धीरूभाई अंबानी ने दुबई के शेख को क्यों बेच दी हिंदुस्तान की मिट्टी?
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धीरूभाई अंबानी ने दुबई के शेख को क्यों बेच दी हिंदुस्तान की मिट्टी?

ZEE News Time Machine: धीरूभाई अंबानी हमेशा अलग-अलग बिजनेस करने और उससे मुनाफा कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. बात 1960 की है जब धीरूभाई ने अरब के शेख को भारत की मिट्टी एक्सपोर्ट कर दी थी.

धीरूभाई अंबानी ने दुबई के शेख को क्यों बेच दी हिंदुस्तान की मिट्टी?

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1960 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. ये वही साल है जब पंडित जवाहर लाल नेहरू की सिगरेट लेने के लिए विशेष विमान ने उड़ान भरी थी. इसी साल फिरोज गांधी का निधन हुआ था और अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज के साथ किया गया था. 1960 में ही भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था. ये वही साल है जब धीरूभाई अंबानी ने दुबई के शेख को हिंदुस्तान की मिट्टी बेच दी थी. आइये आपको बताते हैं साल 1960 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

नेहरू की सिगरेट लेने उड़ा विशेष विमान

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सिगरेट पीने का शौक था और उनके इसी शौक से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बहुत मशहूर है. यूं तो पंडित नेहरू की सिगरेट पीते हुए कई तस्वीरें आपने देखी होंगी. लेकिन क्या आप जानते है कि नेहरू को सिगरेट की तलब इस हद तक थी कि उनके लिए विशेष विमान से सिगरेट मंगवाई जाती थी. हुआ यूं कि 1960 के दशक में जवाहर लाल नेहरू मध्यप्रदेश के दौरे पर भोपाल पहुंचे. वहां उनको राजभवन में ठहराया गया. राजभवन में नेहरू के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. तभी तैयारियों में जुटे लोगों को पता चला कि नेहरू जिस ट्रिपल फाइव (555) ब्रैंड की सिगरेट पीते हैं, वो सिगरेट तो भोपाल में मिलती ही नहीं है. अब पंडित नेहरू की मेहमाननवाजी में कोई कमी ना रह जाए, इसलिए उसी समय एक स्पेशल प्लेन को भोपाल से इंदौर भेजा गया. जहां ट्रिपल फाइव ब्रैंड के सिगरेट पहले ही खरीद लिए गए थे. जैसे ही विमान इंदौर एयरपोर्ट पर पहुंचा, तुरंत नेहरू की पसंदीदा सिगरेट उसमें रखी गई और विमान वापस भोपाल लौट आया. कहा जाता है कि नेहरू के फेवरेट ब्रैंड का सिगरेट लाने पर उस जमाने में 30 हजार रुपये खर्च हुए थे.

हिंदू रीति-रिवाज से हुआ फिरोज गांधी का अंतिम संस्कार

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी यूं तो पारसी थे. लेकिन मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार हिंदू रिति-रिवाज से किया गया. 7 सिंतबर 1960 को फिरोज गांधी को हार्ट अटैक आया, जिसके बाद वो खुद कार चलाकर हॉस्पिटल पहुंचे. डॉक्टरों ने जांच के बाद उन्हें एडमिट कर लिया. उस वक्त इंदिरा गांधी पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ त्रिवेंद्रम जा रही थीं लेकिन जैसे ही उन्हें फिरोज गांधी की तबीयत के बारे में जानकारी मिली, वो तुरंत उनके पास पहुंचीं. 8 सिंतबर की सुबह जब फिरोज गांधी ने आंखें खोलीं तो सामने इंदिरा गांधी को पाया. इंदिरा से कुछ देर बात करने के बाद फिरोज गांधी ने अंतिम सांस ली. 9 सितंबर फिरोज गांधी का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार किया गया. 16 साल के राजीव गांधी ने अपने पिता की चिता को आग लगाई. कहा जाता है कि जब फिरोज गांधी को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था, तभी उन्होंने अपने दोस्तों से कह दिया था कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से ही किया जाए क्योंकि उन्हें अंतिम संस्कार की पारसी रीति पसंद नहीं थी. पारसी रीति में शव को चीलों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है. अमेरिकी लेखक कैथरीन फ्रैंक लिखती हैं कि इंदिरा ने उस वक्त ये सुनिश्चित किया था कि फिरोज गांधी के पार्थिव शरीर को दाह संस्कार के लिए ले जाने से पहले पारसी धर्म की रस्मों का भी पालन किया जाए.

