वो विश्वास मत, जब सिर्फ एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार
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वो विश्वास मत, जब सिर्फ एक वोट से गिर गई थी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार

17 अप्रैल 1999 में लोकसभा में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में विश्वास पत्र पेश करना था.

वाजयेपी सरकार के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : कर्नाटक में सियासी उठापटक और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक फ्लोर टेस्ट से पहले ही सीएम येदियुरप्पा इस्तीफा सौंप सकते हैं. येदियुरप्पा के इस इस्तीफे को अटल बिहारी वाजपेयी के 1999 के घटनाक्रम से जोड़कर देख जा रहा है जो कि लाजिमी है. 17 अप्रैल और 19 मई में ज्यादा दिनों का अंतर नहीं है, अगर कुछ वाकई बदला है तो वो है समय का फेर.

सिर्फ एक वोट से हार गए थे वाजपेयी
17 अप्रैल 1999 में लोकसभा में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा में विश्वास पत्र पेश करना था. लोकसभा में अटल सरकार के विश्वास पत्र के लिए वोटिंग की जा रही थी, लेकिन सिर्फ एक वोट से सरकार अविश्वास प्रस्ताव हार गई थी. अटल के अविश्वास प्रस्ताव हारने के पीछे कई राजनीतिक कारणों को माना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा इस हार की जिम्मेदारी किसी के कंधों पर जाती है तो वह शख्स थे ओड़िशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग.कहा जाता है कि ओड़िशा का मुख्यमंत्री होने के होने के बावजूद गमांग 17 अप्रैल को लोकसभा पहुंचे थे और बीजेपी तके खिलाफ वोटिंग की थी. 

17 अप्रैल 1999 में क्यों लाया गया अविश्वास प्रस्ताव
1998 में हुए आम चुनावों में किसी की राजनीतिक पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ था. तमाम असमंजस के बाद जयललिता की पार्टी एआईडीएमके ने बीजेपी को समर्थन दिया था, जिसके बाद केंद्र में वाजपेयी ने सरकार बनाई थी. राजनीतिक हलचल होने के बाद महज 13 महीनों में ही एआईडीएमके ने एनडीए को दिया गया समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई थी. 

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राष्ट्रपति ने बहुमत साबित करने को कहा
एआईडीएमके का समर्थन वापस लेने के बाद राष्ट्रपति ने वाजपेयी सरकार को मौका दिया और सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा. वाजयेपी के सामने कई सारी चुनौतियां थी, लेकिन इसी बीच बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐलान किया की वो इस वोटिंग का हिस्सा नहीं होंगी. मायावती के ऐलान के बाद वाजपेयी को लगा कि वह सदन में सिर्फ एक वोट से विश्वास मत हासिल करने में कामयाब होंगे, लेकिन अहम मौके पर मायावती पहुंची और सरकार के खिलाफ वोट किया. टाय होने के बाद सबकी नजरें ओड़िशा के मुख्यमंत्री गिरधर गमांग पर टिंकी हुई थी, सदन में वो जैसे ही पहुंचे तो उन्होंने सरकार के खिलाफ वोट किया और अटल प्रस्ताव पास नहीं करवा पाए.

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सीएम होने के बाद भी गिरधर गमांग क्यों दिया वोट
जिस वक्त केंद्र की सत्ता में यह सब चल रहा था, उस वक्त गिरधर गमांग ओड़िशा के सीएम और सांसद थे. सीएम बनने के बाद भी उन्होंने अपने सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है. आगामी 6 महीनों के भीतर उनको विधायक बनकर सीएम के रूप में अपने कार्यकाल को आगे बढ़ाना था. संसद में कांग्रेस को वोट देने के बाद गमांग का नाम सुर्खियों में आया, उस वक्त कई लोगों ने उनकी आलोचना की. 

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