याद करो कुर्बानी: जब सैकड़ों पाकिस्‍तानी सैनिकों के सामने अकेले बचे थे नायक यदुनाथ सिंह
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याद करो कुर्बानी: जब सैकड़ों पाकिस्‍तानी सैनिकों के सामने अकेले बचे थे नायक यदुनाथ सिंह

पाकिस्‍तानी सैनिकों के इस मंसूबें में सबसे बड़ी अड़चन टैनधान की पीकेट पोस्‍ट नंबर दो थी. इस पीकेट पोस्‍ट पर पाकिस्‍तानी सेना ने लगातार तीन बार हमला किया था.

याद करो कुर्बानी: जब सैकड़ों पाकिस्‍तानी सैनिकों के सामने अकेले बचे थे नायक यदुनाथ सिंह

नई दिल्‍ली: यह कहानी 1947 के भारत-पाक युद्ध की है. पाकिस्‍तानी सेना जम्‍मू-कश्‍मीर के नौशेरा पर अपना कब्‍जा करने की साजिश रच रही थी. पाकिस्‍तानी सैनिकों के इस मंसूबे में सबसे बड़ी अड़चन टैनधान की पीकेट पोस्‍ट नंबर-2 थी. इस पीकेट पोस्‍ट पर पाकिस्‍तानी सेना ने लगातार तीन बार हमला किया था, लेकिन दुश्‍मनों के तीनों हमलों को नायक यदुनाथ सिंह और उनके नौ साथियों ने अपनी बहादुरी और अद्भुत युद्ध कौशल से नाकाम कर दिया था. 

  1. नायक यदुनाथ ने नाकाम की भारतीय पोस्‍ट पर कब्‍जे की कोशिश
  2. दूसरे हमले में नायक यदुनाथ सिंह ने अकेले लिया दुश्‍मन से मोर्चा
  3. नायक यदुनाथ सिंह को सवोच्‍च बलिदान के लिए मिला परमवीर चक्र

तीसरे हमले के दौरान एक स्थिति ऐसी भी आ गई थी, जब नायक यदुनाथ सिंह के सभी साथी दुश्‍मन की गोलियों से हताहत हो चुके थे. दुश्‍मन से मोर्चा लेने के लिए पोस्‍ट पर अब सिर्फ नायक यदुनाथ सिंह ही बचे थे. अकेले होने के बावजूद उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और अपनी सटीक गोलीबारी से दुश्‍मनों को खदेड़ने मे सफल रहे. इसी युद्ध के दौरान दुश्‍मन की बंदूक से निकली दो गोलियां नायक यदुनाथ सिंह के सिर और सीने को चीरती हुई निकल गईं. वे मौके पर ही वीरगति को प्राप्‍त हो गए. 

नायक यदुनाथ सिंह के इस अभूतपूर्व साहस के लिए उन्‍हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. शहीद नायक यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र से सम्‍मानित होने वाले देश के दूसरे सैनिक हैं. इनसे पहले 1947 भारत पाक युद्ध में बगदम की लड़ाई में अपना अद्भुत युद्ध कौशल दिखाने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा को देश का पहला परमवीर चक्र सम्‍मान दिया गया था. आइए जाने परमवीर चक्र विजेता नायक यदुनाथ सिंह की पूरी कहानी... 

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1947 के भारत-पाक युद्ध में मरणोपरांत परमवीर चक्र हासिल करने वाले शहीद नायक यदुनाथ सिंह.

बौखलाए पाकिस्‍तान ने भारत पर किया आक्रमण
भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे के बाद राजा हरि सिंह ने मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए कुछ शर्तों के साथ भारत में जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय की घोषणा कर दी थी. राजा हरि सिंह के इस फैसले से पाकिस्‍तान बुरी तरह बौखला गया था. इसी बौखलाहट में उसने जम्‍मू-कश्‍मीर को जबरन हासिल करने की साजिश रची. साजिश के तहत पाकिस्‍तानी सेना ने पश्तूनो के कबीलाई लड़ाकों के साथ मिलकर 22 अक्‍टूबर 1947 को जम्‍मू-कश्‍मीर की उत्‍तर-पश्चिम सीमा से हमला कर दिया. 

