जम्मू और कश्मीर पर ज्यादातर चर्चाएं उन अमेरिकी सांसदों द्वारा आयोजित की जा रही है जो पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं और जिन्हें कश्मीर के हिंदुओं का दर्द दिखाई नहीं देता लेकिन एक कश्मीरी पंडित ने अमेरिका की इस पक्षपाती पंचायत की पोल पूरी दुनिया के सामने खोल दी है. इस महिला का नाम है सुनंदा वशिष्ठ. सुनंदा एक लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हैं और वो अमेरिका में रहती हैं.
Trending Photos
अब हम आपको भारत की उन दो प्रतिभाशाली महिलाओं से मिलवाएंगे, जिन्होंने मानवाधिकारों के नाम पर हिंदुओं के साथ किए जा रहे अंतरराष्ट्रीय छल का पर्दाफाश कर दिया. हम आपको दिखाएंगे कि कैसे भारत की महिला शक्ति भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का जवाब दे रही है. मेरे हाथ में इस वक्त जो दस्तावेज़ है, उसे आप मानव सभ्यता के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों में से एक कह सकते हैं. इस Document का नाम है Universal Declaration of Human Rights. हिंदी में इसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कहते हैं. ये दस्तावेज़ United Nations द्वारा 10 दिसंबर 1948 को जारी किया गया था .इसके पहले Article में लिखा है- सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्म-जात स्वतंत्रता और समानता हासिल है. सभी मनुष्यों को अंतर-आत्मा और बुद्धि की देन प्राप्त है, और सबको एक दूसरे के साथ भाईचारे वाला बर्ताव करना चाहिए.
इस घोषणा को आधार बनाकर, पूरी दुनिया में मानवाधिकारों की रक्षा के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. कई देश इसी घोषणा को आधार बनाकर मानव-अधिकारों की रक्षा करने वाले आयोग खोल लेते हैं, दुनियाभर के देशों के आंतरिक मामलों में दखल देते हैं और अपनी पक्षपात से भरी सोच के साथ फैसले सुनाते हैं. आप इसे Human Rights के नाम पर खोली जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय Franchise भी कह सकते हैं. ऐसी ही एक Franchise अमेरिका के पास भी है जो आजकल जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के मानवाधिकारों पर चर्चा कर रही है.
कल हमने आपको आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी Fake News के बारे में बताया था और आज हम आपको पिछले 70 वर्षों के दौरान फैलाई गई उस अंतरराष्ट्रीय Fake News के बारे में बता रहे हैं जिसमें कश्मीर के मामले में भारत को एक विलेन की तरह पेश किया जाता है और कश्मीर से निकाले गए हिंदुओं के दर्द को कोई जगह नहीं मिलती.
जम्मू और कश्मीर पर ज्यादातर चर्चाएं उन अमेरिकी सांसदों द्वारा आयोजित की जा रही है जो पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं और जिन्हें कश्मीर के हिंदुओं का दर्द दिखाई नहीं देता लेकिन एक कश्मीरी पंडित ने अमेरिका की इस पक्षपाती पंचायत की पोल पूरी दुनिया के सामने खोल दी है. इस महिला का नाम है सुनंदा वशिष्ठ. सुनंदा एक लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हैं और वो अमेरिका में रहती हैं. सुनंदा ने अमेरिकी संसद के Tom Lantos Human Rights Commission द्वारा जम्मू और कश्मीर पर आयोजित की गई एक सुनवाई में हिस्सा लिया. इस दौरान सुनवाई कर रहे पैनल के सामने 7 लोगों ने अपनी गवाही दी. इन सात लोगों में से 6 ने कश्मीर पर भारत सरकार का विरोध किया और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसला का भी विरोध किया लेकिन जब सुनंदा वशिष्ठ की बारी आई तो उन्होंने पैनल को बताया कि कैसे ये पूरी सुनवाई भारत के प्रति दुराग्रह के साथ आयोजित की जा रही है और कोई भी कश्मीर से निकाले गए पंडितों के मानवाधिकारों की बात नहीं कर रहा है.