प्यासा मर जाता पाकिस्तान

1947 में देश के बंटवारे के बाद सिंधु नदी भी दो हिस्सों में बंट गई. सिंधु नदी का स्रोत भारत में था और नदी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में था. बंटवारे के बाद पाकिस्तान सरकार ये सोचकर चिंतित थी कि अगर भारत ने सिंधु नदी के पानी को पाकिस्तान में जाने से रोक दिया तो क्या होगा? क्योंकि पाकिस्तान की तरफ बहने वाली सिंधु की सहायक नदियों पर भी भारत का पूरा नियंत्रण था. उस जमाने में पाकिस्तान की बहुत बड़ी आबादी कृषि और आजीविका के लिए सिंधु नदी के पानी पर ही आश्रित थी. पाकिस्तान का ये डर खत्म हुआ 19 सितंबर, 1960 को... जब भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ. ये समझौता करवाने में विश्व बैंक की भी अहम भूमिका थी. विश्व बैंक की पहल पर ही प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने रावलपिंडी में सिंधु जल समझौते पर दस्तखत किए थे. विश्व बैंक ने ही दोनों देशों के बीच बहने वाली छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी के जल बंटवारे पर भी समझौता करवाया था, जो कि 1961 में लागू हुआ था. समझौते के मुताबिक भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.  सिंधु नदी का 20 प्रतिशत हिस्सा भारत के लिए है. समझौते के तहत भारत को पश्चिमी नदियों से 36 लाख एकड़ फीट पानी स्टोर करने का अधिकार मिला था. भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 7 लाख एकड़ क्षेत्र में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है. भारत इन नदियों पर जल विद्युत परियोजनाएं बना सकता है.

धीरूभाई अंबानी ने दुबई के शेख को बेच दी हिंदुस्तान की मिट्टी

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के फाउंडिंग चेयरमैन धीरूभाई अंबानी हमेशा अलग-अलग बिजनेस करने और उससे मुनाफा कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. बात 1960 की है जब धीरूभाई ने अरब के शेख को भारत की मिट्टी एक्सपोर्ट कर दी थी. 1960 में धीरूभाई की कंपनी विदेश में मसाले एक्सपोर्ट करती थी और वहां से पॉलिएस्टर के धागे मंगवाती थी. क्योंकि उस समय खाड़ी देशों में भारत के मसालों की खूब डिमांड थी और भारत में पॉलिएस्टर के धागे की. उसी दौरान सऊदी अरब के एक शेख को अपने गुलाब गार्डन के लिए अच्छी क्वॉलिटी वाली मिट्टी की तलाश थी. जब धीरूभाई को ये जानकारी मिली तो उन्होंने शेख को भारत की मिट्टी इस्तेमाल करने की सलाह दी. शेख ने उनकी बात मान ली, जिसके बाद धीरूभाई की कंपनी ने भारत से दुबई मिट्टी एक्सपोर्ट की थी.

