Zee जानकारी : 'अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब हुए और गरीब'
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Zee जानकारी : 'अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब हुए और गरीब'

पूरे उत्तर भारत में इन दिनों शीत लहर चल रही है। देश के बहुत सारे लोगों को इस ठंड से काफी परेशानी हो रही होगी। हम चाहते हैं कि आप अपना और अपने परिवार की सेहत का ख्याल रखें। लेकिन मैं यहां ये भी कहना चाहता हूं अगर आप इस ठंड में आराम से अपना समय बिता रहे हैं और रजाई ओढ़कर टीवी देख रहे हैं तो आप दुनिया के सबसे खुशनसीब लोगों में से एक हैं। क्योंकि दुनिया में करीब 360 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी बहुत मुश्किल काम है, और इनमें से बहुत कम लोगों के सिर पर छत है। ये दुनिया की एक ऐसी कड़वी सच्चाई है। जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। शुद्ध हिंदी में इस समस्या को गरीबी कहते हैं और इसलिए आज हम गरीबी से जुड़ी एक बड़ी खबर और एक बड़े नज़रिए का विश्लेषण करेंगे। समस्या ये है कि अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं।

Zee जानकारी : 'अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब हुए और गरीब'

नई दिल्ली : पूरे उत्तर भारत में इन दिनों शीत लहर चल रही है। देश के बहुत सारे लोगों को इस ठंड से काफी परेशानी हो रही होगी। हम चाहते हैं कि आप अपना और अपने परिवार की सेहत का ख्याल रखें। लेकिन मैं यहां ये भी कहना चाहता हूं अगर आप इस ठंड में आराम से अपना समय बिता रहे हैं और रजाई ओढ़कर टीवी देख रहे हैं तो आप दुनिया के सबसे खुशनसीब लोगों में से एक हैं। क्योंकि दुनिया में करीब 360 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी बहुत मुश्किल काम है, और इनमें से बहुत कम लोगों के सिर पर छत है। ये दुनिया की एक ऐसी कड़वी सच्चाई है। जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। शुद्ध हिंदी में इस समस्या को गरीबी कहते हैं और इसलिए आज हम गरीबी से जुड़ी एक बड़ी खबर और एक बड़े नज़रिए का विश्लेषण करेंगे। समस्या ये है कि अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं।

आपको ये जानकर झटका लगेगा कि दुनिया के सिर्फ 8 अमीर लोगों के पास जितना पैसा है उतना पैसा दुनिया के 360 करोड़ गरीब लोगों के पास भी नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी संस्था ऑक्सफैम के मुताबिक पिछले वर्ष दुनिया के 62 अमीर लोगों के पास 360 करोड़ गरीबों से ज्यादा दौलत थी। जबकि इस वर्ष दुनिया के सिर्फ 8 लोगों के पास दुनिया की आधी आबादी से ज्यादा दौलत है। 

-ऑक्सफैम के मुताबिक माइक्रोसाफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं जिनके पास कुल 5 लाख 10 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति है।
-दूसरे नंबर पर ज़ारा नामक फैशन कंपनी के मालिक Amancio Ortega Gaona हैं। Amancio के पास 4 लाख 55 हज़ार करोड़ रुपये की दौलत है।
-4 लाख 14 हज़ार करोड़ रुपये की दौलत के साथ तीसरे नंबर पर बिजनेस मैन वारेन बफेट हैं।
-चौथे नंबर पर मैक्सिको की टेलीकॉम कंपनी के मालिक कार्लोस स्लिम हैं जिनके पास 3 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये हैं। 
-पांचवे नंबर पर आमेजन के मालिक जेफ बेजॉस जिनकी कुल दौलत 3 लाख करोड़ रुपये है। 
-3 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग छठे नंबर पर हैं। 
-सातवें नंबर पर सॉफ्टवेयर कंपनी ओरैकल के संस्थापक लॉरेंस जे. एलीसन है जिनके पास 2 लाख 99 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति है।
-और आठवें नंबर पर हैं एक मीडिया कंपनी के मालिक माइकेल आर. ब्लूमबर्ग इनके पास 2 लाख 72 हज़ार करोड़ रुपये की दौलत है। 

