2008 से पहले भिवानी और महेंद्रगढ़ दो अलग अलग लोकसभा सीटें थी लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद दोनों क्षेत्रों में आने वाले कुछ इलाकों को अलग कर दिया गया और बाकी के इलाकों को मिलाकर एक नई सीट बनाई गई.
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भिवानी-महेंद्रगढ़: ग्रीन लैंड के नाम से मशहूर हरियाणा भले अब पंजाब का हिस्सा नहीं है लेकिन ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त का एक भाग रहा है और इसके इतिहास में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है. राज्य के दक्षिण में राजस्थान और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में पंजाब की सीमा और पूर्व में दिल्ली क्षेत्र है. हरियाणा और पड़ोसी राज्य पंजाब की भी राजधानी चंडीगढ़ ही है. इस राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 1966 को हुई. क्षेत्रफल के हिसाब से इसे भारत का 20 वां सबसे बड़ा राज्य बनाता है.
हरियाणा की इस सीट पर जाट और यादव मतदाताओं का अधिक प्रभाव है. भिवानी क्षेत्र ने देश को कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में भिवानी, दादरी, बादड़ा, तौशाम, लोहारु, अटेली, महेंद्रगढ़, नारनौल और नांगल चौधरी समेत 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. एक ओर जहां भिवानी में जाट मतदाताओं की अधिक संख्या है. वहीं दूसरी ओर महेंद्रगढ़ में यादव मतदाताओं की अधिक संख्या है.
आपको बता दें, वर्ष 2008 से पहले भिवानी और महेंद्रगढ़ दो अलग अलग लोकसभा सीटें थी लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद दोनों क्षेत्रों में आने वाले कुछ इलाकों को अलग कर दिया गया और बाकी के इलाकों को मिलाकर एक नई सीट बनाई गई. जिसके बाद इस सीट पर पहली बार 2009 में चुनाव हुआ.
बता दें, पुरानी भिवानी लोकसभा सीट का गठन 1977 में हुआ था. जिस पर जनता पार्टी की चंद्रावती ने कांग्रेस के बंसीलाल को हराकर जीत हासिल की थी. हालांकि इसके बाद 1980 और 1984 में हुए चुनावों में कांग्रेस के बंसीलाल इस सीट पर जीते. 1999 में इस सीट से INLD के अजय चौटाला और 2004 में कांग्रेस के बिश्नोई ने बाजी मारी थी. इसके बाद 2008 में इसका अस्तित्व खत्म हो गया था.
साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जाट नेता धर्मबीर सिंह ने इनेलो प्रत्याशी बहादुर सिंह को 1 लाख से अधिक वोटों से हराकर जीत हासिल की थी. इस सीट पर धर्मबीर को कुल 4,04,542 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस की प्रत्याशी श्रुति चौधरी तीसरे स्थान पर थीं. हालांकि, 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की श्रुति चौधरी ने जीत हासिल की थी.
हरियाणा के रण में बहरहाल जीत किसकी होती है यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि सभी पार्टियों ने चुनाव के लिए अपनी ताकत पूरी तरह से झोंक दी है. लोकतंत्र के इस महापर्व में जनता का फैसला सर्वोपरि होता है और 23 मई को जनता का फैसला लोगों के सामने होगा.