कहां है परेश बरुआ? असम समझौते में रहा गैरहाजिर, जानिए क्या है उसकी भूमिका
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कहां है परेश बरुआ? असम समझौते में रहा गैरहाजिर, जानिए क्या है उसकी भूमिका

Paresh Baruah: अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट और सरकार के बीच 12 साल तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. लेकिन परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं बना.

कहां है परेश बरुआ? असम समझौते में रहा गैरहाजिर, जानिए क्या है उसकी भूमिका

Assam Peace Agreement: आखिरकार उल्फा के एक गुट से असम समझौते पर हस्ताक्षर हो गया. असल में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त करते हुए शुक्रवार को केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की उपस्थिति में यहां समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसके बाद गृहमंत्री ने कहा कि यह असम के लोगों के लिए बहुत बड़ा दिन है. असम लंबे समय तक उल्फा की हिंसा से त्रस्त रहा और वर्ष 1979 से अब तक 10 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. हालांकि इस समझौते में परेश बरुआ गुट गैरहाजिर रहा है.

क्यों गैरहाजिर रहा परेश बरुआ गुट?
अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट और सरकार के बीच 12 साल तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस शांति समझौते से असम में दशकों पुराने उग्रवाद के खत्म होने की उम्मीद है. लेकिन परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट हालांकि इस समझौते का हिस्सा नहीं है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि परेश बरुआ का उल्फा इंडिपेंडेंट गुट तब तक बातचीत के लिए तैयार नहीं है जब तक कि असम की 'संप्रभुता' के मुद्दे पर चर्चा नहीं होती. उसके कैडर के लोग हिंसा की छिटपुट घटनाओं में भी शामिल रहते हैं. वह भी कई बार विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है. लंबे समय से उससे अपील की जा रही है कि वह भी बातचीत की टेबल पाए आए.

कहां है परेश बरुआ, वह क्यों है महत्वपूर्ण?
असल में परेश बरुआ गुट ने असम में काफी उग्रवाद फैलाया है. ऐसा माना जाता है कि बरुआ चीन-म्यांमा सीमा के निकट एक स्थान पर रहता है. उल्फा का गठन 1979 में ‘‘संप्रभु असम’’ की मांग को लेकर किया गया था. तभी से यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है. केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था. राजखोवा गुट तीन सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में उस समय शामिल हुआ था, जब इसके और केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच इसकी गतिविधियों को रोकने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. लेकिन परेश बरुआ हमेशा से बातचीत के खिलाफ रहा है. अगर वह सरकार के साथ बातचीत में शामिल होता है और समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो यह उग्रवाद के खात्मे की तरफ एक बड़ी जीत साबित हो सकती है.

अरबिंद राजखोवा गुट के हस्ताक्षर के बाद क्या बोली सरकार
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि असम का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन उल्फा हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमत हुआ है. उन्होंने कहा कि समझौते के तहत असम को एक बड़ा विकास पैकेज दिया जाएगा. शाह ने कहा कि समझौते के प्रत्येक खंड को पूरी तरह से लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि अब असम में हिंसा की घटनाओं में 87 प्रतिशत, मौत के मामलों में 90 प्रतिशत और अपहरण की घटनाओं में 84 प्रतिशत की कमी आई है. 

वहीं असम के मुख्यमंत्री ने समझौते को ‘‘ऐतिहासिक’’ बताया और कहा कि यह समझौता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री शाह के मार्गदर्शन और नेतृत्व के कारण संभव हो सका है. अधिकारियों ने बताया कि अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट और सरकार के बीच 12 साल तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. इस शांति समझौते से असम में दशकों पुराने उग्रवाद के खत्म होने की उम्मीद है. 