दुनिया के सबसे अमीर 8 लोगों के पास कुल मिलाकर 31 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। जबकि अति गरीब माने जाने वाले 360 करोड़ लोगों के पास कुल 28 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। अगर इन 8 अमीर लोगों की दौलत को इन्हीं के बीच बांट दिया जाएं तो हर अमीर व्यक्ति को 3 लाख 47 हज़ार करोड़ रुपये मिलेंगे। जबकि अगर गरीबों की कुल संपत्ति को गरीबों के बीच बांट दिया जाए तो हर गरीब के हिस्से में सिर्फ 111 डॉलर्स यानी 7 हज़ार 745 रुपये आएंगे। इससे आप समझ सकते हैं कि अमीर और गरीब लोगों के बीच कितनी गहरी खाई है।

अमीरों और गरीबों के बीच ये खाई भारत में भी बहुत गहरी हैं। ऑक्सफैम की इसी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 360 करोड़ अति गरीब लोगों में से करीब 25 प्रतिशत भारतीय उपमहाद्वीप में ही रहते हैं। ये एक शर्मनाक स्थिति है कि भारत के सिर्फ 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 58 प्रतिशत दौलत है। जबकि बाकी के 99 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 42 प्रतिशत दौलत है।

ऐसा तब है जब भारत में हर राजनीतिक पार्टी का सबसे बड़ा वादा गरीबी उन्मूलन का होता है। हर पार्टी इसी वादे के साथ सत्ता में आती है कि वो गरीबी को खत्म कर देगी लेकिन सच्चाई ये है कि भारत के करीब 20 करोड़ लोग आज भी हर रात भूखे सोते हैं। जबकि 18 लाख लोगों के सिर पर किसी तरह की कोई छत नहीं है। भारत के सभी राजनेताओं को गरीबों में अपना वोट बैंक नज़र आता है और शायद इसीलिए कोई भी पार्टी दिल से नहीं चाहती कि देश से गरीबी खत्म हो जाए। क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो फिर वो राजनीति किसके नाम पर करेंगे। ये भारतीय राजनीति की अति गरीब सोच है। जिसे बदले बगैर भारत की तकदीर नहीं बदली जा सकती। 

5 राज्यों में होने वाले चुनावों की डेटशीट जारी हो चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी करनी शुरू कर दी है। बहुत जल्द आपको अलग-अलग चैनल्स पर नेताओं के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू भी देखने को मिल जाएंगे। इन इंटरव्यूज में ये नेता गरीबी हटाने के बड़े-बड़े वादे करेंगे। मीडिया के कैमरों के साथ गरीबों के घर जाएंगे, उनसे बातें करेंगे, उन्हें आश्वासन देंगे। ये तमाम चीज़ें मीडिया स्टंट होती हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद ये सभी नेता इन गरीबों को भूल जाते हैं और यही वजह है कि भारत में गरीबी खत्म नहीं हुई है। 

सभी नेताओं को अपने भविष्य की चिंता है इसलिए इन दिनों नेता गरीबों के घरों के बाहर चक्कर काट रहे हैं। 5 वर्षों में ये एक मात्र ऐसा मौका होता है जब नेता गरीबों से मांगते हैं और गरीब नेताओं को कुछ देने का वादा करते हैं। इसके बाद पूरे 5 वर्षों तक गरीब कतार में खड़े रहते हैं, वादों के पूरा होने का इंतज़ार करते हैं लेकिन ज्यादातर गरीब लोगों की उम्मीदों वाली झोली खाली ही रहता है। आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारत के नेताओं की दिलचस्पी गरीबी उन्मूलन में होती ही नहीं है। गरीबी नेताओं के लिए राजनीतिक गहना बन चुकी है जिसे नेता हमेशा पहनकर रखना चाहते हैं। चुनाव का मौसम आते ही देश के डिजाइनर नेताओं में गरीब दिखने की होड़ मच जाती है। नेता चाहते हैं कि मीडिया के कैमरे उनके गरीबी भरे अंदाज़ को रिकॉर्ड कर लें ताकि वो ये साबित कर सकें कि वो गरीबों का दर्द जानते और समझते हैं। लेकिन असल में नेता गरीबों के नाम पर सिर्फ अपनी चुनावी दुकान चलाते हैं क्योंकि ये गरीब उनका सबसे बड़ा वोट बैंक हैं।

