Lockdown में बच्चे हो गए चिड़चिड़े, नहीं सुनते बात, तो यह खबर हर मां-बाप को पढ़नी चाहिए
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Lockdown में बच्चे हो गए चिड़चिड़े, नहीं सुनते बात, तो यह खबर हर मां-बाप को पढ़नी चाहिए

बच्चे के मन की बात जानने के लिए उनसे बात करें. जानने की कोशिश करें कि उन्हें कौन सी बातें परेशान कर रही है. पैरेंट्स को बच्चों की बातों को सुनना चाहिए, पर उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए, उन्हें बिना किसी दखल के ज्यादा से ज्यादा सुनें.

सांकेतिक तस्वीर

नई दिल्ली: भारत में कोरोनावायरस (Coronavirus) के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. कोविड-19 ने देश-दुनिया को प्रभावित किया. लॉकडाउन के बाद लोगों की मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हुई. कम से कम हर पांच में से एक भारतीय मानसिक बीमारी से जूझ रहा है. लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे हो रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन आने की जल्द संभावना बन रही है लेकिन इसके बावजूद देश में लाखों लोग कोरोना संक्रमित हैं. इस कोरोना महामारी ने मासूम बच्चों की जिंदगी पर ब्रेक लगा दिया था.

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बच्चों के मन में नकारात्मक विचार
लॉकडाउन खुलने के बाद भी लोगों की मानसिक स्थिति अभी बेहतर नहीं हुई, खासकर छोटे बच्चों की. इसका असर बच्‍चों की मानसिक दशा पर ऐसा पड़ा कि बच्चों के मन में निगेटिविटी आ गई. हम सबको इसे गंभीरता से लेना चाहिए, क्‍योंकि धीरे-धीरे ये तनाव गहरे अवसाद (Depression) का रूप ले सकता है.

बच्चों की जिंदगी सिमटी
स्कूल-कॉलेज बंद होने और अन्य बंदिशों के कारण बच्चों की जिंदगी सिमट सी गई थी. ज्यादातर बच्चे (Child) निराशा और दबाव को झेल नहीं पाए. कई बच्चों के विहेवियर में बहुत बदलाव देखा गया. यहां तक कि वे आत्महत्या जैसा कठोर कदम तक उठाने लगे.

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बच्चों में बढ़ा तनाव
एक जगह लगातार रहना, दोस्‍तों, स्‍कूल से दूरी बच्‍चों में तनाव के कारण बने, वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस का डर ने उनके तनाव को और बढ़ा दिया है. इस कारण बच्चे अपनी पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहे. ऑनलाइन क्लासेज (Online Classes) भी चल रही हैं. पर कुछ बच्चों का ध्यान इन पर नहीं लग पा रहा है. बड़े बच्चों के लिए तो कई राज्यों में स्कूल-कॉलेज खोल दिए गए हैं. लेकिन छोटे बच्चे अभी भी घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. बच्‍चों का पढ़ाई में मन न लगना इस बात का संकेत हो सकता है कि वे कहीं न कहीं मानसिक तौर पर डिस्‍टर्ब्ड हैं.

अचानक से चुप रहने वाले बच्चों पर रखें नजर
बच्चे कहीं न कहीं किसी बात को मन में दबाकर बैठे हैं जो शायद आपसे भी शेयर नहीं कर रहे हैं. जो बच्चे चुपचाप रहने लगे हैं, या किसी भी बात को शेयर नहीं कर पा रहे, ऐसे बच्चे भी अवसाद में जा सकते हैं. इन बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. बच्‍चे किसी तरह प्रभावित न हों, ये ध्‍यान रखने की जरूरत पेरेंट्स को है.

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पैरंट्स सुनें बच्चों की बातें
बच्चे के मन की बात जानने के लिए उनसे बात करें. जानने की कोशिश करें कि उन्हें कौन सी बातें परेशान कर रही है. पैरंट्स को बच्चों की बातों को सुनना चाहिए, पर उनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए, उन्हें बिना किसी दखल के ज्यादा से ज्यादा सुनें.

बच्चों की लाइफस्टाइल में बदलाव भी जिम्मेदार
बच्‍चों की दिनचर्या में भी बदलाव हुआ है. उनके सोने, खाने का समय बदला है. वे देर तक सोने या किसी भी समय सोने, खाने के आदी हो रहे हैं. जिसके चलते जहां पर उनकी हेल्थ प्रभावित हो रही है, वहीं उनमें नींद पूरी तरह न आने जैसी समस्‍याएं भी पनपने लगी हैं. बाहर जाते थे तो शारीरिक रूप से एक्टिव रहते थे पर लॉकडाउन के कारण घर पर ही रहना पड़ा. टीवी, फोन, या गेम यही उनकी दिनचर्या का हिस्सा बना. अब लॉकडाउन खुलने के बाद उनको फिर से फॉर्म में आने के लिए टाइम लगेगा.

परिवार को रहना होगा सतर्क
अभिभावकों को परिवार की जिम्मेदारी के साथ बच्चों की भी चिंता करनी है. बच्चे का व्यवहार अचानक से बदले तो सतर्क होना होगा. बच्चा चुपचाप रहने लगे. खाना न खाए. छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाने लगे या बहुत अधिक गुस्सा करने लगे, उसके भीतर नकारात्मक विचार आने लगें तो बिना देर किए डॉक्टरी सलाह लें. जरा सी चूक या लापरवाही बच्चे के जीवन पर भारी पड़ सकती है. बच्चों के साथ बात करें उससे बातों में बातों में जानने की कोशिश करें. बच्चों के साथ इनडोर गेम खेलें.

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बच्चों के साथ गुजारें क्वॉलिटी टाइम
कोरोना के चलते लॉकडाउन में कई महीने बच्चे घर में कैद रहे. घर में रहने और लगातार टीवी, फोन का यूज करके उनका जो रूटीन था वो पूरी तरह चेंज हो गया.  हम भी लगातार घर में रहते हुए बोर हो जाते हैं तो सोचिए बच्चे तो चंचल होते हैं. उनके खेलने कूदने पर एकदम से ब्रेक लग जाना उनकी मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव डालेगा. ऐसे में जब स्कूल धीरे-धीरे खुलने लगे हैं तो अपने बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करे. इसके साथ ही कोविड गाइडलाइन के बारे में भी अवेयर करते रहें.

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