मनरेगा में बड़े पैमाने पर घपला, फंड का हुआ गलत इस्तेमाल
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मनरेगा में बड़े पैमाने पर घपला, फंड का हुआ गलत इस्तेमाल

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी रिपोर्ट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर खामियां और अनियमितताएं पाई हैं।

नई दिल्ली: ग्रामीण गरीबों को न्यूतम दिहाड़ी रोजगार की कानूनी गारंटी देने वाले सरकार के बहु प्रचारित कार्यक्रम मनरेगा के क्रियान्वयन में खामियां उजागर करते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने सरकार की खिंचाई करते हुये कहा है कि 4000 करोड़ रपये से अधिक का काम अधूरा पड़ा है जबकि 2,000 करोड़ रपये से ज्यादा धन ऐसी योजनाओं में खर्च किया गया जिनकी मनरेगा में अनुमति नहीं है।
कैग की रिपोर्ट में मनरेगा के तहत आवंटित धन का अन्यत्र इस्तेमाल, जिस काम की अनुमति नहीं थी उसका क्रियान्वयन, रिकार्ड रखने में अनियमितता जैसी खामियों को उजागर किया गया है। रपट में कहा गया है कि इस योजना में 2,252.43 करोड़ रपये की राशि को दूसरे काम के लिए निकाल लिया गया या ऐसे काम पर खर्च किया गया जिसकी योजना के तहत अनुमति नहीं है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2006 में शुरू किए गए कार्यक्रम की आडिट के आधार पर कैग ने यह भी पाया कि 4,070 करोड़ रपए के काम एक से पांच साल की अवधि के बाद भी लंबित थे।
कैग ने कहा कि 2009-10 में इस कार्यक्रम के जरिये 283.59 करोड़ व्यक्ति दिन के रोजगार का सृजन हुआ था, जो 2011-12 में घटकर 216.34 करोड़ व्यक्ति दिन रह गया। इसके अलावा कार्य के पूर्ण होने की रफ्तार में भी इस दौरान उल्लेखनीय गिरावट आई।
कैग ने कहा है कि बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे गरीबों की अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में मनरेगा योजना का अधिक लाभ नहीं उठाया गया। इसमें कहा गया ‘‘तीन राज्य बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जहां भारत के ग्रामीण गरीबों की 46 प्रतिशत आबादी रहती है, में मनरेगा के तहत जारी धन का केवल 20 प्रतिशत की उपयोग हुआ। इससे पता चलता है कि अतिशय गरीबी में जीवनयापन करने वालों को मनरेगा के तहत उपलब्ध अधिकार का लाभ नहीं मिल पा रहा है।’’
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कैग की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया में कहा कि यह कार्यप्रदर्शन की लेखापरीक्षा है। यह कोई वित्तीय लेखापरीक्षा नहीं है। पिछले 30 सालों में मैंने यह कभी नहीं देखा कि कैग ने कोई सकारात्मक टिप्पणी की हो। हालांकि, ग्रामीण विकास मंत्री ने बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मनरेगा योजना के क्रियान्वयन में समस्या को स्वीकार किया है।
कैग ने सरकार से कहा है कि वह इस योजना के उचित तरीके से क्रियान्वयन के लिए निर्णायक कदम उठाए। सरकारी आडिटर ने कहा कि सरकार को गहन निगरानी और आकलन प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। मनरेगा के क्रियान्वयन का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि 2,252.43 करोड़ रपये के 1,02,100 ऐसे कार्य किए गए जिसकी मंजूरी नहीं ली गई थी।
इनमें कच्ची सड़क का निर्माण, सीमेंट कंक्रीट की सड़क, मवेशियों के लिए चबूतरे का निर्माण तथा स्नान घाट शामिल हैं। मनरेगा के क्रियान्वयन का प्रदर्शन आडिट कैग ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के आग्रह पर किया है। आडिट की अवधि अप्रैल, 2007 से मार्च, 2012 रही। कैग ने कहा कि मनरेगा के तहत किए गए कार्यों में अनियमितताएं देखने को मिलीं।
कैग ने 28 राज्यों और 4 संघ शासित प्रदेशों की 3,848 ग्राम पंचायतों में कार्यक्रम के क्रियान्वयन की जांच की। सरकारी आडिटर ने कहा है कि काफी समय होने के बावजूद 4,070.76 करोड़ रपये का कार्य अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। (एजेंसी)

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