चुनावनामा: कुछ यूं बदल गई लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी को चुनने की प्रक्रिया
लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में भी ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ईवीएम को लेकर तमाम सवालों के बीच हम आपको बताते हैं कि 1951 के पहले लोकसभा चुनाव से पहले 8200 टन स्टील का इस्तेमाल कर तैयार की गई थीं 22 हजार मतपेटियां.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में ईवीएम के प्रति विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग इस बार वीवी पैट का इस्तेमाल करने जा रहा है. चुनाव आयोग ने यह फैसला बीते कुछ सालों में ईवीएम को लेकर खडे हुए सवालों को देखते हुए लिया है. उल्लेखनीय है कि चुनाव में मतदान के लिए बीते दो दशकों से इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है. इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का मतदान के लिए इस्तेमाल सबसे पहले 1999 में हुए चुनावों में किया गया था. इससे पूर्व, हमारे देश में मतदान के लिए बैलेट पेपर और बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता था. आइए, चुनावनामा में हम आपको बताते हैं कि 1951 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव के लिए किस तरह मतदान कराए गए और मतदान प्रक्रिया चुनाव दर चुनाव किस तरह बदलती गई.
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1951 में हर प्रत्याशी के लिए होता था अलग बैलेट बॉक्स
1951 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी निरक्षर थी. ऐसे में चुनाव आयोग के लिए मतदान करना एक बेहद चुनौती भरा था. चुनाव आयोग ने पहले चुनाव के लिए बैलेट बॉक्स के इस्तेमाल का फैसला किया. फैसले के लिए चुनाव लड़ने वाले हर प्रत्याशी का अलग कार्ड होता था, जिसमें उसका नाम और चुनाव चिन्ह छपा होता था. वहीं प्रत्येक प्रत्याशी के लिए अगल बैलेट बॉक्स रखा जाता था. मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के कार्ड को उसके बैलेट बॉक्स में डालकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते थे.
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सभी प्रत्याशियों के लिए एक बैलेट पेपर का इस्तेमाल
1951 में शुरू हुई मतदान प्रक्रिया के तहत 1957 के भी लोकसभा चुनाव कराए गए. चुनाव आयोग ने 1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में पहली बार इस प्रक्रिया को बदला गया. अब सभी प्रत्याशियों के लिए एक ही बैलेट बॉक्स और एक बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया गया. बैलेट पेपर में सभी प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह दर्ज होता था. मतदाता अपने पसंद के प्रत्याशी के नाम पर मोहर लगाकर बैलेट पेपर को बैलेट बॉक्स में डालते थे. 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने सभी प्रत्याशियों के लिए एक ही बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल किया था.
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कुछ यूं तैयार हुए थे मतदान के लिए बैलेट बॉक्स
1951 से लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के सामने बड़ी चुनौती थी कि मतदान के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद बैलेट बॉक्स का निर्माण कराया जाए. उस दौर में, चुनाव आयोग ने बैलेट बॉक्स बनाने की जिम्मेदारी गोदरेज नामक कंपनी को सौंपी. चुनाव आयोग ने गोदरेज को महज 4 महीनों में 20 लाख बैलेट बॉक्स तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. गोदरेज ने जुलाई 1951 में मुंबई के बिखरोल स्थिति कारखाने में मतपेटियों का निर्माण शुरू किया. गोदरेज ने 8200 टन स्टील का इस्तेमाल कर चार महीनों में 20 लाख बैलेट बॉक्स बनाने का लक्ष्य पूरा कर लिया. इस बैलेट बॉक्स को बनाने में उस समय में पांच रुपए की लागत आई थी.