरोधी दल के रूप में जिनेवा भेजा था. पाकिस्तानी मुझे देखकर हैरान रह गए थे. वो सोच रहे थे ये कहां से आ गया? क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता राष्ट्रीय कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता. वह हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है, यह हमारी प्रकृति नहीं है, यह हमारी परंपरा नहीं है. सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए... इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.'
पत्रकार से प्रधानमंत्री का तय किया सफर
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने करियर की शुरुआत जर्नलिज्म से की थी. पत्रकारों के साथ उनका व्यवहार बहुत सरल था. उन्होंने एक बार कहा था कि 'मैं पत्रकार होना चाहता था, बन गया प्रधानमंत्री, आजकल पत्रकार मेरी हालत खराब कर रहे हैं. मैं बुरा नहीं मानता हूं, क्योंकि मैं पहले यह कर चुका हूं....'
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