राष्ट्रपति को पसंद विदिशा का घी और शहद

राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने यूं तो देश और विदेश का खूब दौरा किया. लेकिन मध्य प्रदेश में विदिशा के एक छोटे से गांव ग्यारसपुर ने उनका मन कुछ इस तरह मोहा कि वो वहां से अपने लिए गाय का देसी घी और शहद मंगवाने लगे. बात 1960 की है, जब 17 सितंबर को जीवाजीराव सिंधिया के साथ राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद छोटे से गांव ग्यारसपुर पहुंचे थे. वहां उनकी अगवानी वहां के तत्कालीन तरफदार हरिसिंह रघुवंशी ने किया था. हरिसिंह ने राष्ट्रपति को तोहफे के तौर पर सांभर का एक बच्चा दिया था. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को तब शकरकंद, सीताफल और पीठे नाश्ते में परोसे गए थे. वैसे तो इस गांव में राष्ट्रपति को 20 मिनट ही रुकना था लेकिन गांव की प्रृकतिक छटा देखकर राजेंद्र प्रसाद मंत्रमुग्ध रह गए थे. उन्होंने तब कहा था कि राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहला मौका है जब मैं किसी छोटे गांव में आया हूं. ग्यारसपुर से वापस लौटते वक्त तरफदार हरिसिंह रघुवंशी ने रांजेंद्र प्रसाद को गाय का देसी घी और शहद भी दिया, जो राजेंद्र प्रसाद को इतना पंसद आया कि वो हमेशा फिर ग्यारसपुर से ही देसी घी और शहद मंगवाने लगे.

मुलायम के धोबीपछाड़ से दरोगा बेहाल

भारतीय राजनीति में जब भी जमीन से जुड़े नेताओं का जिक्र होता है, समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का नाम जरूर आता है. मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘धरती पुत्र’ के नाम से भी जाना जाता है. 26 जून 1960 की बात है, मैनपुरी के करहल के एक इंटर कॉलेज में मेलन चल रहा था. जहां कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही, अपनी कविता सुना रहे थे. कविता का शीर्षक था ‘दिल्ली की गद्दी सावधान'. जैसे ही दामोदर विद्रोही ने कविता पाठ शुरू किया, वहां खड़े एक दारोगा ने उनको सत्ता विरोधी कविता पढ़ने से रोका. कवि विद्रोही नहीं माने तो दारोगा तेजी से मंच पर उनके पास पहुंचा और उनके हाथ से माइक छीन कर फेंक दिया. ये बात वहां मौजूद मुलायम सिंह यादव को बहुत बुरी लगी और वो भी दौड़कर मंच पर पहुंचे और आव देखा ना ताव. दारोगा को उठाकर पटक दिया. मंच पर दंगल का ये नजारा देख वहां मौजूद लोग हरकत में आए और दरोगा को मुलायम सिंह यादव के शिकंजे से छुड़ाया. उस वक्त मुलायम सिंह यादव की उम्र करीब 21 साल थी और वो अखाड़े में पहलवानी की रियाज किया करते थे. उन दिनों आसपास के गांवों में जहां भी दंगल होता, मुलायम वहां पहुंच जाते और बड़े से बड़े पहलवानों को चित कर इनाम की रकम गांव वालों में बांट दिया करते थे.

हिंदी की वजह से नहीं स्वीकारा पद्मश्री

मारुदुर गोपालन रामचन्द्रन उर्फ 'एमजीआर' भारत के एक मशहूर अभिनेता और राजनीतिज्ञ थे. 1960 में एम जी रामचंद्रन को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी. लेकिन MGR ने ये सम्मान लेने से इंकार कर दिया था. जब उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने बताया कि पद्मश्री पर देवनागरी हिंदी लिखी गई है इसलिए वो इस सम्मान को स्वीकार नहीं कर सकते हैं. कहा जाता है कि MGR तमिल भाषा के कट्टर समर्थक थे और हिंदी के बढ़ते प्रभुत्व के विरोधी थे.