दोमल और मुजफ्फराबाद पर हुआ पहला हमला 
बंदूक, मशीनगन और मोर्टार से लैस करीब-करीब 5000 से अधिक कबाइलियों 22 अक्‍टूबर 1947 को पहला हमला दोमल और मुजफ्फराबाद पर किया था. इसके बाद गिलगित, स्कार्दू, हाजीपीर दर्रा, पुंछ, राजौरी, झांगर, छम्ब और पीरपंजाल की पहाड़ियों पर कबाइली हमला किया गया. अब तक पाकिस्‍तानी सेना ने कबाइलियों की मदद से 24 दिसंबर 1947 को झांगर पर अपना कब्‍जा कर लिया था. झांगर की पहाड़ियों पर बैठी पाकिस्‍तानी सेना ने अपनी मजबूत लोकेशन के चलते मीरपुर और पुंछ के बीच स्थिति कम्‍युनिकेशन लाइन पर कब्‍जा जमा लिया था. 

पाकिस्‍तान के इरादे भांप ब्रिगेडियर ने तैयार की पुख्‍ता रणनीति
अब पाकिस्‍तानी सेना की निगाह नौशेरा पर थी. वह नौशेरा के कोट गांव में कब्‍जा करने में कामयाब रहे थे. नौशेरा की तरफ लगातार बढ़ती पाकिस्‍तानी सेना और कबाइलियों को रोकने के लिए ब्रिगेडियर उस्‍मान के नेतृत्‍व में राजपूत रेजीमेंट की 50 पैरा ब्रिगेड को नौशेरा भेजा गया. ब्रिगेडियर उस्‍मान ने खतरे का आकलन करने के बाद अपनी पुख्‍ता रणनीति बनाई और सेना की विभिन्‍न पोस्‍ट पर तैनात शुरू कर दी गई. इसी तैनाती में नायक यदुनाथ सिंह के नेतृत्‍व में नौ सैनिकों को टैनधान की पीकेट पोस्‍ट नंबर-2 पर तैनात किया गया था. 

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बंदूक, मशीनगन और मोर्टार से लैस करीब-करीब 5000 से अधिक कबाइलियों 22 अक्‍टूबर 1947 को पहला हमला दोमल और मुजफ्फराबाद पर किया था.

हमले के लिए दुश्‍मन ने रची दोहरी साजिश
छह फरवरी की सुबह नायक यदुनाथ सिंह अपने नौ सैनिकों के साथ टैनधान की पीकेट पोस्‍ट नंबर-2 पर तैनात थे. घने कोहरे ने पूरी वादी को घेर रखा था. सुबह करीब 6:40 बजे अचानक दुश्‍मनों की पोस्‍ट से भारी गोलीबारी शुरू हो गई. पूरी घाटी मशीनगन और मोर्टार की आवाज से गूंज रही थी. इसी दौरान, दुश्‍मनों ने साजिश के तहत दूसरी तरफ से भारतीय पोस्‍ट की तरफ चढ़ाई शुरू कर दी. सुबह की पहली किरण के साथ कोहरा छंटना शुरू हुआ. कोहरा छंटते ही नायक यदुनाथ सिंह ने देखा कि हजारों की संख्‍या में दुश्‍मन उनकी पोस्‍ट की तरफ बढ़ रहा है. 

नायक यदुनाथ की अद्भुत रणनीति से असमंजस में फंसे दुश्‍मन
हजारों की तादाद में मौजूद दुश्‍मन से महज दस सैनिकों के बलबूते मोर्चा लेना संभव नहीं था. बावजूद इसके नायक यदुनाथ सिंह ने अपनी हिम्‍मत नहीं छोड़ी. उन्‍होंने सामने दिख रहे दुश्‍मन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक नायाब रणनीति तैयार की. इसी रणनीति के तहत उन्‍होंने दुश्‍मनों पर मशीनगनों से हमला बोल दिया. शुरुआती गोलीबारी में नौ में से चार भारतीय सैनिक दुश्‍मनों की गोली से हताहत हो गए. नायक यदुनाथ सिंह ने एक बार फिर अपने सैनिकों को पुर्नसंगठित किया और दुश्‍मनों पर करारा हमला बोल दिया. खास रणनीति के तहत किए गए इस हमले से दुश्‍मन असमंजस में फंस गया. इसी असमंजस में उसने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी. 

