डॉ. बनर्जी ने कहा मैं यह पुरस्कार पाकर खुश हूं. उन्होंने आगे कहा कि मैं 57 सालों से मरीजों का इलाज कर रहा हूं. यह पद्मश्री उनके चलते संभव हुआ है.
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कोलकाता: पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद भी डॉ. सुशोवन बनर्जी ने अपने मूल कार्य को नहीं छोड़ा है. डॉ. बनर्जी ने 26 जनवरी की सुबह लोगों के साथ तिरंगा फहराया, इसके बाद कुछ मरीजों से मिलने के बाद कुछ मरीजों के घर भी इलाज करने पहुंचे. महज एक रुपये में गरीब मरीजों का इलाज करने वाले डॉ. बनर्जी पश्चिम बंगाल के बोलपुर के बाशिंदों के बीच ‘एक टकार डॉक्टर’ के रूप में चर्चित हैं. जब बोलपुर के लोगों को पता चला कि डॉक्टर सुशोवन बनर्जी को पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया है तो लोगों की उनके घर भीड़ उमड़ पड़ी. उन्हें विश्व भारती विश्वविद्यालय के vice chancellor समेत भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने डॉ. बनर्जी को मुबारकबाद दी.
पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सुशोवन बनर्जी ने साल 1964 में बीरभूम जिले के बोलपुर में, 'सिस्टर निवेदिता' के नाम से एक क्लिनिक खोला. इस क्लिनिक का उद्देश्य था कैसे गरीब और बेसहारा मरीजों का कम खर्च में इलाज किया जा सके.कोलकाता के RG Kar Medical College से पोस्ट ग्रेजुएट और कलकत्ता विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल जितने के बाद डॉक्टर सुशोवन बनर्जी ने लंदन से haematology में डिप्लोमा किया.
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इसके बाद वह अपने शहर बोलपुर में आम लोगो के बीच रहने के लिए वापस भारत आ गए. उनका कहना था कि लोग की सेवा करना ही उनके जीवन का मूल उद्देश्य है और लंदन से लौटने के बाद उन्होंने, गरीबो के लिए मुफ्त में इलाज करना शुरु किया. धीरे-धीरे उन्होंने एक क्लिनिक का भी निर्माण किया और मात्र,"एक रूपए" में मरीज़ो का इलाज करना शुरु किया. इसलिए लोग उन्हें, ‘एक टकार डॉक्टर’यानि "एक रूपए के डॉक्टर" के रूप में जानने लगे.
डॉ. बनर्जी ने कहा मैं यह पुरस्कार पाकर खुश हूं. उन्होंने आगे कहा कि मैं 57 सालों से मरीजों का इलाज कर रहा हूं. यह पद्म श्री उनके चलते संभव हुआ है. मैं यह पुरस्कार उन्हीं लोगों को समर्पित करता हूं.