भारत की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों के आदर्श ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की भलाई के लिए लगा दिया। लेकिन ऐसे महापुरुषों के आदर्शों पर चलने वाली पार्टियां अब गरीबों की भलाई के लिए कुछ नहीं कर पा रही हैं और इनके नेताओं का रहन सहन देखकर आपको बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगेगा कि इन्हें गरीबों के दर्द की परवाह है।

देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों के आदर्श महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया, भीमराव अंबेडकर और दीन दयाल उपाध्याय जैसे लोग रहे हैं। ये वो लोग थे जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ समाज के उस तबके की भलाई करना था जिन तक कोई नहीं पहुंच पाता। आज भी ये सभी राजनीतिक पार्टियां अपने आदर्शों की तस्वीरों का इस्तेमाल तो ज़रूर करती हैं। लेकिन उनके कहे के मुताबिक गरीबों का विकास नहीं कर पा रही हैं।

क्योंकि लोहिया, अंबेडकर और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों का मकसद कभी भी राजनीति करना नहीं रहा। अगर ये लोग राजनीति में आए भी तो सिर्फ इसलिए ताकि गरीबों का भला किया जा सके लेकिन इन नेताओं के आदर्शों पर चलने की बात कहने वाले नेता सिर्फ और सिर्फ अपनी भलाई में जुटे हैं। यही वजह है कि ये नेता गरीबों को गरीब रखकर अपना वोट बैंक सुनिश्चित करना चाहते हैं।

चुनाव आते ही नेता अपने फटे हुए कुर्ते, सादे स्वैटर, मफलर, सूती साड़ियों और हवाई चप्पल निकाल लेते हैं। कुछ नेता पूरे वर्ष सादे परिधान पहनते हैं और गरीबों के करीब दिखने की कोशिश करते हैं जबकि कुछ नेता सर्दियों के कपड़ों की तरह चुनाव वाले कपड़े निकालकर पहन लेते हैं लेकिन इनमें से कोई भी ऐसी नीति नहीं बना पाता जिससे गरीबों को तन ढकने के लिए कपड़े, सिर ढकने के लिए छत, सोने के लिए बिस्तर और खाने के लिए रोटी नसीब हो पाएं। गरीबों के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना 70 साल पहले भी एक चुनौती था और आज भी एक चुनौती है।

भारत के राजनेताओं को सिंगापुर से सीखना चाहिए

भारत के नेता अगर गरीबी से लड़ने की ठान लें तो वाकई भारत में गरीबी पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन सवाल नीयत का है और भारत की राजनीति में नेताओं की नीयत और नज़र वोटों से आगे नहीं जा पातीं। सिंगापुर जब आजाद हुआ तो वो भी भारत की तरह एक गरीब देश था। वर्ष 1947 में आई ब्रिटिश हाउसिंग कमेटी की रिपोर्ट में सिंगापुर को दुनिया का सबसे खराब स्लम बताया गया था। वर्ष 1959 तक सिंगापुर की बड़ी आबादी के पास रहने के लिए मकान नहीं होते थे। इसके बाद सिंगापुर में द हाउसिंग एंड डेवलपमेंट बोर्ड यानी एचडीबी की स्थापना हुई। एचडीबी ने देश के हर नागरिक को अपना घर देने का लक्ष्य तय कर लिया। 

