त्योहार के रंग: सिर्फ बंगाल ही नहीं, छत्तीसगढ़ भी है 'दुर्गा पूजा' के लिए मशहूर
Advertisement

त्योहार के रंग: सिर्फ बंगाल ही नहीं, छत्तीसगढ़ भी है 'दुर्गा पूजा' के लिए मशहूर

छत्तीसगढ़ी में शक्ति की उपासना में 'जंवारा' का मतलब प्रभाव और महत्व बहुत खास होता है. यहां देवी के उपासक को छत्तीसगढ़ी बोली में 'जंवारा' कहा जाता है.

'दुर्गा पूजा' (फोटो साभार: DNA)

गरिमा शर्मा/नई दिल्ली: भारत में नवरात्रि आते ही दुर्गा पूजा का त्यौहार पूरी आस्था के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. देश के सभी प्रदेशों में दुर्गा पूजा का त्यौहार अलग- अलग तरीकों से मनाया जाता है. इसमें मां दुर्गा की पूजा पूरे नौ दिन बड़े ही भक्ति भाव से की जाती है. ऐसे में दुर्गा पूजा के बारे में सुनते ही सबका ध्यान बस पच्छिम बंगाल पर ही केंद्रित हो जाता है मगर शायद ही कुछ लोगों को ये बात पता हो कि छत्तीसगढ़ भी एक राज्य ऐसा है जहां दुर्गा पूजा को अलग अंदाज से मनाया जाता है. इसी वजह से अब कुछ समय से बंगाल की दुर्गा पूजा के बाद छत्तीसगढ़ी दुर्गा पूजा का ही नाम लिया जाता है. 

कुछ हटके है छत्तीसगढ़ की दुर्गा पूजा 
छत्तीसगढ़ में 'धान का कटोरा' कहे जाने वाले नवरात्र के त्यौहार का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है. सभी जगह की तरह ही यहां एक पात्र में अनाज बोकर, नौ दिनों में अंकुरित किए जाते हैं जिन्हें सब जगह 'जंवारा' कहते हैं, लेकिन इसको लेकर भी यहां की अलग ही मान्यता है. छत्तीसगढ़ी में शक्ति की उपासना में 'जंवारा' का मतलब प्रभाव और महत्व बहुत खास होता है. यहां देवी के उपासक को छत्तीसगढ़ी बोली में 'जंवारा' कहा जाता है. नवरात्र के पहले ही दिन देवी के सामने गेहूं, चना, मूंग, मसूर आदि भिगोकर मिट्टी के बर्तन में बोया जाता है, फिर तीसरे दिन तक जब अंकुर फूट नन्हे पौधे नजर आते हैं, तो इन भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. 

कोलकाता में दुर्गा पूजा को लेकर तैयारी जोरों पर, कोणार्क से लाई गई 2000 टन की मूर्ति

'जसगीत' में देवी मां की महिमा गाते हैं लोग
आजकल हर जगह स्थानीय भाषा में लोकगीत काफी प्रचलित हैं, जो अब हर जगह बड़ी ही आसानी से मिल जाते हैं. ऐसे ही छत्तीसगढ़ी बोली में माता की आराधना करते हुए बहुत से गीत गाए जाते हैं, जिसे 'जसगीत' भी कहा जाता है. 'जंवारा गीत' भी उन्हीं लोकगीतों का ही एक हिस्सा है जो छत्तीसगढ़ लोक संगीत का एक महत्वपूर्ण अंग है. यहां के कुछ स्थानीय लोग बताते हैं कि मां के सामने बोए गए 'जंवारों' का आकार जैसे-जैसे बढ़ता जाता है वैसे वैसे यहां के भक्तों में मां दंतेश्वरी के लिए समर्पण और उत्साह और बढ़ता चला जाता है जिसके चलते यहां के सभी लोग भक्तिरस में डूबकर बहुत से 'जसगीत' गाते हैं. 

सुख, समृद्धि का प्रतीक है जौ की फसल 
नौ दिन की पूजा के बाद औरतें इन 'जंवारों' की फुलवारी को पूरे सम्मान से अपने सिर पर रखकर जल में विसर्जित करने जाती हैं. लोगों का ऐसा मानना है कि जौ इस सृष्टि की शुरुआत की पहली 'फसल' है और इस दौरान बोए गए जौ यदि तेजी से बढ़ते हैं तो परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है. इस मान्यता के पीछे एकमात्र भावना यही है कि मां भगवती के आशीर्वाद से हमारा घर हमेशा धन- धान्य से भरा रहे. 

Trending news