हाल ही में किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि प्रेग्नेंसी या प्रसव के बाद डिप्रेशन का अनुभव करने वाली महिलाओं में बाद के जीवन में दिल की बीमारी विकसित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है.
Trending Photos
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि प्रेग्नेंसी या प्रसव के बाद डिप्रेशन का अनुभव करने वाली महिलाओं में बाद के जीवन में दिल की बीमारी विकसित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं और गर्भवती महिलाओं और नई माताओं के लिए मेंटल और फिजिकल हेल्थ दोनों पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं.
अध्ययन में लगभग 600,000 महिलाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने 2001 और 2014 के बीच स्वीडन में बच्चों को जन्म दिया था. शोधकर्ताओं ने इन महिलाओं के मेडिकल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया और पाया कि प्रसव के बाद डिप्रेशन (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) से जूझ रहीं 55,539 महिलाओं में से 20 वर्षों के दौरान 6.4% को दिल की बीमारी का पता चला. वहीं, जिन महिलाओं को पोस्टपार्टम डिप्रेशन) नहीं था, उनमें से 3.7% को दिल की बीमारी का पता चला.
यह आंकड़ा बताता है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन से ग्रस्त महिलाओं में दिल की बीमारी का खतरा 36% अधिक होता है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि प्रसव से पहले डिप्रेशन (एंटीपार्टम डिप्रेशन) से जूझ रहीं महिलाओं में भी दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. अध्ययन के मुख्य लेखक डॉ. नेना लंडकविस्ट ने कहा कि यह अध्ययन प्रेग्नेंसी के दौरान और बाद में मेंटल हेल्थ के महत्व को दर्शाता है. पोस्टपार्टम डिप्रेशन न केवल महिलाओं के लिए इमोशनल रूप से कठिन होता है, बल्कि यह उनके लॉन्ग टर्म फिजिकल हेल्थ को भी प्रभावित कर सकता है.
दिल की बीमारी दुनिया भर में मौत का प्रमुख कारण है और यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन को दिल की बीमारी के रिस्क फैक्टर के रूप में मानने की आवश्यकता है. अध्ययन के निष्कर्ष डॉक्टरों को गर्भवती महिलाओं और नई माताओं के मेंटल हेल्थ की जांच करने और उन्हें आवश्यक मदद प्रदान करने के महत्व को रेखांकित करते हैं.
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों में उदासीनता, थकान, चिंता, भूख में कमी या वृद्धि, नींद में परेशानी और आत्महत्या के विचार शामिल हो सकते हैं. यदि आप इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव कर रही हैं, तो डॉक्टर से बात करना महत्वपूर्ण है. उपचार के माध्यम से, पोस्टपार्टम डिप्रेशन के नुकसान को कम किया जा सकता है और दिल की बीमारी सहित लॉन्ग टर्म सेहत से जुड़ी समस्याओं के खतरे को कम किया जा सकता है.