जब फांसी देने के बाद बेहोश हो गया था ये जल्लाद, सबसे ज्यादा रिकॉर्ड भी इसी के नाम
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जब फांसी देने के बाद बेहोश हो गया था ये जल्लाद, सबसे ज्यादा रिकॉर्ड भी इसी के नाम

फांसी के फंदे पर चढ़ाने वाले जल्लाद को भी इसके लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है. ऐसा हो भी क्यों ना. अपने ही आंखों के सामने किसी को मरते देखना आसान बात नहीं है. भले ही वह एक अपराधी क्यों ना हो.

जल्लाद नाटा मल्लिक (फाइल फोटो).

लखनऊ: आजाद भारत में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जाएगी. वह महिला है अमरोहा की शबनम, जिसने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी. इस अपराध के लिए शबनम को कभी भी फांसी हो सकती है. उसे सूली पर चढ़ाने की जिम्मेदारी मेरठ के पवन जल्लाद को दी गई है. वही पवन जल्लाद जिसने निर्भया के चारों अपराधियों को फांसी पर लटकाया था. 

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वैसे तो फांसी की सजा कोर्ट में बैठे जज सुनाते हैं, लेकिन उसे अंजाम तक एक जल्लाद ही पहुंचाता है. फांसी के फंदे पर चढ़ाने वाले जल्लाद को भी इसके लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है. ऐसा हो भी क्यों ना. अपने ही आंखों के सामने किसी को मरते देखना आसान बात नहीं है. भले ही वह एक अपराधी क्यों ना हो. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे एक जल्लाद फांसी देने के बाद बेहोश हो गया. वो भी ऐसा जल्लाद जिसके नाम पर सबसे ज्यादा फांसी देने का रिकॉर्ड दर्ज है. वह फांसी देने के बाद इस्तेमाल की गई रस्सी से लॉकेट बनाने के लिए भी मशहूर था. हम बात कर रहे हैं कोलकाता के जल्लाद नाटा मल्लिक की. 

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स्ट्रेचर पर लाद कर लाना पड़ा था बाहर
साल 2004 में रेप और मर्डर के एक दोषी को धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा सुनाई गई. इसकी जिम्मेदारी दी गई नाटा मल्लिक को. कहा जाता है कि नाटा ने अपने बेटे महादेव की मदद से धनंजय के गले में फांसी का फंदा डाला और उसे फांसी पर लटकाया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फांसी पर लटकाने के बाद ही नाटा मल्लिक बेहोश हो गये. जिसके बाद उन्हें स्ट्रेचर पर बाहर ले आना पड़ा था. इतना ही नहीं कहा जाता है कि फांसी देने के बाद नाटा सदमें में भी आ गए थे.  

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नाटा मल्लिक की 25वीं और आखिरी फांसी थी
14 अगस्त 2004 को नाटा मल्लिक ने अपनी 25वीं और आखिरी फांसी धनजंय चटर्जी को ही दी थी. उसे 14 अगस्त, 2004 की सुबह करीब 4.30 बजे अलीपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई. कहते हैं कि जब किसी के सामने मौत खड़ी हो तो इंसान कभी झूठ नहीं बोलता. लेकिन धनंजय मरते दम यही कहता रहा कि वह निर्दोष है.  

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आजाद भारत में पहला मामला 
आपको बता दें कि आजाद भारत का यह पहला मामला था जब रेप के लिए किसी को फांसी दी गई थी. धनंजय कोलकाता के एक अपार्टमेंट में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. अपार्टमेंट में ही रहने वाली एक बच्ची 5 मार्च, 1990 को अपने फ्लैट में मृत मिली थी. उसका रेप के बाद मर्डर किया गया था. 14 साल तक मुकदमा चलने के बाद धनंजय को दोषी पाया गया था. जिसके लिए उसे फांसी हुई थी. इस घटना के बाद दूसरी बार निर्भया के चारों दोषियों को फांसी पर लटकाया गया था. 

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