कर्नाटक: कुमारस्‍वामी सरकार के गिरने का 'दाग' BJP पर नहीं लगाया जा सकता...
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कर्नाटक: कुमारस्‍वामी सरकार के गिरने का 'दाग' BJP पर नहीं लगाया जा सकता...

कर्नाटक में 14 महीने पुरानी एचडी कुमारस्‍वामी सरकार अपने अंतर्विरोधों की वजह से आखिरकार गिर गई.

कर्नाटक: कुमारस्‍वामी सरकार के गिरने का 'दाग' BJP पर नहीं लगाया जा सकता...

कर्नाटक में 14 महीने पुरानी एचडी कुमारस्‍वामी सरकार अपने अंतर्विरोधों की वजह से आखिरकार गिर गई. यद्यपि कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने लालच देकर कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों को तोड़ दिया. नतीजतन सरकार गिर गई. उन्‍होंने इसके लिए बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्‍पा के 2008 के 'ऑपरेशन कमल' फॉर्मूले को जिम्‍मेदार ठहराया. अब  सवाल उठता है कि क्‍या कांग्रेस के दावे में वाकई दम है कि कुमारस्‍वामी सरकार को गिराने में प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से बीजेपी का हाथ है?

  1. कर्नाटक में एचडी कुमारस्‍वामी सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई
  2. कांग्रेस ने बीजेपी पर विधायकों की खरीद-फरोख्‍त का आरोप लगाया
  3. सवाल उठता है कि क्‍या विधायकों की नाराजगी के लिए भी बीजेपी जिम्‍मेदार थी?

इस सवाल का जवाब खोजने के लिए पिछले साल मई में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों की तरफ एक बार फिर लौटना होगा. संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो कर्नाटक विधानसभा चुनाव होने के बाद किसी भी दल को स्‍पष्‍ट जनादेश नहीं मिला. हालांकि बीजेपी 105 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन बहुमत के आंकड़े से सात कदम दूर रह गई. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्‍पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन ढाई दिन बाद जब बहुमत परीक्षण की बात आई तो वह उसे साबित करने में विफल रहे.

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बगावत के 'बीज'
इस बीच चुनाव बाद कांग्रेस और कुमारस्‍वामी की जेडीएस के बीच गठबंधन हुआ और चुनाव में महज 37 सीटें जीतकर तीसरे नंबर पर रहने वाली जेडीएस के नेता को कांग्रेस ने मुख्‍यमंत्री का पद ऑफर कर दिया. उस वक्‍त इस तरह की चर्चाएं चलीं कि कांग्रेस आलाकमान ने 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों के मद्देनजर ये गठबंधन करने का फैसला किया. लेकिन यहां पर ये सवाल उठता है कि तीसरे नंबर पर रहने वाले दल के नेता को मुख्‍यमंत्री बनाए जाने का फैसला कितना तर्कसंगत था? क्‍या यह गठबंधन 'पवित्र' था? क्‍या वहीं से गठबंधन में बगावत के 'बीज' नहीं पड़ गए थे?

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एचडी कुमारस्‍वामी शक्ति परीक्षण में बहुमत साबित नहीं कर सके.(फाइल फोटो)

ऐसा इसलिए क्‍योंकि सरकार बनने के पहले ही दिन से स्‍पष्‍ट हो गया कि कांग्रेस का ही एक खेमा जेडीएस को समर्थन देने के पक्ष में नहीं था. कहा गया कि कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्‍यमंत्री सिद्दारमैया का खेमा कुमारस्‍वामी को मुख्‍यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं था. यह बात सरकार बनाने के छह महीने बाद उस वक्‍त प्रमाणित होती दिखी जब दो बार मुख्‍यमंत्री कुमारस्‍वामी ने भावुक होकर सार्वजनिक रूप से कहा कि वह बड़ी मुश्किल से सरकार को चला पा रहे हैं. उनको काम नहीं करने दिया जा रहा है. इसके साथ ही बीच-बीच में लगातार ये खबरें आती रहीं कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा. मंत्रिपरिषद से लेकर निगमों तक अपने-अपने लोगों को बैठाने के लिए लॉबिंग की खबरें आती रहीं. दोनों दलों का मिजाज कभी न्‍यूनतम साझा कार्यक्रम तक पर भी मेल नहीं खा सका.

