MP: शर्म छोड़कर स्कूल गर्ल्स फैला रही हैं पीरियड्स अवेयरनेस, महिलाओं को मिला रोजगार
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MP: शर्म छोड़कर स्कूल गर्ल्स फैला रही हैं पीरियड्स अवेयरनेस, महिलाओं को मिला रोजगार

सिंधिया कन्या स्कूल सेनेटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत 2012 में हुई थी. जब स्कूल प्रबंधन और छात्राएं कुछ ऐसे तबके की मदद करना चाहती थी जो समाज में पिछड़े हुए हैं.

सिंधिया कन्या स्कूल (फोटो साभारः skvgwalior.org)

शैलेंद्र सिंह​/नई दिल्ली: महावारी एक ऐसा विषय है जिस पर लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते हैं. यही वजह है कि इस महावारी के संक्रमण के चलते हर साल कई महिलाओं की मौत हो जाती है, लेकिन महावारी के चलते महिलाओं में हो रही संक्रमण को दूर करने के लिए देश के प्रतिष्ठित सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं ने एक ऐसा काम किया है जिससे न केवल महिलाएं संक्रमण से बच पा रही है बल्कि महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध करा रही है. सिंधिया कन्या स्कूल सेनेटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत 2012 में हुई थी. जब स्कूल प्रबंधन और छात्राएं कुछ ऐसे तबके की मदद करना चाहती थी जो समाज में पिछड़े हुए हैं. उनके मन में ख्याल है कि महिलाओं को हर माह होने वाली महावारी के चलते उनको गंभीर बीमारियां हो जाती हैं.  

खासतौर से महिलाओं को माहवारी के दिनों में परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इन दिनों में वह सेनेटरी नैपकिन नहीं खरीद सकती और ना ही किसी से मंगवा सकती हैं. इस कारण उनको गंभीर बीमारियां हो जाती है और इसको लेकर वह किसी मर्द को भी बताना पसंद नहीं करतीं. साथ ही इसकी जागरुकता को लेकर कोई भी बात करना नहीं चाहता है. इसके बाद इन छात्रों के मन में ख्याल आया कि क्यों ना महिलाओं को जागरूक करके और उनकी सुरक्षा के लिए सेनेटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत की जाए. 

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छात्रों ने बताया कि यह प्रयास काफी जोखिम भरा और कठिन था क्योंकि इस विषय पर लोगों से और महिलाओं से बात करना काफी मुश्किल होता था. लेकिन फिर भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाना हमने जरूरी समझा. उसके बाद सिंधिया कन्या स्कूल की प्रिंसिपल से छात्राओं ने बात की और इस प्रोजेक्ट को शुरुआत करने की तैयारी शुरू कर दी. सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल ने इस मशीन की तलाश की और काफी खोजबीन के बाद उन्हें एक ऐसी मशीन के बारे में पता चला जिसके माध्यम से सस्ते दर पर सैनेटरी नैपकिन बनाये जा सकते हैं. उसके बाद सिंधिया प्रबंधन और छात्रों के द्वारा फंड जुटाए गए. फंड के सहयोग से सेनेटरी नैपकिन बनाने की मशीन को खरीदा और 2012 में सेनेटरी नैपकिन बनाने की शुरुआत कर दी. छात्रों को सेनेटरी नैपकिन बनाने की ट्रेनिंग दी, फिर उसके बाद यह सिलसिला लगातार जारी है.

सिंधिया स्कूल की प्रिंसिपल निशी मिश्रा का कहना है कि एक बार सिंधिया कन्या स्कूल की छात्राओं को सेवा भाव करने का मन में विचार आया. सभी छात्रों ने अपने अलग-अलग विचार रखे और उसके बाद यह निर्णय लिया गया कि जिले के आसपास की बस्तियों में गरीब महिलाएं ऐसी हैं जो महावारी की वजह से होने वाली संक्रमित बीमारी को किसी को नहीं बताती है. आगे जाकर यह गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है. इसकी जागरूकता के लिए शुरुआत करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि जब वह महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के उपयोग के बारे समझाने के लिए गांव जाती थी तो गांव के लोग उन्हें ताने तक मारते थे. 

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