ZEE जानकारी: जानिए ईमेल भेजने से कैसे बढ़ रहा धरती का तापमान
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ZEE जानकारी: जानिए ईमेल भेजने से कैसे बढ़ रहा धरती का तापमान

जब भी आप अपने मोबाइल फोन पर कोई काम करते हैं या कंप्यूटर से ईमेल भेजते हैं तो आप भी एक तरह से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं . दुनिया में हर रोज़ सिर्फ 60 सेकेंड में इतने ईमेल भेजे जाते हैं जिससे होने वाला कार्बन उत्सर्जन 21 हजार किलो कोयला जलाने के बराबर है. हो सकता है आपको इस खतरे के बारे में कोई जानकारी ना हो और अनजाने में ही आप ये गलती बार-बार कर रहे हों.

ZEE जानकारी: जानिए ईमेल भेजने से कैसे बढ़ रहा धरती का तापमान

हमने आपको बताया कि हैकर्स कैसे आपका डेटा चुरा रहे हैं लेकिन आपकी धड़ल्ले से DATA खर्च करने की आदत धरती की सेहत चुरा रही है. जब भी आप अपने मोबाइल फोन पर कोई काम करते हैं या कंप्यूटर से ईमेल भेजते हैं तो आप भी एक तरह से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं . दुनिया में हर रोज़ सिर्फ 60 सेकेंड में इतने ईमेल भेजे जाते हैं जिससे होने वाला कार्बन उत्सर्जन 21 हजार किलो कोयला जलाने के बराबर है. हो सकता है आपको इस खतरे के बारे में कोई जानकारी ना हो और अनजाने में ही आप ये गलती बार-बार कर रहे हों.

यानी अगर आज सुबह से आपने WhatsApp पर कुछ लोगों को Good Morning या Thank You जैसे Messages भेजे हैं. Facebook पर लोगों की तस्वीरें और Status को Like किया है. ऑफिस में बैठकर ई-मेल का जवाब दिया है. YouTube पर Videos देखे हैं या फिर या फिर Online फिल्में या Series देखी हैं.. तो आज का ये विश्लेषण आपके लिए ही है.

एक ब्रिटिश एनर्जी कंपनी की रिसर्च से पता चला है कि है कि सिर्फ ब्रिटेन में हर दिन करीब 6 करोड़ 40 लाख ऐसे ई-मेल किए जाते हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती और इनमें सबसे ज्यादा होते हैं- थैंक यू ई-मेल. इन ईमेल की वजह से हर साल 16 हज़ार 433 टन कार्बन का उत्सर्जन होता है . साल भर में मुंबई से दिल्ली की 81 हज़ार 152 फ्लाइट्स की वजह से जितनी कार्बन डाई ऑक्साईड पैदा होती है या 3 हज़ार 334 डीजल गाड़ियों से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है, उतना Carbon emission ब्रिटेन में साल भर में भेजी गई E-mails से ही पैदा हो जाता है.

अगर आप ये सोच रहे हैं कि आखिर E-mails की वजह से Carbon Emission कैसे होता है. जब भी आप कोई ईमेल भेजते हैं तो ये आपको ई-मेल सर्विस देने वाली कंपनी के Data Center में जाती है . और ये ई-मेल तब तक वहां पर मौजूद रहती है जबतक कोई इसे स्थायी तौर पर Delete ना कर दे.

यहां Data Center का मतलब उन मशीनों से है जहां पर आपकी ईमेल, तस्वीरें और बाकी डेटा स्टोर करके रखा जाता है. यह Data Center आपके पर्सनल कंप्यूटर जैसा होता है. बस फर्क इतना है कि एक Data Center की क्षमता हज़ारों लाखो पर्सनल कम्प्यूटर्स के बराबर होती है. इसलिए कई Data Centers एक छोटे शहर के बराबर ऊर्जा यानी बिजली का इस्तेमाल करते हैं.

एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में बनाई जाने वाली कुल बिजली का 10 प्रतिशत इंटरनेट या उससे जुड़े डेटा सेंटर में इस्तेमाल होता है . अब भी दुनिया के ज्यादातर देश कोयले या गैस की मदद से बिजली बनाते हैं . यही वजह है रोज़ाना भेजे जाने वाले करोड़ों E-mails धरती का तापमान बढ़ा रहे हैं .

इंटरनेट से जुड़ी हर कंपनी यानी Google, Facebook और Twitter के पास ऐसे बड़े बड़े Data Center होते हैं. जहां पर आपका डेटा स्टोर करके रखा जाता है. Data Center के बारे में आपको समझाने के लिए हमने एक विशेषज्ञ से भी बात की है ताकि आप भी इस खबर को देखकर विशेषज्ञ बन जाएं और दूसरों को भी इस खतरे के बारे में बता सकें .

