जवाहरलाल नेहरू नेवी के वॉर शिप से इंडोनेशिया क्यों गए थे? TIME MACHINE में जानिए 1950 के भारत की पूरी कहानी
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जवाहरलाल नेहरू नेवी के वॉर शिप से इंडोनेशिया क्यों गए थे? TIME MACHINE में जानिए 1950 के भारत की पूरी कहानी

Zee News Time Machine: इतिहास एक दिन में नहीं बनता, लेकिन कुछ घटनाएं इतिहास के पन्नों में एक खास तरीख के तौर पर दर्ज हो जाती हैं. हम आपको पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी देंगे.

जवाहरलाल नेहरू नेवी के वॉर शिप से इंडोनेशिया क्यों गए थे? TIME MACHINE में जानिए 1950 के भारत की पूरी कहानी

Zee News Time Machine: जो वक्त बीत चुका है उसे दोबारा जीने की तमन्ना शायद हर दिल में होती है. लोग इसीलिए इतिहास की किताबें पलटते हैं. पुरानी फिल्में देखते हैं ताकि इतिहास को नजदीक से देख सकें. ZEE News के स्पेशल TIME Machine में आपको उसी बीते इतिहास को देखने और दोबारा महसूस करने का मौका मिलेगा. क्या आप जानते हैं आजादी के बाद सुप्रीम कोर्ट कहां बैठती थी? या भारत की पहली महिला पायलट का वर्ल्ड रिकॉर्ड क्या है? या प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नेवी के वॉर शिप से इंडोनेशिया क्यों गए थे और अपने साथ किसे ले गए थे? आजादी मिले-मिले मुश्किल से तीन साल हुए थे, और गरीबी का आलम ये था कि हमारी एक टीम के पास खेलने के लिए जूते तक नहीं थे, ये वही दौर था जब देश सबसे बड़े भूकंप से दहल गया था, ये वही दौर था जब देश को नए सिक्के मिले. ये साल था 1950, देश उस वक्त तीन साल का हुआ था.

नेहरू नेवी के वॉर शिप से इंडोनेशिया क्यों गए?

इतिहास एक दिन में नहीं बनता, लेकिन कुछ घटनाएं इतिहास के पन्नों में एक खास तरीख के तौर पर दर्ज हो जाती हैं. हम आपको पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी देंगे. जो शायद आपने आज तक न कहीं देखी होंगी, न सुनी होंगी. देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को जून 1950 में इंडोनेशिया के दौरे पर जाना था. वहां उन्हे इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो से मुलाकात करनी थी. लेकिन वो किसी विमान से इंडोनेशिया नहीं पहुंचे थे. उन्हें भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े से जकार्ता ले जाया गया था. नेहरू आईएनएस दिल्ली नाम के जंगी जहाज पर सवार थे. जबकि इस क्रूजर  शिप की सुरक्षा के लिए इंडियन नेवी के तीन और डिस्ट्रॉयर्स तैनात किए गए थे. जानकारी के मुताबिक इस जहाज में उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी अपने दो बच्चों के साथ सवार थीं.

भारत के पास अपना आधिकारिक राष्ट्रगान नहीं था!

1947 में देश आजाद और 1950 में देश का संविधान लागू हुआ. मतलब भारत के बदलते दौर की शुरूआत यहीं से शुरू हुई. गणतंत्र दिवस हो या कोई भी सरकारी समारोह. राष्ट्रगान के बिना इनकी कल्पना तक नहीं की जा सकती. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के समय तक भारत के पास अपना आधिकारिक राष्ट्रगान नहीं था. जिस राष्ट्रगान को आज हम गाते हैं उसे वैसे तो 1911 में ही लिख लिया गया था लेकिन इसे आधिकारिक दर्जा मिलने में कई साल लग गए. 1911 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित 'भारतो भाग्य विधाता ' का नाम बदलकर 'जन गण मन' कर दिया गया और 24 जनवरी, 1950 को भारत की संविधान सभा द्वारा इसी गीत को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया. इस तरह जन गण मन आजादी के करीब तीन साल बाद राष्ट्रगान का दर्जा पा सका.

जूते नहीं मिले तो मैच से बाहर हुआ भारत!

