ये महिलाएं रोजाना मगरमच्छों से भरे पानी में पूरा करती हैं 800 मीटर लंबा 'मौत का सफर'!
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ये महिलाएं रोजाना मगरमच्छों से भरे पानी में पूरा करती हैं 800 मीटर लंबा 'मौत का सफर'!

मौत का 800 मीटर लंबा सफर तय करना उनके जीवन के लिए मजबूरी है.

लकड़ी बीनने के लिए हर रोज ये महिलाएं तय करती हैं मौत का सफर

हिमांशु मित्तल, कोटा: जगजीत सिंह की एक गजल थी... घर से निकले थे हौसला करके, लौट आए खुदा खुदा करके... जिन्दगी तो कभी नहीं आई, मौत आई जरा जरा करके... कुछ ऐसी ही कहानी बिरधी बाई की है जिसकी तीन पीढ़ियां रोजाना बेखौफ होकर 150 फीट गहरी और 1100 से ज्यादा मगरमच्छों और घड़ियालों से भरी खौफनाक चंबल नदी को पार कर लकड़ियां काट कर लाती हैं तब जा कर इन महिलाओं के घर में उजाले होते हैं. जी हां, यहां जिंदगी के लिए रोजाना मौत से होकर गुजरना पड़ता है. मौत और जिंदगी के बीच सहारा बनती है एक हवा भरी ट्यूब.

  1. यहां जिंदगी दो जून की रोटी के लिए रोजाना दांव पर लगती है
  2. लकड़ी के लिए हर रोज ये महिलाएं तय करती हैं मौत का सफर.
  3. ट्यूब पर नदी पार करते समय कभी भी हो सकता है जानलेवा हादसा

रोजाना पूरा करती हैं 800 मीटर लंबा मौत का सफर
ये कहानी है कोटा की उन दिलेर महिलाओं की जिनकी जिंदगी दो जून की रोटी के लिए रोजाना दांव पर लगती है. लकड़ी बीनने के लिए हर रोज ये महिलाएं तय करती हैं मौत का सफर. मौत का 800 मीटर लंबा सफर तय करना उनके जीवन के लिए मजबूरी है. कोटा की ये जांबाज महिलाएं चंबल के पार जीवन की तलाश एक हवा भरे ट्यूब के सहारे करती हैं.

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जंगल से लकड़ियां लाने के लिए होता है ये खतरनाक सफर
इन महिलाओं की डबडबाती आंखों और झुर्रीदार बदन के भीतर आग है तो सिर्फ जीवन की, जिसके लिए हर रोज इन्हें पहले मरना पड़ता है. एक पतले हवा भरे ट्यूब पर सवारी कर चंबल पार करना पड़ता है. लेकिन, चंबल नदी में ट्यूब के नीचे मौजूद मगरमच्छों का खतरा भी इनके इरादों को कमजोर नहीं होने देता और रोजाना ये सभी महिलाएं इसी तरह नदी पार कर जंगल से लकड़ियां लाती हैं.

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रोजाना करीब दो घंटे मगरमच्छ भरे पानी के ऊपर रहती हैं ये महिलाएं
जानकारी के मुताबिक लगभग 1 घंटे तक इन्हें इसी अंदाज में रोजाना जिंदगी और मौत से संघर्ष करना पड़ता है. जिसके बाद ये नदी के पार पहुंच जाती हैं. ऐसी ही स्थिति में इन्हें वापस घर भी लौटना पड़ता है. यहां कभी भी सफर के दौरान जानलेवा हादसा हो सकता है, जिस बात का डर इन महिलाओं को भी रहता है.

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फिल्म साथी का और कुमार सानू की आवाज में गाये गए एक गाने की वो पंक्तियां भी शायद इन महिलाओं के हालात पर ही लिखी गई हैं... जिंदगी की तलाश में हम... मौत के कितने पास आ गए... जब ये सोचा तो घबरा गए... आ गए हम कहां आ गए...

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