 उल्फा की स्थापना के बाद का घटनाक्रम समझिए
सात अप्रैल, 1979:
असम के शिवसागर में ऐतिहासिक अहोम-कालीन ‘एम्फीथिएटर’ रंग घर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) का गठन हुआ.
जून, 1979: सदस्यों ने संगठन के नाम, प्रतीक, ध्वज और संविधान पर चर्चा करने के लिए मोरन में बैठक की. 
1980: कांग्रेस के राजनीतिज्ञों, राज्य के बाहर के व्यापारिक घरानों, चाय बागानों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, विशेषकर तेल और गैस क्षेत्र को निशाना बनाकर अपनी ताकत बढ़ानी शुरू की. 
1985-1990: प्रफुल्ल कुमार महंत के नेतृत्व वाली असम गण परिषद (अगप) सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान असम में अशांति की स्थिति पैदा हो गई और उल्फा ने रूसी इंजीनियर सर्गेई को अगवा किये जाने सहित जबरन वसूली और हत्याओं की कई घटनाओं को अंजाम दिया. 
28 नवंबर, 1990: उल्फा के खिलाफ सेना द्वारा ऑपरेशन ‘बजरंग’ शुरू किया गया. इस अभियान का नेतृत्व जीओसी 4 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह ने किया, जो बाद में असम के राज्यपाल बने. 
29 नवंबर, 1990: महंत के नेतृत्व वाली अगप सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया. 
नवंबर 1990: असम को अशांत क्षेत्र घोषित किया गया और सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) कानून लागू किया गया. उल्फा को अलगाववादी और गैर-कानूनी संगठन घोषित किया गया. 
31 जनवरी, 1991: ऑपरेशन ‘बजरंग’ बंद किया गया. 
जनवरी, 1991: तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने राज्यसभा को सूचित किया कि यदि उल्फा राजनीतिक वार्ता की इच्छा व्यक्त करता है तो केंद्र सरकार आवश्यक कदम उठाएगी. उल्फा ने जवाब दिया कि जब तक सैन्य अभियान और राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा, कोई बातचीत संभव नहीं है और असम की ‘संप्रभुता’ की उनकी मांग पर कोई समझौता नहीं होगा. 
जून, 1991: हितेश्वर सैकिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाली. 
सितंबर, 1991: उल्फा के खिलाफ ऑपरेशन ‘राइनो’ शुरू किया गया. 
मार्च 1992: उल्फा दो गुटों में विभाजित हो गया और एक वर्ग ने आत्मसमर्पण कर दिया और खुद को आत्मसमर्पित उल्फा (सल्फा) के रूप में संगठित किया.
1996: अगप सत्ता में लौटी और प्रफुल्ल कुमार महंत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. 
जनवरी 1997: उल्फा के खिलाफ समन्वित रणनीति और संचालन के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सेना, राज्य पुलिस और अर्धसैन्य बलों से युक्त एकीकृत कमान का गठन किया गया. 
1997-2000: कथित तौर पर सल्फा द्वारा उल्फा उग्रवादियों के परिवार के सदस्यों की हत्याएं की गई. 
2001: तरूण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी. 
दिसंबर 2003: पड़ोसी देश में उल्फा और अन्य पूर्वोत्तर उग्रवादियों के शिविरों को बंद करने के लिए रॉयल भूटान सेना द्वारा ‘ऑपरेशन ऑल क्लियर’ शुरू किया गया. 
2004: उल्फा सरकार से बातचीत के लिए राजी हुआ. 
सितंबर 2005: उल्फा ने 11-सदस्यीय ‘पीपुल्स कंसल्टेटिव ग्रुप’ (पीसीजी) का गठन किया. प्रख्यात ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका इंदिरा (मामोनी) रायसोम गोस्वामी के नेतृत्व में केंद्र के साथ तीन दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई प्रगति नहीं हो पाई. 
जून, 2008: उल्फा की 28वीं बटालियन के नेताओं ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की. दिसंबर, 2009: अरबिंद राजखोवा सहित उल्फा के शीर्ष नेताओं को बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया, भारत निर्वासित किया गया और गुवाहाटी की जेल में बंद कर दिया गया. 
दिसंबर 2010: जेल में बंद उल्फा नेता ने सरकार से बातचीत का आग्रह करने के लिए ‘सिटीजन फोरम’ बनाया, जिसमें बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों और पेशेवरों को शामिल किया गया. 
2011: राजखोवा और जेल में बंद अन्य नेता रिहा. उल्फा दो गुटों में विभाजित हो गया: राजखोवा के नेतृत्व वाला उल्फा (समर्थक वार्ता) और परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (स्वतंत्र). 
2012: उल्फा ने सरकार को 12-सूत्रीय मांगपत्र सौंपा. 
2015: उल्फा महासचिव अनूप चेतिया को 1997 से 18 साल की सजा काटने के बाद बांग्लादेश की जेल से रिहा किया गया. 
मई 2021: बीजेपी के हिमंत विश्व शर्मा असम के मुख्यमंत्री बने. 
अप्रैल 2023: केंद्र ने उल्फा (वार्ता समर्थक) गुट को प्रस्तावित समझौते का मसौदा भेजा. 
अक्टूबर 2023: अनूप चेतिया ने बताया कि मसौदा प्रस्तावों के संबंध में सुझाव केंद्र को भेजे गए. 
29 दिसंबर, 2023: उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त करते हुए केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. Agency Input

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