फुटबॉल के पूरी दुनिया में करोड़ों प्रशंसक हैं. आज के हमारे स्टार फुटबॉलर्स बेहद महंगे खास तरह के जूते पहनते हैं. इन जूतों को स्पाइक्स कहा जाता है. बिना इन जूतों के फुटबॉल की कल्पना तक नहीं की जा सकती. लेकिन हम आपको भारतीय फुटबॉल टीम से जुड़ी एक खास बात बताएंगे. आजादी मिलने के 1 साल बाद यानी 1948 में भारतीय फुटबॉल टीम ने अपना पहला इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेला. भारतीय टीम इस मैच में नंगे पांव खेली. लेकिन उनका प्रदर्शन इतना शानदार था, कि उसने सबका दिल जीत लिया. दरअसल 1950  में फीफा विश्व कप होना था. विश्व कप के लिए एशिया से एक ही टीम को चुना जाना था. लेकिन फिलिपींस,  इंडोनेशिया और बर्मा ने अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह भारत को बड़े टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिल गया. हालांकि इस टूर्नामेंट की एक शर्त थी. फीफा ने साफ कर दिया था कि अगर भारत को इस टूर्नामेंट में खेलना है तो उसे जूतों के साथ खेलना होगा. लेकिन कहा  जाता है कि तब भारतीय टीम के खिलाड़ियों के पास इतने महंगे जूते ही नहीं थे और मजबूरी में टीम को अपना नाम वापस लेना पड़ा. हालांकि ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने ये दलील दी थी कि भारतीय खिलाड़ी नंगे पैर खेलने के ही आदी थे. ऐसे में जूते पहन कर खेलने के लिए उन्हें काफी अभ्यास करना पड़ता, जिसका वक्त नहीं था. बात जो भी हो, लेकिन सच्चाई ये है कि सिर्फ जूतों की वजह से भारत के फीफा विश्व कप में खेलने के सपने पर पानी फिर गया.

भारत की महिला पायलट बनीं ऊषा सुंदरम

आजादी के बाद भारत तेजी से तरक्की की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा था. आधी आबादी भी विकास की इस कहानी में कंधे से कंधा मिलाकर चलने की कोशिश कर रही थी और इसी दौर में आसमान की ऊंचाइयां छूने वाली पहली भारत की महिला पायलट बनीं ऊषा सुंदरम. 1950 में उषा सुंदरम और उनके पति वी सुंदरम मद्रास सरकार के कहने पर इंग्लैंड गए और वहां एक हल्का विमान खरीदा. इसके अगले दिन, दोनों ने एक इंजन वाले इस विमान से 27 घंटे की उड़ान भरी और लंदन से पेरिस, कराची और फिर बगदाद के रास्ते तब के बॉम्बे यानी आज के मुम्बई पहुंचे. इस लम्बे सफर में वी सुंदरम की को पायलट थीं. उनकी पत्नी उषा सुंदरम. उस वक्त उषा सुंदरम की उम्र महज 22 साल थी. वैसे कुछ इसी तरह 1950 में, महज 27 साल की उम्र में अन्ना राजम मल्होत्रा ​​सिविल सेवा परीक्षा को पास कर स्वतंत्र भारत की पहली महिला IAS ऑफिसर बनीं. हालांकि उनकी परीक्षा के दौरान उन्हें ifs अधिकारी के तौर पर विदेश सेवा में काम करने का ऑफर दिया गया. लेकिन उन्होंने IAS अफसर बनने का ही फैसला लिया.

उत्तर प्रदेश का कोई अस्तित्व नहीं था

ये तो आप जानते ही है कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. क्या आप ये जानते हैं कि आजादी से पहले उत्तर प्रदेश का कोई अस्तित्व नहीं था. 24 जनवरी 1950... ये वो तारीख है जब उत्तर प्रदेश अस्तित्व में आया. 1950 से पहले उत्तर प्रदेश युनाइटेड प्रॉविंसेज के नाम से जाना जाता था. उस वक्त भारत के गवर्नर जनरल ने यूनाइटेड प्राविंसेज के लिए एक अध्यादेश पारित किया. इस ऑर्डर 50 के तहत यूनाइटेड प्राविंसेज को उत्तर प्रदेश का नाम दिया गया. संविधान लागू होने से दो दिन पहले यानी 24 जनवरी 1950 को उत्तरप्रदेश मौजूदा रूप में हमारे सामने आया.

आजाद भारत का सबसे खतरनाक भूकंप

देश आजाद हुए तीन साल बीते ही थे कि जश्न-ए-आजादी के दिन देश में एक ऐसी तबाही आई. जिसने सबको हिलाकर रख दिया. दरअसल 15 अगस्त 1950 में उत्तर-पूर्वी राज्य असम और तिब्बत में बेहद ही भयानक भूकंप आया. इस भूचाल के बारे में कहा जाता है कि जलजला इतना तेज था कि सेस्मोग्राफ की सुईयां तक  टूट गईं. उस वक्त  रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 8.6 आंकी गई थी और इसे आजाद भारत का सबसे ताकतवर और खतरनाक भूकंप बताया गया. इस भूकंप में तिब्बत सीमा के साथ मौजूद करीब 70 गांव गायब ही हो गए. लेकिन सबसे ज्यादा तबाही असम में हुई. वहां लैंडस्लाइड की वजह से भारी नुकसान हुआ. भूकंप के बाद भीषण बाढ़ आई और आठ दिन बाद सुबनसिरी नदी पर बना बांध टूट गया. बांध से निकले पानी ने आसपास के गांवों में घुसकर सबकुछ तबाह कर दिया. इस भूकंप की ताकत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इसने ब्रह्मपुत्र नदी की धारा तक को बदल दिया था.

