देवोत्थान एकादशी के दिन अयोध्या में होती है पंचकोसी परिक्रमा, होती है मोक्ष की प्राप्ति
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देवोत्थान एकादशी के दिन अयोध्या में होती है पंचकोसी परिक्रमा, होती है मोक्ष की प्राप्ति

Ayodhya Panch Koshi Parikrama: अयोध्या में 5 नवंबर को पंचकोसी परिक्रमा शुरू हो जाएगी. 

 

पंचकोसी

अयोध्या: राम नगरी अयोध्या में आज रात 12:48 बजे से 14 कोसी परिक्रमा शुरू हो जाएगी. यह 24 घंटे अनवरत चलती रहेगी. इसके बाद 4 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी ( Dev Uthani Ekadashi 2022) के मौके पर पंचकोसी (Panch Koshi Parikrama ) परिक्रमा होगी, जो पूरे दिन चलती रहेगी. इसके बाद 8 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा स्नान का पर्व होगा. अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा की परंपरा सदियों पुरानी है. प्रबोधिनी एकादशी के दिन 5 कोस की परिक्रमा करने का पौराणिक महत्व है. यह परिक्रमा राममंदिर के पांच कोस के भीतर की जाती है. इस दिन को देवउठनी, देवउठानी, देवोत्थान एकादशी और हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है.

नंगे पाव की जाती है 5 कोसी परिक्रमा
अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर समिति द्वारा देवोत्थान एकादशी के दिन 5 कोस की परिक्रमा नंगे पाव की जाती है. इस दिन व्रत रखने का भी खास महत्व है. अयोध्या में 15 किलोमीटर की परिधि में यह परिक्रमा की जाती है. मान्यता है कि मानव शरीर पांच भौतिक तत्वों से मिलकर बना है. पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश. मनुष्य को इस भौतिक शरीर में जन्म लेने से लेकर मरने तक कई कष्टों का सामना करना पड़ता हैं. जो लोग अयोध्या की 5 कोसी परिक्रमा कर लेते हैं, उनको भौतिक शरीर से छुटकारा मिल जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा परिक्रमा करने से पाप से भी मुक्ति मिलती है.

कार्तिक परिक्रमा मेले में भी इस बार कई लाख श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद जताई जा रही है. इसे लेकर जिला प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है. जिला प्रशासन का दावा है कि आने वाले श्रद्धालुओं को बिना किसी असुविधा के इस पूरे परिक्रमा मेला को संपन्न कराया जाएगा. इसके लिए जनपद के सभी विभागों को अलर्ट कर दिया गया है. इस बार का कार्तिक परिक्रमा मेला अयोध्या प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है. 

शुरू हो जाते हैं सभी मांगलिक कार्य
देवोत्थान एकादशी के दिन से ही विवाह संस्कार, धार्मिक अनुष्ठान और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. मान्यता है कि आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी तिथि को विष्णु भगवान चार महीनों के लिए सो जाते हैं. इसके बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी के दिन जगते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है क्योंकि 4 महीनों में श्रीहरि शेषनाग की शैय्या पर सोते हैं इसलिए उन चार महीनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते. देवोत्थान एकादशी से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.

अयोध्या के हर मंदिर में होता है तुलसी विवाह
वैष्णव संप्रदाय में अयोध्या के सभी मंदिरों में देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह संस्कार किया जाता है. इस दिन को तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन हिंदू लोग अपने घरों में तुलसी जी के पौधा की पूजा-अर्चना करते हैं क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी जी बहुत प्रिय हैं. माना जाता है कि कार्तिक महीने में जो व्यक्ति तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह करते हैं उनके पिछले जन्मों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं साथ ही पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन घर-घर में स्त्रियां शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती हैं. तुलसी जी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है. कार्तिक मास की नवमी, दशमी और एकादशी को व्रत एवं पूजन कर तुलसी विवाह किया जाता है. इसके अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को दान करना शुभ माना जाता है.

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