Supreme Court: आजादी के 70 सालों बाद भी आरक्षण की ज़रूरत क्यों? संविधान पीठ के दो जजों ने उठाए सवाल
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Supreme Court: आजादी के 70 सालों बाद भी आरक्षण की ज़रूरत क्यों? संविधान पीठ के दो जजों ने उठाए सवाल

Reservation Debate: संविधान पीठ के 2 सदस्यों ने पिछड़ेपन को तय करने के तौर तरीकों को मौजूदा वक़्त की ज़रूरत के मुताबिक समीक्षा की ज़रूरत बताई है.

Supreme Court: आजादी के 70 सालों बाद भी आरक्षण की ज़रूरत क्यों? संविधान पीठ के दो जजों ने उठाए सवाल

EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से EWS आरक्षण को सही ठहराया है. हालांकि संविधान पीठ के 2 सदस्यों- जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जे पी पारदीवाला ने आजादी के 70 सालों बाद भी आरक्षण की ज़रूरत रहने पर सवाल खड़े किए हैं. दोनों जजों ने पिछड़ेपन को तय करने के तौर तरीकों को मौजूदा वक़्त की ज़रूरत के मुताबिक समीक्षा की ज़रूरत बताई है.

'अंबडेकर सिर्फ 10 साल तक आरक्षण चाहते थे'
जस्टिस पारदीवाला ने फैसले में लिखा कि बाबा साहेब अंबेडकर का मकसद सिर्फ दस साल तक आरक्षण को लागू कर सामाजिक सौहार्द लाना था. हालांकि पिछले सत्तर सालों से आरक्षण अभी भी जारी है. आरक्षण को अनिश्चित वक़्त तक नहीं जारी रहना चाहिए ताकि ये निहित स्वार्थो की पूर्ति का जरिया न बन सके.

'पिछड़ेपन की असल वजहों को खत्म किया जाए'
जस्टिस जे बी पारदीवाला ने अपने फैसले में कहा कि आरक्षण को निहित स्वार्थों की पूर्ति का जरिया नहीं बनना चाहिए. समस्या का असल समाधान उन वजहों को खत्म करने में है जो सामाजिक आर्थिक या फिर शैक्षणिक तौर पर पिछड़ेपन की जन्म देती हैं. आजादी के बाद पिछले 70 सालों से पिछड़ेपन को खत्म करने की कवायद जारी है.

'ज़रूरतमंद लोगों को ही मिले आरक्षण का लाभ'
जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि पिछड़े तबके के वो लोग शिक्षा और रोजगार का एक जरूरी ओहदा हासिल कर चुके हैं उन्हें आरक्षण के लाभ से हटा देना चाहिए ताकि उनको आरक्षण का फायदा मिल सके, जिन्हें वाकई इसकी ज़रूरत है. इसलिए ज़रूरी है कि पिछड़ेपन को निर्धारित करने के तौर तरीकों की समीक्षा हो. ऐसा तरीका हो जो मौजूदा वक़्त की ज़रूरतो के मुताबिक हो.

आरक्षण व्यवस्था की फिर से समीक्षा की ज़रूरत
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के निर्माताओं का भी मानना था कि आरक्षण की समय सीमा होनी चाहिए पर आजादी के सत्तर साल बाद भी ये जारी है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सदियों पुरानी रही जाति व्यवस्था हमारे यहां आरक्षण की व्यवस्था की वजह बनी. आरक्षण इसलिए लाया गया था ताकि SC /ST और ओबीसी समुदाय के लोगों के साथ हुई ऐतिहासिक नाइंसाफ़ी को दुरुस्त किया जा सके ,उन्हें अगड़ी जातियों के साथ आगे लाया जा सके लेकिन अब आजादी के सत्तर सालों बाद हमे आरक्षण व्यवस्था की समाज के व्यापक हितों को देखते हुए फिर से समीक्षा की ज़रूरत है.

आर्थिक असमानता दूर करना भी सरकार की जिम्मेदारी
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा कि संविधान की प्रस्तावना में आर्थिक असमानताओं को दूर करने और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने की बात कहीं गई है. वंचित तबके का आर्थिक सशक्तिकरण सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए बहुत ज़रूरी है. इस लिहाज से EWS  आरक्षण सरकार की सार्थक कोशिश ही माना जाएगा. संविधान की प्रस्तावना, नीति निर्देशक तत्त्व सरकार को ये अधिकार देते हैं और ये सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि समाज से पिछड़ेपन और असमानता को दूर करने के लिए वो उपाय करें.

जस्टिस ललित और जस्टिस भट्ट ने EWS आरक्षण को भेदभावपूर्ण माना
चीफ यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने EWS आरक्षण से SC/ST/OBC को बाहर रखने पर आपत्ति जाहिर की. उन्होंने साझा फैसले में लिखा है कि इन समुदाय को बाहर रखने के सवालपर 103 वें संसोधन की वैधता पर बहुमत की राय के साथ सहमत होने में हमारी असमर्थता के लिए खेद है. इस अदालत ने पहली बार 70 सालों में एक स्पष्ट रूप से बहिष्करण(exclusionary)और भेदभावपूर्ण सिद्धांत को मंजूरी दी है. संविधान बहिष्कार की भाषा नहीं बोलता. SC /ST/OBC को EWS आरक्षण से बाहर रहना सामाजिक न्याय, संविधान के बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है.

अहम बात ये भी है कि चीफ जस्टिस ललित और जस्टिस भट्ट ने EWS आरक्षण को इस आधार पर खारिज नहीं किया कि इस आरक्षण का आधार सिर्फ आर्थिक है. उन्होंने फैसले में कहा कि आरक्षण की इस कसौटी (आर्थिक आधार पर) की इजाजत है, पर आर्थिक आरक्षण के दायरे से SC/ST/OBC को बाहर रखना भेदभावपूर्ण है, ये संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है.

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