16 साल में बनकर तैयार हुई मुगल-ए-आजम

1960 में एक ऐसी फिल्म रिलीज हुई, जिसके बिना हिंदी सिनेमा अधूरा माना जाता है. 'मुग़ल-ए-आज़म' में अकबर के किरदार के साथ पृथ्वीराज कपूर ने अभिनय का ऐसा शाहकार रचा जिसकी आज भी मिसाल दी जाती है. पृथ्वीराज कपूर ने दिलीप कुमार और मधुबाला से भी ज्यादा वाहवाही लूटी थी. लेकिन बहुत कम लोगों को ये मालूम होगा कि मुग़ल-ए-आज़म 16 साल में बनकर तैयार हुई थी. इस फिल्म में कलाकारों ने जितने भी कपड़े पहने थे, उन्हें दिल्ली में सिला जाता था और सूरत में उन कपड़ों पर नक्काशी की जाती थी. ज्वेलरी हैदराबाद में बनाई जाती थी और मुकुम कोल्हापुर में बनते थे. फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए हथियार राजस्थान में और जूते आगरा में बनाए जाते थे. सिर्फ इतना ही नहीं इस फिल्म में 2000 ऊंटों और 4000 घोड़ों का उपयोग किया गया था. उस जमाने में इन ऊंटों और घोड़ों पर ही 1.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. फिल्म का गाना जब प्यार किया तो डरना क्या, को 105 बार लिखने के बाद फाइनल किया गया था. इतना ही नहीं कहा जाता है कि इस गाने को शूट करने पर 10 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस गाने की एक खास बात ये भी थी कि लता मंगेशकर ने इसे स्टूडियो के बाथरूम रिकॉर्ड किया था. क्योंकि उस समय गायक की आवाज में इको इफेक्ट देने वाले सॉफ्टवेयर नहीं हुआ करते थे.

बॉम्बे.. गुजरात और महाराष्ट्र में बंट गया

1 मई 1960... वो तारीख जब देश को दो राज्य मिले थे, गुजरात और महाराष्ट्र. बॉम्बे से महाराष्ट्र और गुजरात बनने तक के सफर में वहां के लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. बात 1960 से पहले की है, जब दोनों राज्य बॉम्बे का हिस्सा हुआ करते थे. उस वक्त बॉम्बे में मराठी और गुजराती दोनों भाषाएं बोली जाती थीं. धीरे-धीरे भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग उठने लगी. 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत देश में कई राज्यों का गठन किया गया. ज्यादातर राज्यों को भाषा के आधार पर बांटा गया था, लेकिन तब भी बॉम्बे के मराठी और गुजराती भाषियों को अलग राज्य नहीं मिला. भाषा का विवाद बढ़ा तो बॉम्बे में आंदोलन शुरू हो गया. गुजराती लोगों ने उस वक्त ‘महा गुजरात आंदोलन किया तो महाराष्ट्र की मांग कर रहे मराठी लोगों ने अलग महाराष्ट्र समिति का गठन कर किया गया. समय के साथ भाषा के आधार पर बंटवारे की मांग तेज होती गई और आखिरकार 1 मई 1960 को बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम के तहत बॉम्बे, गुजरात और महाराष्ट्र में बंट गया.

STD की शुरूआत

STD यानि स्बसक्राइबर ट्रंक डायलिंग, इसका मतलब ये कि पुराने दौर में जब मोबाइल फोन्स नहीं हुआ करते थे, तब इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा हुआ करता था. या यूं कह लीजिए तब एक दूसरे से फोन पर बात करने का जरिया STD ही था. भारत में एसटीडी यानी सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग की शुरुआत 25 नवबंर 1960 में हुई थी. उस समय पहली सर्विस कानपुर से लखनऊ के बीच शुरू हुई थी. बाद में धीरे-धीरे भारत के सभी प्रमुख शहर एसटीडी के जरिए आपस में जुड़ गये थे. आपको बता दें कि एसटीडी से पहले ट्रंक कॉल सेवा हुआ करती थी. लेकिन बाद में एसटीडी सेवा आई. STD का मतलब ये है कि इसमें टेलिफोन यूजर को ​बगैर ऑपरेटर की मदद के ट्रंक कॉल करने की सुविधा मिली. इससे पहले यूजर ऑपरेटर को फोन लगाता था और फिर किसी दूसरे व्यक्ति से बात कर पाता था. ये सर्विस भारत में बहुत बड़ी क्रांति थी क्योंकि इसके जरिये देश में किसी भी जगह फोन पर बात करना एकदम सीधा और आसान तरीका हो गया था.

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