सुनंदा वशिष्ठ ने पैनल के सामने कश्मीर के उस दौर की चर्चा की. जब वहां आतंकवादियों के दबाव में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए जा रहे थे. उन्हें मारा जा रहा था, उनके घर जलाए जा रहे थे और उन्हें रातों रात. अपना घर-बार छोड़कर कश्मीर से जाने के लिए मजबूर कर दिया गया था. सुनंदा वशिष्ठ ने ज़ोर देकर पूछा कि जब आज से 30 वर्ष पहले इस्लामिक आतंकवाद के नाम पर कश्मीर के हिंदुओं का कत्ल किया जा रहा था...तब मानव-अधिकारों की रक्षा करने वाले मसीहा कहां थे?
पहले आप सुनंदा वशिष्ठ की ज़ुबानी कश्मीर का सच सुनिए. फिर हम अपने इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे. सुनंदा जब अपना बयान दे रही थीं तो वहां मौजूद कई लोगों को ये बर्दाश्त नहीं हुआ और वो शोर-शराबा करके सुनंदा को तंग करने लगे लेकिन सुनंदा ने भी साफ कर दिया कि कश्मीर में जनमत संग्रह का कोई सवाल नहीं उठता क्योंकि जनमत संग्रह कराने के लिए पहले पाकिस्तान को PoK छोड़ना होगा और चीन को भी कश्मीर के वो हिस्से खाली करने होंगे जो पाकिस्तान ने एक तरह से उसे बेच दिए हैं. सुनंदा ने साफ कहा कि अमेरिका चाहकर भी चीन को कश्मीर से हटने के लिए नहीं कह सकता इसलिए जनमत संग्रह की बात दुनिया भूल जाए तो ही अच्छा है. सुनंदा ने ये भी कहा कि कश्मीर के बगैर भारत की और भारत के बगैर कश्मीर की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि भारत की सभ्यता 5 हज़ार साल से ज्यादा पुरानी है और कश्मीर हमेशा से भारत का हिस्सा रहा है.
कश्मीर पर सुनवाई कर रहे पैनल की अध्यक्षता डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद James McGovern और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद Christopher H. Smith कर रहे थे. जिन लोगों ने गवाही दी उनमें अमेरिका के अंतर्राष्टीय धार्मिक स्वंतत्रता आयोग की कमिश्नर अनुरिमा भार्गव .कश्मीर को लेकर अक्सर भारत के खिलाफ लेख लिखने वाली Haley Duschinski (हेली डुशिसन्सिकी ).मानव-अधिकार कार्यकर्ता सहला अशाई, कश्मीरी मूल की युसरा फज़िली .अमेरिका के मानव-अधिकार कार्यकर्ता और वकील अर्जुन सेठी और Human Rights Watch के सदस्य John Sifton और कश्मीरी पंडित सुनंदा वशिष्ठ जैसे लोग शामिल थे .इनमें से सुनंदा को छोड़कर..बाकी सभी लोग...भारत विरोध के लिए जाने जाते हैं.
अफसोस की बात ये है कि सुनवाई कर रहे पैनल में भारतीय मूल की पहली अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल भी शामिल थीं. प्रमिला 16 वर्ष की उम्र में भारत से अमेरिका गई थीं और उनके माता-पिता आज भी भारत में रहते हैं लेकिन प्रमिला को आज का भारत अचानक से असहनशील लगने लगा है जबकि सच ये है कि अमेरिका में नफरत के आधार पर की जाने वाली हिंसा में बेतहाशा वृद्धि हुई है और अमेरिका में Hate Crime की दर पिछले 16 वर्षों के मुकाबले सबसे ज्यादा है लेकिन प्रमिला जयपाल जैसे डेमोक्रेटिक सांसद अमेरिका की जगह कश्मीर के मानव-अधिकारों की चिंता कर रहे हैं.
इस पैनल में Texas से सांसद शीला जैक्सन ली भी शामिल थी. शीला जैक्सन ली ने सुनवाई के दौरान सुनंदा वशिष्ठ से कई सवाल किए और भारत के हालात पर चिंता भी जताई लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी शीला को अमेरिका में सबसे खराब Bosses में गिना जाता है. अमेरिका की कई Magzines और अखबार उन्हें सबसे खराब Boss का दर्जा दे चुके हैं. उनके बर्ताव से परेशान होकर उनके साथ काम करने वाले कर्मचारी अक्सर इस्तीफा दे देते हैं. वर्ष 1998 में उनके ऑफिस से 5 कर्मचारियों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया था. इतना ही नहीं, 11 वर्षों के दौरान उनके 11 Chief Of Staffs इस्तीफा दे चुके हैं.
