यूपी के इस शहर की बात निरालीः कन्नौज को इसलिए कहा जाता है 'इत्र नगरी'? जानें इस कारोबार से जुड़ी दिलचस्प बातें
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand1143936

यूपी के इस शहर की बात निरालीः कन्नौज को इसलिए कहा जाता है 'इत्र नगरी'? जानें इस कारोबार से जुड़ी दिलचस्प बातें

कन्नौज का इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. यह शहर इत्र की खूशबू के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इस आधुनिक जमाने में भी इसे भट्टियों में ही बनाते है. कन्नौज में इत्र निर्माण की 350 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. यहां से दुनियाभर के 60 से ज्यादा देशों में इत्र भेजा जाता है.

यूपी के इस शहर की बात निरालीः कन्नौज को इसलिए कहा जाता है 'इत्र नगरी'? जानें इस कारोबार से जुड़ी दिलचस्प बातें

कन्नौज: अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी वहां की खासियत और ऐतिहासिक जानकारियों को जानने के शौकीन हैं, तो आज की यह जानकारी आपको जरूर अच्छी लगेगी. यूपी में आज भी ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप जानते भी नहीं होंगे. इनमें मुगलकालीन किस्से भी शामिल हैं.

ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं और विश्व स्तर पर इसकी पहचान भी है. यूपी के सभी जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अलग विशेषता है, जो सभी को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है. इसी क्रम में हम आपको कन्नौज की मशहूर चीज के बारे में बताने जा रहे हैं. 

पहचानो कौनः इस बच्ची का UP से है रिश्ता, 'मिस यूनिवर्स' का ताज पहनकर बढ़ा चुकी है इंडिया की शान 

इत्र नगरी के नाम से है मशहूर 
जब जिक्र महक का होता है तो कन्नौज को सबसे पहले याद किया जाता है. यह शहर इत्र की खूशबू के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां कि मिट्टी के कण-कण में इत्र की महक बसी है. यहां के इत्र की डिमांड देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है. खाड़ी देशों में इसकी सबसे ज्यादा मांग है. कन्नौज ने आज के समय में ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से ही इत्र नगरी के नाम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है. 

आज भी पुरानी तकनीक से बनता है यहां इत्र 
यहां 600 साल से इत्र बनाने के लिए देसी तकनीक इस्तेमाल की जा रही है. टेक्नोलॉजी के इस दौर में भी इस कन्नौज के इस कारोबार पर इसकी हवा नहीं लगी है. इतिहास की माने तो कन्नौज को इत्र बनाने का नुस्खा फारसी कारीगरों से मिला था. इन कारीगरों को मुगल बेगम नूरजहां ने बुलाया था. ये फारसी कारीगर मल्लिका-ए-हुस्न नूरजहां ने गुलाब के फूलों से बनाए जाने वाले एक विशेष प्रकार के इत्र निर्माण के लिए बुलवाए थे. तब से लेकर आज तक कन्नौज में इत्र निर्माण के उस तरीके में कोई खास फर्क नहीं आया है. 

नरी-सेंमरी मंदिर में चमत्कारिक आरती देखने उमड़े भक्त, दीपक की लौ आरपार होने पर भी नहीं जली चादर 

प्राकृतिक गुणों से लबरेज होता है यहां का इत्र
अब भी कन्नौज में अलीगढ़ के दश्मक गुलाबों से निर्मित इत्र विश्व विख्यात है. जिस तरह से आज फ्रांस के ग्रास शहर का परफ्यूम लोगों की पहली पसंद है, उसी तरह से कभी किसी दौर में कन्नौज का इत्र पहली पसंद हुआ करता था. कन्नौज का इत्र पूरी तरह प्राकृतिक गुणों से युक्त और एल्कोहल मुक्त होता है. यही वजह है कि दवा के रूप में कुछ रोगों जैसे नींद न आना, एंग्जाइटी और स्ट्रेस में इसकी खुशबू रामबाण इलाज मानी जाती है. 

यहां का परंपरागत इत्र लोगों की पहली पसंद
आज भी परंपरागत इत्र की महक जिसमें गुलाब, बेला, केवड़ा, केवड़ा, चमेली, मेहंदी, और गेंदा को पसंद करने वाले लोगों की कमी नहीं है. इसके अलावा कुछ खास किस्म के इत्र जैसे शमामा, शमाम-तूल-अंबर और मास्क-अंबर भी हैं. सबसे कीमती इत्र अदर ऊद है, जिसे असम की एक विशेष लकड़ी 'आसामकीट' से बनाते है. साथ ही यहां के जैसमिन, खस, कस्तूरी, चंदन और मिट्टी अत्तर बेहद मशहूर हैं. 

हरियाणवी गाने 'बूढ़ी न्यू मटके' पर छोटी बच्ची ने मचाई खलबली, एक्सप्रेशन की कायल हुई दुनिया

ऐसे तैयार किया जाता है इत्र
कन्नौज का इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. इस आधुनिक जमाने में भी इसे भट्टियों में ही बनाते है. गुलाब, गेंदा, बेला या चमेली जिस भी फूल का इत्र तैयार करना हो उसकी पंखुड़ियों को एक बड़े से तांबे के पात्र में डाला जाता है. पात्र में पानी भरकर उसे भट्टी पर चढ़ाते है. आग की भट्टी के ऊपर पात्र में पानी रखा जाता है. पानी को लगातार गर्म किया जाता है. उससे निकलने वाली भाप ही पात्र में रखी फूलों की पंखुड़ियों को गरम करती है.

पंखुड़ियों को गरम करके ही खुशबू या तेल निकाला जाता है. पात्र से निकला इत्र या तेल एक लड़की से पार होते हुए एक सुराही के आकार के बर्तन में इकट्ठा किया जाता है. यह सारी प्रक्रिया आसवन विधि या डिस्टिलेशन प्रोसेस के जरिए की जाती है. जिस पात्र में तेल या इत्र इकट्ठा किया जाता है उसे भभका कहते है. भभका में एकत्र तेल को अलग कर प्रोसेस और फिर पैकिंग की जाती है. 

कन्नौज की मिट्टी भी महकती है
कहा जाता है कि कन्नौज की मिट्टी में एक अलग ही खुशबू समाहित है. यही वजह है कि यहां की मिट्टी से भी इत्र का निर्माण किया जाता है. जब बरसात की बूंदें इस मिट्टी पर पड़ती हैं, तो मिट्टी से एक खास खुशबू आनी शुरू होती है. यहां जिस मिट्टी से इत्र बनाते है उसे तांबे के बर्तनों में पकाया जाता है. इस मिट्टी से उठने वाली खुशबू को बेस ऑयल के साथ मिलाकर इत्र तैयार किया जाता है.

Video: नरी-सेंमरी मंदिर में शक्ति का चमत्कार, दीपक की लौ हुई आरपार फिर भी नहीं जली चादर 

बहुत बड़ा है यहां इत्र का कारोबार
कन्नौज में इत्र निर्माण की 350 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. यहां से दुनियाभर के 60 से ज्यादा देशों में इत्र भेजा जाता है. इस कारोबार के लिए फूलों की खेती से 50 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं. 60 हजार से ज्यादा लोगों को इत्र कारोबार से रोजगार मिलता है. ये इत्र यूएसए, यूके, दुबई, सऊदी अरब, फ्रांस, ओमान, सिंगापुर समेत कई देशों में एक्सपोर्ट होते हैं.

WATCH LIVE TV

Trending news