आजाद भारत का पहला सिक्का

यूं  तो भारत में सिक्कों का इतिहास काफी पुराना रहा है. हमारे पास हजारों साल पुरानी सभ्यताओं के सिक्के भी मिलते हैं. हालांकि भारत में साल 1757 यानी आज से करीब सवा दो सौ साल पहले 19 अगस्त को ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहला सिक्का चलाया था. ये सिक्का कोलकाता की एक टकसाल में ढाला गया था. लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो देश को अपनी मुद्रा की जरूरत महसूस हुई. तब 1950 में भारत में पहली बार आना सीरीज को लॉन्च किया. आना सीरीज यानी एक आना दो आना की शुरूआत 15 अगस्त 1950 को शुरू की गई थी और यह गणतंत्र भारत में भारतीय सिक्कों के चलन का पहला चरण था. इन सिक्कों पर अशोक की लाट का चिह्न बना था और इनके आम लोगों तक पहुंचते-पहुंचते एक लंबा अरसा लग गया. तब  के जमाने में 1 रुपया में 16 आना या 64 पैसे शामिल होते थे. 1 आना मतलब 4 पैसा होता था. इसमें 1 आना, 2 आना, 1/2 आना के सिक्के चलते थे. आना सीरीज के आने के बाद शेर के निशान को अशोक स्तंभ के साथ रिप्लेस कर दिया गया. इसके अलावा 1 रुपए के सिक्के पर चीते के निशान को अनाज के  गठ्टर से बदला गया. कुछ मायनों में यह प्रगति और समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने का प्रतीक माना गया.

भारत में इंसाफ की सबसे ऊंची दहलीज

क्या आप सुप्रीम कोर्ट के जन्म की कहानी जानते हैं...? वैसे तो भारत में अदालतों का मौजूदा रूप अंग्रेजी हुकूमत के दौर का ही है. लेकिन जब भारत का संविधान बनाया गया तो उसमें न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका के साथ तीसरे हिस्से के तौर पर जगह दी गई. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के दो दिन बाद 28 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया. शुरू में इसका कामकाज संसद भवन के अंदर बने 'चेंबर ऑफ प्रिंसेस में होता था' बाद में तिलक मार्ग में सुप्रीम कोर्ट की नई इमारत बन कर तैयार हो गई. जिसके बाद इसे संसद भवन परिसर से मौजूदा इमारत में शिफ्ट कर दिया गया.

भारत में मुक्केबाजी की औपचारिक शुरुआत कब हुई?

आजादी के वक्त से ही भारतीय खिलाड़ी देश और दुनिया में भारत का नाम कर रहे थे. हॉकी जैसे खेल में तो भारत का दबदबा था ही लेकिन मुक्केबाजी यानी बॉक्सिंग चैंपियनशिप की शुरूआत भारत में 1950 में हुई. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में मुक्केबाजी की औपचारिक शुरुआत कब हुई. साल 1925 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन का गठन किया गया था. ये एक तरह से शौकिया बॉक्सिंग करने वालों का फेडरेशन था. बॉम्बे शहर का नाम अब मुंबई हो गया है लेकिन तब का बॉम्बे भारत में औपचारिक रूप से मुक्केबाजी टूर्नामेंट आयोजित करने वाला भारत का पहला शहर था. इसके बाद धीरे-धीरे भारत में बॉक्सिंग को पसंद किया जाने लगा. आजादी मिलने के बाद 1949 में इंडियन एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन का गठन किया गया. फिर भारत में पहली बार नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप 1950 में मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में आयोजित की गई.

1950 में संविधान लागू हुआ

जब भी भारत की आज़ादी की बात होती है, तो सभी की जुबान पर एक ही तारीख आती है, 15 अगस्त 1947. आजादी मिली तो भारत के विकास का बिगुल भी बज गया. आजादी के बाद 1950 में संविधान लागू हुआ. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संविधान लागू होने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन का वक्त लगा था. दरअसल 26 जनवरी 1950 को अंग्रेजों द्वारा बनाए गए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की जगह भारत का संविधान लागू हुआ था. भारत का संविधान वैसे तो 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था और इसे संविधान सभा की मंजूरी भी मिल गई थी. लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था. भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा का निर्माण हुआ था. इसके अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद चुने गए थे. संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 दिन सोमवार को हुई थी. भारतीय संविधान पर 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे. इनमें 15 महिलाएं थीं. भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमरीकी संविधान से प्रेरित है.

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