केवल बीजेपी को रोकने और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ये गठबंधन बनाया गया था. 2019 के आम चुनाव में कर्नाटक की 28 में से 27 सीटों पर बीजेपी के जीत हासिल करने के बाद ही साफ हो गया था कि कुमारस्‍वामी सरकार का 'इकबाल' जनता में कितना बचा है? इस गठबंधन के जातीय गणित के फॉर्मूले को ध्‍वस्‍त करने में बीजेपी को बहुत मशक्‍कत नहीं करनी पड़ी. इससे ये भी संकेत मिल गए थे कि कुमारस्‍वामी सरकार  अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी क्‍योंकि कांग्रेस को भी इस गठबंधन फॉर्मूले से अपेक्षित सफलता नहीं मिली. उसके बाद से ही इस गठबंधन के औचित्‍य पर कांग्रेस के अंदरखाने सवाल उठने लगे थे.

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इसके साथ ही ये सवाल भी उठता है कि एक जुलाई को जब मौजूदा संकट की शुरुआत हुई तो पिछले तीन हफ्तों में कांग्रेस आलाकमान ने इस गठबंधन को बचाने के लिए कितनी तत्‍परता दिखाई? क्‍या वक्‍त रहते बागी विधायकों की समस्‍याओं (या मांगों) का निराकरण करने का सामर्थ्‍य सत्‍ता पक्ष के पास नहीं था? दो हफ्ते तक कर्नाटक के सत्‍ता के गलियारे में बवाल मचा रहा लेकिन किसी भी बागी को सत्‍तापक्ष अपने पाले में दोबारा नहीं ला सका. ऐसी घटनाएं आमतौर पर तो देखने को नहीं मिलती कि विधायक सत्‍तापक्ष को छोड़कर विपक्ष की तरफ चले जाएं क्‍योंकि होता दरअसल ये है कि विपक्ष की तरफ से लोग सत्‍तापक्ष से जुड़ने की चेष्‍टा करते हैं.

आखिर क्‍या वजह रही कि इन बागी विधायकों ने कर्नाटक कांग्रेस के कद्दावर नेता डीके शिवकुमार से मुंबई में मिलने तक से इनकार कर दिया. हालांकि कर्नाटक संकट शुरू होने के बाद शुरुआत में इस तरह की मीडिया रिपोर्ट भी आईं कि जो बागी विधायक हैं, उनमें से ज्‍यादातर सिद्दारमैया खेमे के हैं.

कांग्रेस का खरीद-फरोख्‍त का आरोप उस वक्‍त सही होता जब चुनाव बाद किसी दल को बहुमत नहीं मिलता है और संख्‍याबल को हासिल करने के लिए इस तरह का 'खेल' खेला जाता है. लेकिन उसके बजाय जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन पिछले 14 महीने से सत्‍ता में था और इसके बावजूद इसके विधायक नाराज होकर क्‍यों अलग हो गए? क्‍या इन विधायकों की नाराजगी के लिए भी बीजेपी जिम्‍मेदार थी?

इन सबको यदि संक्षेप में समझने की कोशिश की जाए तो कुल जमा निष्‍कर्ष निकलता है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा देने के बाद कर्नाटक कांग्रेस की अंदरूनी खेमेबाजी खुलकर सतह पर आ गई. जो लोग कुमारस्‍वामी के साथ के पक्ष में नहीं थे उन्‍होंने मौजूदा संकट उत्‍पन्‍न होने पर समाधान में दिलचस्‍पी नहीं दिखाई?

बीजेपी ने जब देखा कि गठबंधन के अंतर्विरोधों की वजह से कुमारस्‍वामी के हाथों से सत्‍ता की बागडोर फिसल रही है तो सक्रिय विपक्ष के नाते उसने पूरे धैर्य के साथ कई दिनों तक सदन में शक्ति परीक्षण का दम साधकर बेहद खामोशी के साथ इंतजार किया. आखिरकार जब बहुमत परीक्षण हुआ तो बीजेपी के पूरे के पूरे 105 विधायक उसके साथ खड़े रहे जबकि कुमारस्‍वामी का साथ उनके ही लोगों ने छोड़ दिया और रेत की तरह सत्‍ता उनके हाथ से फिसल गई.

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