ब्रिटेन में सिर्फ 5 करोड़ 50 लाख इंटरनेट यूजर्स हैं जबकि भारत में करीब 62 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. अब आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत के ये इंटरनेट यूजर्स कितना कार्बन उत्सर्जन करते होंगे . सिर्फ ईमेल ही नहीं आपके मोबाइल फोन पर इंटरनेट के जरिए होने वाली हर गतिविधि धरती का तापमान बढ़ा देती है.

- दुनिया भर में औसतन एक मिनट में करीब 15 करोड़ ई-मेल भेजे जाते हैं . और इससे 60 हजार किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है. यानी दिन भर में 21 हज़ार करोड़ से ज्यादा ई-मेल भेजे जाते हैं . और इस हिसाब दिन भर में इनसे करीब साढ़े 8 करोड़ किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

- 60 हज़ार किलोग्राम Carbon का उत्सर्जन करीब 21 हजार किलोग्राम कोयला जलाने के बराबर है . यानी इस हिसाब से हर रोज ई-मेल भेजकर ही दुनिया भर के लोग 30 हजार टन कोयला जलाने के बराबर कार्बन उत्सर्जन करते हैं .

- सिर्फ ई-मेल ही नहीं अगर आप Internet पर कुछ Search भी करते हैं तो इससे 0.2 ग्राम कार्बन एमिशन होता है .

- 30 मिनट का एक Online वीडियो देखने पर 1.6 किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है .

- एक Facebook यूजर प्रति वर्ष 299 ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है

- इतना ही नहीं यदि आप अपने मोबाइल फोन से एक SMS भी भेजते हैं तो उसमें भी .014 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

और ये सारे काम करते वक्त आप Internet Data का इस्तेमाल करते हैं. Telecom Regulatory Authority of India यानी TRAI के मुताबिक वर्ष 2019 में सितंबर तक भारतीयों ने साढ़े 5 करोड़ TeraBytes, Data का इस्तेमाल कर लिया था. ये 55 अरब GB Data के बराबर है और इसकी एक वजह ये है कि पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में Internet DATA सबसे सस्ता  सिर्फ 18 रुपए प्रति GB है . और आप जितना ज्यादा Internet DATA इस्तेमाल करेंगे उतना ही ज्यादा कार्बन का निर्माण होगा . भारत Technology की दुनिया का उभरता हुआ देश है . कहने को भारत Digital युग में जी रहा है लेकिन ऐसा करके भारत के लोग धरती का तापमान बढ़ाने में अपना सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं.

मोबाइल फोन पर आपकी गतिविधि और कंप्यूटर पर किया गया एक क्लिक कैसे धरती का नुकसान कर रही है ये समझाने के लिए हमने एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है जिसे आपको जरूर देखना चाहिए. हमने आपको बताया कि हैकर्स कैसे आपका डेटा चुरा रहे हैं लेकिन आपकी धड़ल्ले से DATA खर्च करने की आदत धरती की सेहत चुरा रही है.

जब भी आप अपने मोबाइल फोन पर कोई काम करते हैं या कंप्यूटर से ईमेल भेजते हैं तो आप भी एक तरह से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं. दुनिया में हर रोज़ सिर्फ 60 सेकेंड में इतने ईमेल भेजे जाते हैं.. जिससे होने वाला कार्बन उत्सर्जन 21 हजार किलोग्राम कोयला जलाने के बराबर है . हो सकता है आपको इस खतरे के बारे में कोई जानकारी ना हो... और अनजाने में ही आप ये गलती बार-बार कर रहे हों.

यानी अगर आज सुबह से आपने WhatsApp पर कुछ लोगों को Good Morning या Thank You जैसे Messages भेजे हैं. Facebook पर लोगों की तस्वीरें और Status को Like किया है. ऑफिस में बैठकर E-mails का जवाब दिया है. YouTube पर Videos देखे हैं या फिर या फिर Online फिल्में या Series देखी हैं.. तो आज का ये विश्लेषण आपके लिए ही है.

एक ब्रिटिश एनर्जी कंपनी की एक रिसर्च से ये पता चला है कि है कि सिर्फ ब्रिटेन में हर दिन करीब 6 करोड़ 40 लाख ऐसे ई-मेल किए जाते हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती है . और इनमें सबसे ज्यादा होते हैं- थैंक यू E-mails. इन ई-मेल की वजह से हर साल 16 हज़ार 433 टन कार्बन का उत्सर्जन होता है . यानी साल भर में मुंबई से दिल्ली की 81 हज़ार 152 फ्लाइट्स की वजह से जितनी कार्बन डाई ऑक्साईड पैदा होती है या 3 हज़ार 334 डीजल गाड़ियों से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है, उतना Carbon emission ब्रिटेन में साल भर में भेजी गई बेवजह की E-mails से ही पैदा हो जाता है.