यानी अमेरिका के ये तमाम सांसद और मानव-अधिकार कार्यकर्ता अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश नहीं करते...और दूसरे देशों को मानव-अधिकारों का पाठ पढ़ाते हैं.
जब इस मामले की सुनवाई हो रही थी तब वहां मौजूद कुछ लोग सुनंदा वशिष्ठ को रोकने की कोशिश कर रहे थे लेकिन पैनल ने शोर मचाने वाले लोगों को रोकने की कोशिश नहीं की. यानी एक मानव-अधिकार आयोग के सामने.कुछ लोग एक महिला की वैचारिक Mob Lynching कर रहे थे और किसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. आप भी सुनंदा को बीच बीच में टोके जाने का ये वीडियो देखिए. फिर हमने अपने विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे.
अब आप समझ गए होंगे कि कैसे ये लोग मानवाधिकारों के नाम पर दोहरे मापदंड अपनाते हैं.इसलिए इन्हें ना तो..कश्मीरी पंडितों का दर्द दिखाई देता है और ना ही इन्हें वो सच सुनना पसंद है जो इनके एजेंडे को Expose करता है.
इस सुनवाई के दौरान पैनल के सिर्फ मुट्ठी भर सदस्य मौजूद थे .जबकि Tom Lantos मानव-अधिकार आयोग में 55 सदस्य हैं. यानी अमेरिका में भी बहुत सारे सांसद ऐसे हैं जो जानते हैं कि कश्मीर का सच क्या है लेकिन जिस तरह हमारे समाज में कहा जाता है कि कई बार आपकी जिंदगी का फैसला चार लोग मिलकर कर लेते हैं. उसी तरह अमेरिका में भी कई बार चार लोग मिलकर दूसरे देशों के मामलों में दखल देते हैं और स्थितियों को अपने मुताबिक बदलने की कोशिश करते हैं .आज हम ऐसे लोगों को कश्मीरी पंडितों से जुड़ा वो सच दिखाना चाहते हैं..जिसे मानने से ये लोग इनकार करते रहे हैं.
कश्मीरी पंडित....कश्मीर के इलाके के एकमात्र मूल हिंदू निवासी हैं. वर्ष 1947 तक कश्मीर घाटी के अंदर कश्मीरी पंडितों की आबादी क़रीब 15% थी. ये आबादी दंगों और अत्याचार की वजह से वर्ष 1981
तक घटकर 5% रह गई थी. वर्ष 1985 के बाद से कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म और अत्याचार बड़े पैमाने पर हुआ. कश्मीरी पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से लगातार धमकियां मिलने लगीं. 19 जनवरी 1990 को कट्टरपंथियों ने ऐलान कर दिया, कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं. वो या तो कश्मीर छोड़ दें या फिर इस्लाम कबूल कर लें, नहीं तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा. कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों के घरों की पहचान की, ताकि वो योजनाबद्ध तरीके से उन्हें Target कर सकें. इसी दौरान बड़े पैमाने पर कश्मीर में हिंदू अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, कारोबारियों और दूसरे बड़े लोगों की हत्याएं की गईं.
हालात ये बन गए कि फरवरी और मार्च 1990 में दो महीने में, करीब 1 लाख 60 हज़ार कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागना पड़ा. और कुल मिलाकर कश्मीर के करीब 4 लाख पंडितों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा .लेकिन एक एजेंडे के तहत..भारत के खिलाफ ज़हर फैलाने वाले डिजाइनर मानव-अधिकार कार्यकर्ताओं को कश्मीरी पंडितों का सच दिखाई नहीं देता .इसलिए हम कह रहे हैं कि ये कश्मीर को लेकर फैलाई जा रही वो Fake News है .जिसका शिकार दुनिया का सबसे पुराला लोकतंत्र कहलाने वाला अमेरिका भी हो गया है.
सुनंदा वशिष्ठ के बाद अब आप देश की एक और महिला शक्ति, अनन्या अग्रवाल की बात सुनिए. अनन्या अग्रवाल UNESCO में भारत की प्रतिनिधि हैं. कल उन्होंने UNESCO के मंच से पूरी दुनिया को पाकिस्तान का आतंकी चरित्र दिखाया. अनन्या अग्रवाल ने कश्मीर पर पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान तेजी से एक FAILED स्टेट यानि नाकाम देश बन रहा है.