दूसरे हमले में नायक यदुनाथ सिंह ने अकेले लिया दुश्‍मन से मोर्चा
पहला हमला नाकाम होने के बाद पाकिस्‍तानी सेना ने कुछ घंटों बाद नायक यदुनाथ सिंह की पोस्‍ट पर दूसरा हमला किया. पहले हमले में नायक यदुनाथ सहित भारतीय सैनिक घायल हो चुके थे. इसी का फायदा उठाने के लिए पाकिस्‍तान ने अपनी पूरी ताकत से भारतीय पोस्‍ट पर हमला किया. अब नायक यदुनाथ सिंह के पास कोई विकल्‍प नहीं बचा था. उन्‍होंने अपने घायल साथी की मशीनगन उठाई और अंधाधुंध फायरिंग करते हुए पोस्‍ट से बाहर निकल आए. नायक यदुनाथ सिंह की फायरिंग के सामने दुश्‍मन ज्‍यादा देर तक टिक नहीं सका और मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ. 

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नायक यदुनाथ सिंह की फायरिंग के सामने दुश्‍मन ज्‍यादा देर तक टिक नहीं सका और मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ. 

दुश्‍मन ने किया तीसरा और आखिरी हमला
अब तक पोस्‍ट पर तैनात सभी नौ सैनिक वीरगति को प्राप्‍त हो चुके थे. पोस्‍ट पर अकेले नायक यदुनाथ सिंह बचे थे. अब तक की लड़ाई में यदुनाथ सिंह बुरी तरह से जख्‍मी हो गए थे, लेकिन उनका जोश अभी भी बरकरार था. वहीं दुश्‍मन भी हर हालत में इस पोस्‍ट पर अपना कब्‍जा जमाना चाहता था. उसने इस पोस्‍ट पर तीसरा और आखिरी हमला किया. इस हमले से पहले नायक यदुनाथ सिंह पोस्‍ट के हालात के बाबत अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों को बता चुके थे. 

जख्‍मी नायक यदुनाथ का हौसला था बुलंद
नायक यदुनाथ सिंह की मदद के लिए सेना की कुछ टुकड़ियों को रवाना तो कर दिया गया, लेकिन अभी तक वह पोस्‍ट तक नहीं पहुंच सकी थी. अब पोस्‍ट की रखवाली की पूरी जिम्‍मेदारी लहूलुहान हो चुके नायक यदुनाथ सिंह पर थी. दुश्‍मन की सेना लगातार गोलियां बरसाती हुई आगे बढ़ती चली आ रही थी. नायक यदुनाथ सिंह के शरीर पर भले ही जख्‍मों का असर बढ़ता जा रहा था, लेकिन उनके हौसले पहले की तरह बुलंद थे. इसी हौसले का नतीजा था कि अपनी जान की परवाह किए बगैर नायक यदुनाथ अपने पोस्‍ट से बाहर निकलकर मैदान में आ गए. 

नायक यदुनाथ सिंह ने दिया सर्वोच्‍च बलिदान
उन्‍होंने अपनी मशीनगन से अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरू कर दी. नायक यदुनाथ सिंह के मशीनगन से निकल रही गोलियां दुश्‍मन की समझ से बाहर हो रही थी. दुश्‍मन एक-एक करके ढेर होता जा रहा था. तभी दुश्‍मन सेना की बंदूक से निकली दो गोलियां नायक यदुनाथ सिंह के सिर और सीने को भेदते हुए निकल गईं. नायक यदुनाथ सिंह वहीं पर वीरगति को प्राप्‍त हो गए. लेकिन शहादत से पहले वह अपनी रणनीति को सफल बनाने में कामयाब हुए थे. नायक यदुनाथ सिंह की रणनीति थी कि भारतीय सैनिकों की रिइंफोर्समेंट पहुंचने तक दुश्मन को रोके रखा जाए. उनकी शहादत के तुरंत बाद भारतीय फौज मौके पर पहुंच गई और उन्‍होंने दुश्‍मनों को मार भगाया. इस तरह, नायक यदुनाथ सिंह की बहादुरी के चलते पाकिस्‍तानी सेना भारतीय पोस्‍ट पर कब्‍जा करने में नाकाम रही.

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