अगर आप ये सोच रहे हैं कि आखिर E-mails की वजह से Carbon Emission कैसे होता है ? तो अब इसे आसान भाषा में समझिए. जब भी आप कोई ईमेल भेजते हैं तो ये ई-मेल आपको ई-मेल की सर्विस देने वाली कंपनी के Data Center में जाती है और ये ई-मेल तब तक वहां पर मौजूद रहती है जब तक कोई इसे स्थायी तौर पर Delete ना कर दे यानी उसे मिटा ना दे. 

यहां Data Center का मतलब उन मशीनों से है जहां पर आपकी ईमेल, तस्वीरें और बाकी डेटा को स्टोर करके रखा जाता है. यह Data Center आपके पर्सनल कंप्यूटर जैसा होता है. बस फर्क इतना है कि एक Data Center की क्षमता हज़ारों-लाखो पर्सनल कम्प्यूटर्स के बराबर होती है . इसलिए कई Data Centers एक छोटे शहर के बराबर ऊर्जा यानी बिजली का इस्तेमाल करते हैं.

एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में बनाई जाने वाली कुल बिजली का 10 प्रतिशत इंटरनेट या उससे जुड़े डेटा सेंटर में इस्तेमाल होता है. अब भी दुनिया के ज्यादातर देश कोयले या गैस की मदद से बिजली बनाते हैं . यही वजह है कि रोज़ाना भेजे जाने वाले करोड़ों E-mails धरती का तापमान बढ़ा रहे हैं .

इंटरनेट से जुड़ी हर कंपनी जैसे Google, Facebook और Twitter के पास ऐसे बड़े-बड़े Data Center होते हैं. जहां पर आपका डेटा स्टोर करके रखा जाता है. Data Center के बारे में आपको समझाने के लिए आज हमने एक विशेषज्ञ से भी बात की है ताकि आप भी इस खबर को देखकर एक्सपर्ट बन जाएं और दूसरों को भी इस खतरे के बारे में अच्छी तरह से बता सकें .

ब्रिटेन में सिर्फ 5 करोड़ 50 लाख इंटरनेट यूजर्स हैं जबकि भारत में करीब 62 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. अब आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत के ये इंटरनेट यूजर्स कितना कार्बन उत्सर्जन करते होंगे . सिर्फ ईमेल ही नहीं आपके मोबाइल फोन पर इंटरनेट के जरिए होने वाली हर गतिविधि धरती का तापमान बढ़ा देती है.

- दुनियाभर में औसतन एक मिनट में करीब 15 करोड़ ई-मेल भेजे जाते हैं और इससे 60 हजार किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है. यानी दिन भर में 21 हज़ार करोड़ से ज्यादा ई-मेल भेजे जाते हैं . और इस हिसाब दिन भर में इनसे करीब साढ़े 8 करोड़ किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है. 
- 60 हज़ार किलोग्राम Carbon का उत्सर्जन करीब 21 हजार किलोग्राम कोयला जलाने के बराबर है . यानी इस हिसाब से हर रोज ई-मेल भेजकर ही दुनिया भर के लोग 30 हजार टन कोयला जलाने के बराबर कार्बन उत्सर्जन करते हैं .
- सिर्फ ई-मेल ही नहीं अगर आप Internet पर कुछ Search भी करते हैं तो इससे 0.2 ग्राम कार्बन एमिशन होता है .
- 30 मिनट का एक Online वीडियो देखने पर 1.6 किलोग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है .
- एक Facebook यूजर प्रति वर्ष 299 ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है
- इतना ही नहीं यदि आप अपने मोबाइल फोन से एक SMS भी भेजते हैं तो उसमें भी .014 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

और ये सारे काम करते वक्त आप Internet Data का इस्तेमाल करते हैं. Telecom Regulatory Authority of India यानी TRAI के मुताबिक वर्ष 2019 में सितंबर तक भारतीयों ने साढ़े 5 करोड़ TeraBytes. Data का इस्तेमाल कर लिया था . ये 55 अरब GB Data के बराबर है . और इसकी एक वजह ये है कि पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में Internet DATA सबसे सस्ता सिर्फ 18 रुपए प्रति GB है . और आप जितना ज्यादा Internet DATA इस्तेमाल करेंगे उतना ही ज्यादा कार्बन का निर्माण होगा. भारत Technology की दुनिया का उभरता हुआ देश है . कहने को भारत Digital युग में जी रहा है लेकिन ऐसा करके भारत के लोग धरती का तापमान बढ़ाने में अपना सबसे ज्यादा योगदान दे रहे हैं. मोबाइल फोन पर आपकी गतिविधि और कंप्यूटर पर किया गया एक क्लिक कैसे धरती का नुकसान कर रही है ये समझाने के लिए हमने एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है जिसे आपको जरूर देखना चाहिए.

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