वर्ष 1965 में जब सिंगापुर, मलेशिया से अलग होकर स्वतंत्र देश बना। तबतक एचडीबी ने सिंगापुर में 54 हज़ार घर तैयार कर लिए थे। शुरुआती दौर में एकदम साधारण फ्लैट बनाए गए जिन्हें सरकार नागरिकों को किराये पर देती थी। वर्ष 1965 तक सिंगापुर की 23 प्रतिशत आबादी एचडीबी के फ्लैट्स में किराये पर रहती थी लेकिन फिर सिंगापुर की सरकार ने ऐसी योजनाएं बनाईं ताकि लोग अपना खुद का घर खरीद सकें। गरीबों के हितों में चलाई गई सरकारी योजनाओं की बदौलत सिंगापुर एक बदहाल और गरीब देश से एक विकसित और खुशहाल देश बन गया। इसमें सिंगापुर के महान नेता ली कुआन यू का बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। 

यहां आपको ये भी देखना चाहिए कि भारत की राजनीतिक सोच और फैसला करने को लेकर ली कुआन यू की राय क्या थी? ली कुआन यू ने भारत में डिसीजन मेकिंग को लेकर जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था, आज उन पर ध्यान देने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा था, 'India is a nation of unfulfilled greatness.” “Indians will go at a tempo which is decided by their constitution, by their ethnic mix, by their voting patterns, and the resulting coalition governments, which makes for very difficult decision-making,” 

'यानी भारत असंतुष्ट महानता वाला देश है। भारतीय नागरिक संविधान के तहत तय की गई देश की रफ्तार के हिसाब से आगे बढ़ना चाहते हैं। अपने-अपने धर्मों और जातिगत व्यवस्थाओं के मुताबिक आगे बढ़ना चाहते हैं और इसके साथ ही भारत में वोटिंग पैटर्न्स और गठबंधन सरकार की वजह से मुश्किल फैसले लेने में दिक्कतें आती हैं।'

भारत के नौकरशाहों को लेकर भी उनकी सोच काफी अलग थी। उन्होंने कहा था, भारत का एक औसत नौकरशाह खुद को शासक समझता है ना कि सहायक। भारत का एक औसत नौकरशाह अभी तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया है, कि लाभ कमाना और धनी बन जाना कोई गुनाह नहीं है। भारत के नौकरशाह को बिजनेस कम्यूनिटी पर भरोसा नहीं है। भारत के नौकरशाह, व्यापारियों को पैसे कमाने वाला अवसरवादी समझते हैं, जिन्हें अपने देश की फिक्र नहीं है।

सिंगापुर ही नहीं भारत के नेता चाहें, तो दूसरे देशों से भी सीख सकते हैं। ब्राज़ील की सरकार ने प्रभावी योजनाएं चलाकर गरीबों की संख्या 10 प्रतिशत से 4 प्रतिशत कर दी है। चीन का दावा है कि उसने शहरी इलाकों में गरीबी को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी गरीबों की संख्या घटी है बांग्लादेश में गरीबों की संख्या 6 करोड़ 30 लाख से घटकर 4 करोड़ 70 लाख हो गई है। यहां तक कि अफ्रीकी देश घाना ने भी गरीबी को 50 प्रतिशत तक कम कर दिया है।

वर्ष 2015 में आई वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गरीबों की संख्या में कमी आई है। लेकिन ये कमी अभी भी अपने लक्ष्य से दूर है। भारत की गरीबी दूर तो ज़रूर हो रही है लेकिन इसमें नेताओं की भूमिका कम नज़र आती है। अगर भारत के नेता वोट बैंक वाली राजनीति छोड़ दें तो भारत एक ऐसा देश बन सकता है जहां कोई गरीब नहीं होगा। 

जब भी हम भारत और सिंगापुर की तुलना करते हैं तो भारत के तमाम नेता और सरकारी अधिकारी दबाव में आ जाते हैं और वो हमसे ये कहते हैं कि भारत और सिंगापुर की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि भारत बहुत बड़ा और ज़्यादा आबादी वाला देश है लेकिन हमें लगता है कि ये सही सोच नहीं है। हमारे देश का सिस्टम अगर चाहता तो भारत में कम से कम एक शहर को सिंगापुर जैसा बना सकता था।

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