ZEE जानकारी: सारागढ़ी का युद्ध- 21 सिख सिपाहियों ने किया 10 हजार आक्रमणकारियों का सामना
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ZEE जानकारी: सारागढ़ी का युद्ध- 21 सिख सिपाहियों ने किया 10 हजार आक्रमणकारियों का सामना

 वर्ष 1897 में, तब सारागढ़ी नाम की जगह पर सिर्फ 21 सिख सिपाहियों ने 10 हज़ार पश्तून आक्रमणकारियों को धूल चटा दी थी . 

ZEE जानकारी: सारागढ़ी का युद्ध- 21 सिख सिपाहियों ने किया 10 हजार आक्रमणकारियों का सामना

अब हम आज से 122 वर्ष पहले लड़ी गई इतिहास की सबसे वीरतापूर्ण जंग का विश्लेषण करेंगे . सिख धर्म के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े थे . उन्होंने कहा था एक एक सिख सवा लाख के बराबर होता है. वर्ष 1704 में पंजाब के चमकौर में एक जंग हुई थी . जिसमें 40 सिखों ने 10 लाख मुगल सिपाहियों का बहादुरी से मुकाबला किया था . खुद गुरु गोबिंद सिंह इनका नेतृत्व कर रहे थे .

कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है और अगर इतिहास योद्धाओं द्वारा लिखा जाए तो फिर वो खुद को ज़रूर दोहराता है . ऐसा ही कुछ हुआ चमकौर युद्ध के 193 साल बाद.. यानी वर्ष 1897 में, तब सारागढ़ी नाम की जगह पर सिर्फ 21 सिख सिपाहियों ने 10 हज़ार पश्तून आक्रमणकारियों को धूल चटा दी थी . यानी भारत का एक-एक वीर योद्धा 500 दुश्मनों पर भारी पड़ा था . वीरता और साहस भारत के सैनिकों के DNA में है . इसलिए आज हम इस ऐतिहासिक शौर्यगाथा का गौरवपूर्ण विश्लेषण कर रहे हैं .

सारागढ़ी.. पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत में है. 15 अगस्त 1947 से पहले ये भारत का ही हिस्सा हुआ करता था . वर्ष 1897 में इस इलाके पर कब्ज़ा करने ब्रिटिश सरकार ने सिख रेजीमेंट की 5 कंपनियां भेजी गई थी . लेकिन अफगान लड़ाके लगातार ब्रिटिश सेनाओं को चुनौती दे रहे थे . हमलों से बचने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने यहां 2 क़िलों का निर्माण किया था . 

इनमें से एक क़िला Fort Lockhart था, जबकि दूसरे क़िले का नाम Fort गुलिस्तां था . इन दोनों क़िलों के ठीक बीच में सारागढ़ी था, जहां ब्रिटिश सेना द्वारा Heliographic Communication Post बनाई गई थी . Heliograph तकनीक का इस्तेमाल युद्ध के दौरान किया जाता था . इस तकनीक के जरिए शीशे पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी को दूसरी पोस्ट तक पहुंचाया जाता था . सूर्य की रोशनी के बदलते पैटर्न में संदेश छिपे होते थे . जिन्हें Morse Code तकनीक की मदद से Decode किया जाता था . सारागढ़ी पोस्ट पर Heliograph की जिम्मेदारी गुरमुख सिंह नामक सिपाही की थी . उन्होंने इसी की मदद से जंग का पूरा ब्योरा फोर्ट Lockhart तक पहुंचाया था .

इस जंग की शुरुआत 12 सितंबर 1897 को हुई थी . तब सिपाही गुरमुख सिंह ने Fort Lockhart में मौजूद कर्नल Haughton को एक संदेश भेजा था . इस संदेश में कहा गया था कि 10 हज़ार अफगान आक्रमणकारियों ने सारागढ़ी पर हमला बोल दिया है.

लेकिन ब्रिटिश सेना उस कर्नल ने फौरन मदद भेजने से इनकार कर दिया . इसके बाद सारागढ़ी Post पर मौजूद 21 सिपाहियों ने आखिरी सांस तक लड़ने का फैसला किया . इन वीर सिपाहियों का नेतृत्व हवलदार ईशर सिंह कर रहे थे . इसी बीच Fort-Lockhart से Heliograph की मदद से संदेश आया कि दुश्मनों की संख्या 14 हज़ार भी हो सकती है .

