मॉनसून सत्र में प्रश्नकाल को लेकर इतना हंगामा क्यों? आखिर विपक्ष को क्या है परेशानी
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मॉनसून सत्र में प्रश्नकाल को लेकर इतना हंगामा क्यों? आखिर विपक्ष को क्या है परेशानी

माना जा रहा है कि 14 सितंबर से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र के हंगामेदार होने की पूरी संभावना है. विपक्ष के पास इस बार कई ऐसे मुद्दे हैं जिसपर वो सरकार को घेरने की कोशिश करेगी. जिसमें चीन, कोरोना, मजदूरों का पलायन और जीडीपी में गिरावट महत्वपूर्ण हैं. 

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: संसद के आगामी मॉनसून सत्र (Monsoon Session) में प्रश्नकाल को लेकर अच्छा खासा विवाद खड़ा हो गया है. सरकार का कहना है कि कोरोना (Corona) काल में सांसदों और संसद के कर्मचारियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ये फैसला लिया गया है. जिसमें सरकार मौखिक की जगह लिखित प्रश्नों का जवाब देगी. इसके अलावा आधे घंटे का शून्यकाल भी है, जहां सांसद अपने-अपने सवालों को जीरो आवर नियम के तहत रख सकते हैं.

बहरहाल अगर प्रश्नकाल के इतिहास को देखें, खासकर मोदी सरकार में तो इसका जवाब मिल जाएगा कि विपक्ष इसको लेकर कितना गंभीर रहा है.

क्या कहता है इतिहास? 
2015 से 2019 के बीच राज्यसभा में प्रश्नकाल का मात्र 40 फीसदी समय ही उपयोग हो पाया. यानी मात्र 40 फीसदी समय में सवाल और मंत्रियों का मौखिक जवाब हो पाया. बाकी का 60 फीसदी समय हंगामे के कारण बर्बाद हुआ है.

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2015 से 2019 के बीच 5 वर्षों में राज्यसभा की 332 सिटिंग हुई. इसके हिसाब से प्रश्नकाल का 332 घंटे हुआ. इसमें से मात्र 133 घंटा 17 मिनट प्रश्नकाल का सदुपयोग हुआ. जो कुल का 40 फीसदी होता है. अगर इसको और करीब से देखें तो साल दर साल इसका हिसाब ये है..

2015-18 घंटे 7 मिनट
2016- 34 घंटे 48 मिनट
2017- 35 घंटे 13 मिनट
2018- 14 घंटे 29 मिनट
2019- 30 घंटे 40 मिनट

अब सवाल ये है कि जब प्रश्नकाल का पूरा सदुपयोग नहीं हो पा रहा है तो मॉनसून सत्र में इसको लेकर विपक्ष इतना परेशान क्यों है. ऐसा नहीं है कि संसदीय इतिहास में पहली बार प्रश्नकाल नहीं हो रहा है. इसके पहले भी संसद सत्र में विभिन्न कारणों से प्रश्नकाल नहीं हुए. 1962, 1975, 1976, 1991, 2004 और 2009 में भी ऐसा हो चुका है.

राज्यों के विधानसभा सत्र में नहीं हुए प्रश्नकाल
यहां तक कि कोरोना काल में भी कई राज्यों की असेंबली का सत्र हुआ है और उनमें से कई विधानसभाओं के सत्र में प्रश्नकाल नहीं हुए. केरल विधानसभा सत्र में प्रश्नकाल नहीं हुआ. केरल में वामपंथ की सरकार है.  राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है. वहां 4 दिन का सत्र हुआ. 13 बिल पास कराए गए, लेकिन प्रश्नकाल नहीं हुआ. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश भी इसके उदाहरण हैं.

4-4 घंटे के लिए बुलाए गए दोनों सदन 
सरकार का मानना है कि कोरोना काल के असाधारण परिस्थिति में ये मॉनसून सत्र हो रहा है. इसके लिए दोनों सदनों को अलग-अलग टाइम टेबल के अनुसार 4-4 घंटे के लिए बुलाया जा रहा है. 18 दिन के इस सत्र में अगर 1-1 घंटा प्रश्नकाल और शून्यकाल के लिए रख दिया जाए तो बाकी के 2 घंटे में और महत्वपूर्ण काम कैसे सम्पन्न होंगे? इसमेx लगभग 11 अध्यादेश और अन्य बिल को पारित कराना है. 

हालांकि शॉर्ट ड्यूरेशन और कॉलिंग अटेंशन के लिए समय रखा गया है. जिसमें विपक्ष बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के जरिए किसी विषय पर बहस करा सकता है. इसके अलावा सरकार 160 Unstarred सवालों का भी जवाब देगी. 1 अक्टूबर तक के इस सत्र में शनिवार और रविवार को भी सदन की कार्रवाई होगी.

हंगामेदार हो सकता है मॉनसून सत्र 
माना जा रहा है कि 14 सितंबर से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र के हंगामेदार होने की पूरी संभावना है. विपक्ष के पास इस बार कई ऐसे मुद्दे हैं जिसपर वो सरकार को घेरने की कोशिश करेगी. जिसमें चीन, कोरोना, मजदूरों का पलायन और जीडीपी में गिरावट महत्वपूर्ण हैं. वैसे हर सत्र की शुरुआत की तरह इस सत्र की शुरुआत में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए सरकार के तैयार रहने का आश्वासन विपक्ष को दे सकते हैं. 

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