लेकिन ये 21 महायोद्धा घबराए नहीं.. बल्कि इन्होंने आखिरी सांस तक लड़ने फैसला किया . इस दौरान पश्तून फौजों के नेता.. इन सिपाहियों को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों को ये बिल्कुल मंजूर नहीं था .

लेकिन क्या सिर्फ 21 सिपाही 10 हज़ार दुश्मनों को हरा सकते थे ? क्या सारागढ़ी Post ध्वस्त होने से बच सकती थी ? इस युद्ध में ईशर सिंह और उनके सिपाहियों का क्या हुआ ? इन सवालों का जवाब आपको हमारे वीडियो विश्लेषण में मिलेगा . ये कहानी आपमें देशभक्ति की भावना भर देगी . इसलिए अपने Cell Phones को Silent Mode पर डालकर और सारे काम निपटाकर, पूरे परिवार के साथ वीरगाथा वाले इस विश्लेषण को देखिए .

सारागढ़ी की इस जंग ने युद्ध की सारी किताबी परिभाषाओं को पार कर लिया था . सारागढ़ी के मैदान में सिर्फ युद्ध नहीं लड़ा जा रहा था, बल्कि एक इतिहास लिखा जा रहा था . इन 21 योद्धाओं ने 10 घंटे तक चली इस जंग में करीब 600 अफगान दुश्मनों को मार गिराया . इस दौरान सिपाही गुरमुख सिंह Heliograph से कर्नल Haughton को युद्ध का ब्योरा भेजते रहे . आखिर में उन्होंने खुद भी हथियार उठाने की इजाजत मांगी और इसके बाद 20 दुश्मनों को मार गिराया .

गुरमुख सिंह दुश्मनों का काल बन गए थे . उन्हें हराने के लिए अफगान सैनिकों ने पोस्ट में आग लगा दी . कहा जाता है कि वो अंत तक 'जो बोले सो निहाल' की यलगार करते रहे .

लेकिन क्या ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने इन सिपाहियों की कोई मदद की ? क्या कर्नल Haughton.. फोर्ट गुलिस्तां और Fort Lockhart को बचा पाए ? इन सवालों का जवाब सारागढ़ी पर हमारे इस दूसरे वीडियो विश्लेषण में छिपा है .

सारागढ़ी की जंग पर आधारित फिल्म केसरी इसी साल 21 मार्च को रिलीज़ हुई थी . केसरी में हवलदार ईशर सिंह का किरदार अक्षय कुमार ने निभाया था . इस फिल्म की शूटिंग स्पिती वैली के अलावा मुंबई में भी की गई थी . पहले ही हफ्ते में ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी . इस फिल्म ने दुनिया भर में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की थी . लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस फिल्म के रिलीज़ होने से पहले तक भारत में बहुत कम लोगों को सारागढ़ी के युद्ध की जानकारी थी . जबकि ब्रिटेन में वहां की सेना हर साल इन 21 सिपाहियों को याद करती है . 

भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट भी हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस मनाती है . लेकिन हमारे देश में इस एतिहासिक युद्ध की जानकारी आम लोगों को नहीं है. हमारे देश का मीडिया भी सारागढ़ी के बारे में लोगों नहीं बताता . केसरी के Release होने से पहले मैंने अक्षय कुमार का एक इंटरव्यू किया था . इस इंटरव्यू के दौरान अक्षय कुमार ने भी माना कि जब वो इस फिल्म के लिए रिसर्च कर रहे थे तो उन्हें सबसे ज्यादा जानकारी विदेशी मीडिया से ही मिली . आप अक्षय कुमार और मेरी उस बातचीत का एक अंश सुनिए...फिर हम आपके इस युद्ध से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण जानकारी देंगे . जिसके बारे में आपने शायद नहीं सुना होगा .

अब आपको Battle OF Saragarhi से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी देते हैं . युद्ध के विशेषज्ञ इसे दुनिया में अब तक लड़ी गई सबसे महान जंग की संज्ञा भी देते हैं . अदम्य साहस और परम बलिदान पर आधारित फिल्म केसरी..आप Zee Cinema पर 15 अगस्त को दोपहर 12 बजे देख सकते हैं . 

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